जोश मलीहाबादी का शेर है- वही करता है दुश्मन और हम शर्माए जाते हैं.. जी हां। कर्मचारियों का दुश्मन दैनिक जागरण प्रबंधन वही कर रहा है, जो करने में तमाम कर्मचारी शर्माते रहे। कभी जी हजूरी नहीं की। कभी किसी को मक्खन नहीं लगाया। कभी पूछ नहीं हिलाई। कभी किसी अधिकारी की उपासना नहीं की और भगवान भरोसे अपने को छोड़े रखा। अब वही सब दैनिक जागरण बड़ी ही बेशर्मी से कर रहा है। दैनिक जागरण का एक नियम है-आधे पेज से ज्यादा किसी का साक्षात्कार नहीं छपना है। लेकिन उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री अखिलेश यादव का साक्षात्कार दिल्ली संस्करण में आधे पेज से ज्यादा स्पेश में छपा।
अखिलेश जी को शायद नहीं मालूम होगा कि इस स्पेश के बदले दैनिक जागरण कर्मचारियों के लगभग सौ करोड़ रुपये मारना चाहता है। खैर— इसमें कोई आश्चर्य की बात नहीं। दैनिक जागरण प्रबंधन जब लाखों रुपये में एक डिब्बा मिठाई अपने कर्मचारियों को बेच सकता है तो सौ करोड़ रुपये में इंटरव्यू भी बेचेगा, इसमें कोई संदेह नहीं। दैनिक जागरण ने सूत्र बना लिया है-मजीठिया वेतनमान न देने के लिए कुछ भी करेगा।
अब इसके लिए सिर धुनने की जरूरत नहीं है कि हम तो हर स्तर पर ठगे जा रहे हैं। आइए इसमें भी कुछ पॉजिटिव विचार निकालते हैं। सबसे पहले विष्णु त्रिपाठी जी को धन्यवाद दीजिए कि उन्होंने कर्मचारियों को इतना प्रताडि़त किया कि उनमें एकजुटता आ गई। अब लोग निशीकांत ठाकुर जी वाली मीठी गोली से मुक्त हो गए हैं और आरपार की लड़ाई के लिए एकजुट भी हैं। तबादले, फोर्सलीव, वेतनकटौती और मेल के जरिये प्रताडि़त करने वाली कार्रवाइयां थम सी गई हैं। अब सिर्फ एक क्लेश बचा है कि लोगों को मजीठिया वेतनमान नहीं मिल रहा है।
दरअसल, दैनिक जागरण प्रबंधन हमें छोटी-छोटी चीजों में इतना उलझा कर रखता है कि बड़ी चीजों से हमारा ध्यान हट जाता है। अब यूनियन की बात लें-जागरण प्रकाशन लिमिटेड कर्मचारी यूनियन 2015 का गठन हो गया है। उसकी पहली बैठक भी हो चुकी है। लेकिन बैठक में जो मुद्दे उठाए गए, वे छोटी बातों के ही थे-मसलन, कुछ कर्मचारियों को कारण बताओ नोटिस क्यों जारी किया गया—-केस करने वाले कर्मचारियों का ठीक से वेतन क्यों नहीं बढ़ाया गया आदि आदि। लेकिन बैठक में जिस मुद्दे को छोड़ दिया गया, वह है मजीठिया का मुद्दा। इसके गवाह भी सुप्रीम कोर्ट में हमारे अधिवक्ता श्री परमानंद पांडेय भी बने। इंतहाए इश्क में रोता है क्या। आगे आगे देखिए होता है क्या।
श्रीकांत सिंह के एफबी वॉल से