Swatantra Mishra : चरण-रज लेने की कला में माहिर लोग तने हुए लोगों की मिट्टी खराब करते हैं… करीब 10 साल पुरानी एक घटना है। एक सीनियर पत्रकार पटना से दिल्ली मेरे घर आए। दिल्ली में कुछ बड़ा हासिल करने की जुगत उन्हें राजधानी तक ले आई थी। वे जहां जाते अक्सर मुझे साथ चलने की बात पूछ लेते। मैं कई बार जाता, कई बार नहीं भी जाता।
एक बार वे बीजेपी नेता राजनाथ सिंह के आवास पर गए। उस दिन मैं भी उनके साथ था। हम जैसे ही राजनाथ सिंह के सामने पहुंचे, वरिष्ठ पत्रकार ने उन्हें भैया संबोधित किया और झुककर चरण छू लिए। मैंने बस शिष्टाचार वाला नमस्ते कहा और इसका परिणाम यह हुआ कि अगले 45 मिनिट जबतक मैं राजनाथ सिंह के सामने बैठा रहा वे लगातार मुझे घूरते रहे। वे अपनी देहभाषा से यह संदेश दे रहे थे कि मैंने उनके दरबार में ही उनकी शान में तौहीन कर दी है।
खैर, जब हम विदा हुए तब बाहर आकर मैंने पत्रकार मित्र से पूछा- “आपको पैर छूने की क्या ज़रूरत थी?”
उनका जवाब था- “ज़िंदगी में ‘कुछ’ पाने के किये ‘बहुतकुछ’ करना पड़ता है।”
उन पत्रकार मित्र से दुबारा मुलाकात नहीं हुई और नेताओं से मिलने की भी मेरी बहुत इच्छा नहीं होती है।
दिल्ली विश्वविद्यालय में पढ़ने के दौरान भी ऐसे चरण-रज लगाने को लालायित विद्यार्थी, शोधार्थी और शिक्षकों से भी मेरा खूब पाला पड़ा है।
युवा पत्रकार स्वतंत्र मिश्रा की एफबी वॉल से.