Avtar Negi : उत्तराखंड उच्च न्यायालय के बाद तो मुख्यमंत्री को अपने पद से इस्तीफ़ा दे देना चाहिये ताकि इस मामले की निष्पक्ष जाँच हो सके। साथ ही विपक्षी दलों को भी चाहिये कि वे भ्रष्टाचार के इस मामले पर जन आंदोलन शुरू करें। लेकिन उत्तराखंड के बारे में मशहूर है कि राज्य के इन दोनों दलों – भाजपा और कांग्रेस के बीच भ्रष्टाचार के मामलों पर सहमति हो चुकी है। जब भी कोई सत्ता में होगा तो दूसरा भ्रष्टाचार का मामाला नहीं उठायेगा। यानि दोनों मिलकर राज्य को लूट रहे हैं।
Shyam Singh Rawat : जी हां बिल्कुल सही कहा आपने। पिछले 20 सालों से यही होता आया है। दोनों दलों के बीच आपसी सहमति ही बन गई है कि वे बारी-बारी इस प्रदेश को लूटेंगे और एक-दूसरे के कुकर्मों पर आंख-मुंह बंद रखेंगे।
रामाशीष यादव : आज के समाचार पत्रों के अनुसार त्रिवेंद्र सिंह रावत हाई कोर्ट के आदेश को चुनौती देते हुए सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर कर रहे हैं।
Thakur Garakoti : मुख्यमंत्री जी का ऐब सामने आ रहा है वस उमेश कुमार का इस वक्त भरपूर साथ देना होगा।
Rajendra Singh Bora : देश को आज ऐसी ही स्वच्छ छवि वाले सूबेदारों (सूबे के मालिकों) की जरूरत है, कभी बीजेपी ने आज कुछ प्रदेश, कल सारा देश का नारा शायद इसीलिए दिया था, कांग्रेस को भ्रष्ट बताने वाली बीजेपी खुद भी भ्रष्टाचार में आकंठ डूब चुकी है
क्या है मामला-
पत्रकार उमेश कुमार ने आरोप लगाए हैं कि 2016 में जब रावत भाजपा के झारखंड प्रभारी थे तब उन्होंने एक व्यक्ति को गौ सेवा अयोग का अध्यक्ष बनाये जाने को लेकर घूस ली थी और पैसे अपने रिश्तेदारों के खातों में ट्रान्सफर कराये थे। उत्तराखंड उच्च न्यायालय की एकल पीठ ने दो पत्रकारों उमेश कुमार शर्मा और शिव प्रसाद सेमवाल द्वारा दायर अलग-अलग रिट याचिकाओं (आपराधिक) की सुनवाई करते हुए उनके खिलाफ इस साल जुलाइ में देहरादून के नेहरू कॉलोनी पुलिस स्टेशन में आइपीसी की विभिन्न धाराओं के तहत दर्ज प्राथमिकी रद्द करने का आदेश दिया है। साथ ही मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत के खिलाफ भ्रष्टाचार के आरोपों की सीबीआइ जांच का आदेश दिया है।
एफआइआर एक सेवानिवृत्त प्रोफेसर और देहरादून के एक कॉलेज के प्रबंधक हरिंदर सिंह रावत के पुलिस से संपर्क किये जाने के बाद दर्ज़ की गई थी। उमेश कुमार द्वारा जून में फेसबुक पर अपलोड किए गए एक वीडियो के खिलाफ हरिंदर सिंह ने पुलिस से संपर्क किया था।
उक्त शिकायत के अनुसार, उमेश कुमार ने आरोप लगाया था कि सीएम रावत की पत्नी की बहन और हरिंदर की एसोसिएट प्रोफेसर पत्नी सविता रावत आपस में बहनें हैं और इनके नाम पर 2016 में नोटबंदी के दौरान अमृतेश सिंह चौहान नामक एक व्यक्ति ने विभिन्न बैंक खातों में कुछ पैसे ट्रान्सफर किए थे।
हरिंदर ने अपनी शिकायत में कहा कि उमेश ने आरोप लगाया कि चौहान को गौ सेवा पैनल का अध्यक्ष नियुक्त करने के लिए रावत को रिश्वत के रूप में पैसे दिए गए थे। हरिंदर ने सभी आरोपों को नकारते हुए कहा था कि उनके परिवार का सीएम के साथ कोई सम्बंध नहीं है।
इसी वर्ष जून में झूठी खबरें प्रकाशित कर सरकार को अस्थिर करने के मामले में पुलिस ने उमेश कुमार सहित चार लोगों पर मुकदमा दर्ज किया था। हाइकोर्ट में उमेश कुमार ने सभी मुकदमों को निरस्त करने के लिए याचिका दायर की थी, जिनमें उनका कहना था कि स्टिंग ऑपरेशन के कारण उन्हें झूठे मामलों में फंसाया जा रहा है। उमेश कुमार ने स्टिंग की 20 सीडी भी कोर्ट को सौंपी थी और पूरे मामले की सीबीआइ जांच और उनके विरुद्ध दर्ज प्राथमिकी रद्द करने की मांग की थी।
एफआइआर में पत्रकार शिव प्रसाद सेमवाल के समाचार पोर्टल—’पर्वतजन’ और एक अन्य पत्रकार राजेश शर्मा के मीडिया आउटलेट, क्राइम स्टोरी के नाम भी शामिल हैं।
इस पूरे मामले से यह भी सिद्ध होता है कि प्रदेश में सरकारी मशीनरी का उपयोग व्यक्तिगत खुन्नस निकालने और निजी झगड़े निपटाने के लिए किया जा रहा है, जो बेहद दुर्भाग्यपूर्ण है।
सौजन्य- फेसबुक
मूल खबर-