हरेंद्र मोरल-
पूरी तरह सड़ चुकी देश की न्यायिक व्यवस्था क़ा सबसे बदबूदार उदाहरण। जिन्हें अंग्रेजी में दिक्कत हो उनके लिये नीचे हिन्दी अनुवाद भी हाजिर है।
मेरी नाबालिग बेटी का अपहरण हुआ, गैंगरेप हुआ हत्या कर दी गई
CJI: आप हाई कोर्ट जाएं
मैं मजदूर हूं, व्यवस्था का शिकार हूं, यूपी में पूरी तरह से अराजकता है
CJI: इस तरह की याचिकाओं से अदालत को भरो मत…सीधे सुप्रीम कोर्ट में क्यों आए?
मुकेश असीम-
आज सुप्रीम कोर्ट में –
एक याचिकाकर्ता की ओर से वकील: मेरी अल्पवयस्क बेटी की अपहरण व गैंगरेप के बाद हत्या कर दी गई।
चीफ जस्टिस साहब: हाईकोर्ट जाओ।
वकील: मैं मजदूर हूं, सिस्टम का मारा हूं, उप्र में कानून का शासन नहीं है।
ची ज सा: सीधे सुप्रीम कोर्ट क्यों आते हो? इस कोर्ट में ऐसी याचिकाओं की बाढ क्यों लाते हो?
वकील: मैं पीडिता का पिता हूं, यह खास स्थिति है।
ची ज साहब: आप यह बात हाईकोर्ट में कह सकते हो, सीधे सुप्रीम कोर्ट क्यों आये?
वकील: मै बुलंदशहर से हूं। हाईकोर्ट बहुत दूर है।
ची ज साहब: हाईकोर्ट जाओ। हम ऐसी हर याचिका पर सुनवाई नहीं कर सकते।
जी हां, चीफ जस्टिस साहब, आप ऐसी याचिकाओं को सुनने लगे तो आपको न्याय और जनतंत्र पर इतने सुंदर-सुंदर भाषण तैयार करने का वक्त कहां से मिलेगा? फिर आपने अर्णब गोस्वामी से यति नरसिंहानंद जैसों का भी तो ख्याल रखना है, कहीं उनके साथ एक सेकंड के लिए भी ‘अन्याय’ न हो जाये! फिर आपको वो वाले मुकदमे सुनने को भी तो प्राथमिकता देनी है कि ‘निंबूज’ नामक पेय लेमोनेड होता है या फ्रूट जूस, देर होने पर उसे बनाने वाले पूंजीपति को एक पैसा भी फालतू टैक्स देना पडा तो पृथ्वी का ही नहीं, स्वर्ग तक का शासन भी हिल जायेगा।
चीफ जस्टिस साहब, आप ऐसे ही निष्पक्ष, निष्काम, कठोर न्याय करते रहेंगे, हमें न्याय व्यवस्था पर कम से कम इस एक बात का तो अडिग भरोसा है।
(Live Law की रिपोर्ट के आधार पर)