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दिल्ली

दिल्ली पुलिस की अफरातफरी और राजनीति का गंदा खेल : वक्त बताएगा किसने क्या खोया और क्या पाया…

Om Thanvi : किसी एफआइआर पर पुलिस मंत्री क्या पार्षद के खिलाफ भी इतनी अफरातफरी में हरकत में नहीं आती। तोमर पर लगे आरोप नए नहीं हैं, अदालत में मामला पहले से है। अगर उन्होंने फर्जीवाड़ा किया है तो निश्चय ही सजा मिलनी चाहिए, मंत्री पद से छुट्टी तो होनी ही चाहिए। वैसे आप सरकार भी इसकी दोषी तो है कि अब तक न भीतरी लोकपाल नियुक्त किया है न बाहरी। तोमर की ‘असली’ डिग्रियां पेश करने का वादा भी अब तक पूरा नहीं किया गया है। लेकिन इसके बावजूद दिल्ली पुलिस की आज की नाटकीय गतिविधि संदेह के घेरे से बाहर नहीं निकल आती। सवाल यह है कि कल कोई एफआइआर शिक्षामंत्री स्मृति ईरानी पर डिग्री (यों) वाले उनके फर्जी हलफनामों के लिए दर्ज होती है तो क्या पुलिस इसी जोशोखरोश में पेश आएगी?

<p>Om Thanvi : किसी एफआइआर पर पुलिस मंत्री क्या पार्षद के खिलाफ भी इतनी अफरातफरी में हरकत में नहीं आती। तोमर पर लगे आरोप नए नहीं हैं, अदालत में मामला पहले से है। अगर उन्होंने फर्जीवाड़ा किया है तो निश्चय ही सजा मिलनी चाहिए, मंत्री पद से छुट्टी तो होनी ही चाहिए। वैसे आप सरकार भी इसकी दोषी तो है कि अब तक न भीतरी लोकपाल नियुक्त किया है न बाहरी। तोमर की 'असली' डिग्रियां पेश करने का वादा भी अब तक पूरा नहीं किया गया है। लेकिन इसके बावजूद दिल्ली पुलिस की आज की नाटकीय गतिविधि संदेह के घेरे से बाहर नहीं निकल आती। सवाल यह है कि कल कोई एफआइआर शिक्षामंत्री स्मृति ईरानी पर डिग्री (यों) वाले उनके फर्जी हलफनामों के लिए दर्ज होती है तो क्या पुलिस इसी जोशोखरोश में पेश आएगी?</p>

Om Thanvi : किसी एफआइआर पर पुलिस मंत्री क्या पार्षद के खिलाफ भी इतनी अफरातफरी में हरकत में नहीं आती। तोमर पर लगे आरोप नए नहीं हैं, अदालत में मामला पहले से है। अगर उन्होंने फर्जीवाड़ा किया है तो निश्चय ही सजा मिलनी चाहिए, मंत्री पद से छुट्टी तो होनी ही चाहिए। वैसे आप सरकार भी इसकी दोषी तो है कि अब तक न भीतरी लोकपाल नियुक्त किया है न बाहरी। तोमर की ‘असली’ डिग्रियां पेश करने का वादा भी अब तक पूरा नहीं किया गया है। लेकिन इसके बावजूद दिल्ली पुलिस की आज की नाटकीय गतिविधि संदेह के घेरे से बाहर नहीं निकल आती। सवाल यह है कि कल कोई एफआइआर शिक्षामंत्री स्मृति ईरानी पर डिग्री (यों) वाले उनके फर्जी हलफनामों के लिए दर्ज होती है तो क्या पुलिस इसी जोशोखरोश में पेश आएगी?

संशय तो इसमें भी है कि एफआइआर दर्ज भी हो पाएगी कि नहीं। दिल्ली पुलिस – जो केंद्र और उसके बंदे एलजी के प्रति ज्यादा वफादार है – का अतिउत्साह साफ जाहिर है और उसे अपनी घटती विश्वसनीयता की फिक्र करनी चाहिए। लेकिन वह भी क्या करे जब संविधान की गलियां उलटे-सीधे कामों के लिए केन्द्र सरकार से लेकर उपराज्यपाल खुद ढूंढ़ते फिरते हैं। मजा देखिए कि दिल्ली सरकार को भ्रष्टाचार से लड़ना है, पर नजीब जंग ने भ्रष्टाचार निरोधक ब्यूरो में अपना बंदा छोड़ दिया है – चुनी हुई सरकार की मंशा की परवाह किए बगैर। भाजपा के लिए कहना आसान होगा कि उनकी इन घटनाओं में कोई भूमिका नहीं है। पर उनका भरोसा कितने लोग करेंगे? पिछले महीने यह अधिसूचना जारी कर केंद्र सरकार ने आग में घी डाला था कि दिल्ली का प्रशासन और सेवाएं जनता के हाथ अर्थात चुनी हुई सरकार के पास नहीं हैं, केंद्र द्वारा मनोनीत उपराज्यपाल के पास हैं। कुल मिलाकर राजनीति का बड़ा गंदा खेल खेला जा रहा है, इसमें किसने खोया किसने पाया इसका हिसाब वक्त ही देगा।

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Sheetal P Singh : तोमर और हम… हम जिस समाज से हैं वहाँ किसी कमज़ोर व्यक्ति (स्त्री, दलित, अल्पसंख्यक, पिछड़े या अल्प/अर्ध शिक्षित या अशिक्षित) के पास अपने ख़िलाफ़ हुए / हो रहे / हो सकने वाले गुनाह के मामले में न्याय पाने की गुंजाइश बहुत कम होती है! शाहजहाँपुर, उत्तर प्रदेश में एक स्थानीय पत्रकार को एक मंत्री और पुलिस के कारकुनों ने ज़िन्दा जला दिया। अभी सिर्फ FIR हुई है और न्याय बहाने ढूँढ रहा है! राजस्थान में एक मंत्री गंभीर अपराधों में अदालत और पुलिस को वांछित है, मिल ही नहीं रहा है! मध्य प्रदेश के बरसों चले “व्यापम” घोटाले की हाई कोर्ट जाँच करवा रहा है SIT बनी हुई है पर उपर के छोर राजभवन और मुख्यमंत्री आवास की ओर सिर्फ इशारा करते हैं पहुँच नहीं पा रहे हैं! क़रीब ४१ लोग इस क़वायद में संदिग्ध रूप से दुनिया कूच कर गये!

२००२ में गुजरात में दुनिया के टीवी चैनलों/अख़बारों के सामने हज़ारों लोग तलवारों से भालों से कटे / गोदे जलाये फूंके मृत/घायल दर्ज हुए। कुछ लोग पकड़े गये, जो बड़े थे बाहर हैं, कुछ साधारण सज़ा पा गये पर असाधारण” तक क़ानून ही नहीं पहुँच पाया, फ़ेल कर गया! १९८४ में दिल्ली के हज़ारों सिक्ख फूँक दिये गये, टाइटलर और सज्जन कुमार बेगुनाह बने रहे! बिहार के दुर्दम नरसंहारों के आरोपियों को क़ानून ने मासूम माना, मरने वाले दलित वलित थे! पर हम चाहते हैं कि “तोमर” को पुलिस पीटे / घसीटे कमर से रस्सी बाँध हथकड़ी लगाये टीवी क्लिप दे, सलमान को घंटों में आज़ाद करने वाले हाईकोर्ट तोमर मामले में सुनवाई की अगली तारीख़ दे दें, पुलिस रस्सी का साँप बना ले और हम दुनिया के सामने “न्याय” साबित कर दें! बहुत सारी पोस्ट्स कुछ ऐसी ही ध्वनि पैदा करती लगीं! या हम क़रीब तीस फ़ीसद धूर्त मक्कार बड़ी जात/बड़े पद/बड़े घर वाले पचपन फ़ीसद झुग्गी, कच्ची बस्ती, अकलियत और कुछ संवेदनशील लोगों के बेहतरी के सपने पालने के गुनाह की सज़ा आयद कर रहे हैं!

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वरिष्ठ पत्रकार द्वय ओम थानवी और शीतल पी. सिंह के फेसबुक वॉल से.

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