श्याम सिंह रावत
नरेंद्र मोदी का प्रधानमंत्री बनना एक बहुत बड़ी राष्ट्रीय आपदा थी, जिसके दुष्परिणाम हर क्षेत्र में एक-एक कर सामने आ रहे हैं। उनकी 56″ की छाती कश्मीरी आतंकवादियों से निपटने में तो नाकाम हो चुकी है लेकिन देश के अन्य हिस्सों में उत्पात मचा रहे उपद्रवियों को सबक सिखाने में भी वे पूरी तरह असफल साबित हो रहे हैं। हालांकि कानून और व्यवस्था राज्यों का मामला है लेकिन जिस तरह कुछ एकदम स्थानीय स्तर के मामलों में स्थिति को नियंत्रित करने के स्थान पर उसे और भी विकराल बनने की छूट देकर देश के दूसरे हिस्सों में भी फैलने दिया गया, उसमें केद्र के हस्तक्षेप की पर्याप्त गुंजाइश होते हुए भी उसका आंख-कान बंद कर लेना किसी भी प्रकार से उचित नहीं ठहराया जा सकता।
गणतंत्र दिवस के राष्ट्रीय त्योहार पर जम्मू-कश्मीर के शोपियां जिले के गनोपोरा गांव में एक सुनियोजित षड्यंत्र के तहत सैकड़ों की संख्या में पत्थरबाजों ने सेना की गढ़वाल यूनिट के एक काफिले पर अचानक हमला बोल दिया। सेना के एक अधिकारी को घेरकर जान से मारने और उनके हथियार छीनने की कोशिश भी की। इस पर सेना ने अपने बचाव में फायरिंग की। जिससे कई लोग घायल हो गए, इनमें से दो जावेद अहमद भट्ट और सुहैल जावेद लोन की बाद में मृत्यु हो गई। आत्म-रक्षा में चलाई गोली के कारण सेना की गढ़वाल यूनिट के 10 सैनिकों के विरुद्ध हत्या और हत्या की कोशिश में धारा–302 का मुकदमा स्थानीय पुलिस ने पंजीकृत कर लिया है। इस मामले में देश के मुख्यधारा के मीडिया ने आश्चर्यजनक रूप से मौन धारण कर रखा है।
इस घटनाक्रम के बाद पत्थरबाजों की मौत पर जम्मू-कश्मीर की मुख्यमंत्री महबूबा मुफ्ती ने रक्षा मंत्री निर्मला सीतारमण से बात की और कहा कि एक भी नागरिक की मौत पर घाटी में चल रही शांति वार्ता को झटका लगता है। राज्य सरकार के एक प्रवक्ता के अनुसार, “रक्षा मंत्री ने मुम. मुफ्ती को आश्वस्त किया कि वे इस बारे में विस्तृत रिपोर्ट मांगेंगी और सेना को निर्देश देंगी कि भविष्य में ऐसी घटना दोबारा नहीं होनी चाहिए। मुख्यमंत्री ने जिला प्रशासन को पूरे मामले की जांच के लिए आदेश दिये हैं।”
इस पर सेना के एक प्रवक्ता का कहना था कि ‘सेना के एक काफिले पर करीब 100-150 पत्थरबाजों ने हमला कर दिया, बाद में उनकी संख्या बढ़कर 200-250 तक पहुंच गई। भीड़ ने सेना की चार गाड़ियों को भारी नुकसान पहुंचाया और उन्हें जलाने की कोशिश की। उग्र भीड़ ने सेना के एक अधिकारी को घेरकर जान से मारने और उनके हथियार छीनने की कोशिश भी की। अधिकारी को भीड़ का शिकार होने और सरकारी गाड़ियों को जलने से बचाने के लिए सेना ने कार्रवाई की। इसमें गोली लगने से सात लोग घायल हुए और दो नागरिकों की मौत हो गई। इसके अलावा 11 गाड़ियों को भी नुकसान हुआ है। जम्मू-कश्मीर पुलिस ने इस मामले में सेना की उक्त यूनिट के खिलाफ भारतीय दंड संहिता की धारा–302 (इरादतन) के तहत मुकदमा दर्ज किया है।’
यह कोई पहला मामला नहीं है जब अपना सैनिक दायित्व निभा रहे सैनिकों के विरुद्द इस संगीन धारा के तहत मुकदमा दर्ज किया गया है। इससे पहले बारामूला जिले के चंदूशा क्षेत्र में गत वर्ष अप्रैल में अर्द्ध-सैनिक बल बीएसएफ के एक जवान के खिलाफ इसी धारा के तहत मुकदमा दर्ज किया गया था। उक्त घटना में अर्द्ध-सैनिक बल की गाड़ी को कुछ कश्मीरी युवकों ने रोक लिया और उस पर पत्थरबाजी करने लगे। जवानों के बार-बार मना करने के बाद भी वे नहीं माने तो एक जवान को मजबूरन आत्मरक्षा के लिए गोली चलानी पड़ी। फायरिंग से घायल एक पत्थरबाज सज्जाद हुसैन की मौत हो गई।
इसके बाद स्थानीय लोगों ने सेना और सुरक्षाबलों के खिलाफ मोर्चाबंदी कर उनको घेर लिया। क्षेत्र में अफरा-तफरी का माहौल फैल गया और तमाम व्यापारिक संगठनों ने सुरक्षाबलों के खिलाफ जमकर प्रदर्शन किया। दुकानें बंद हो गईं और लोग धरना करने लगे। इसके बाद कश्मीर पुलिस ने गोली चलाने वाले बीएसएफ जवान के खिलाफ धारा–302 लगा कर मुकदमा दर्ज कर दिया।
यह जग-जाहिर है कि कश्मीर में लम्बे समय से स्थितियां असामान्य हैं और वहां अराजक तत्व जब-तब उपद्रव तथा सैन्यकर्मियों पर सशस्त्र हमले करते रहते हैं। ऐसे में भारी तनाव के बीच सेना, सुरक्षाबलों या पुलिस को स्थानीय अराजक तत्वों, पत्थरबाजों और आतंकवादियों के साथ सख्ती बरतनी पड़ती है। अनेक बार सख्ती में ढील देकर देखा जा चुका है लेकिन इसका फायदा उठा कर उपद्रवी लोग सेना, सुरक्षाबलों या पुलिस को ही निशाना बना डालते हैं। इसलिए सेना, सुरक्षाबलों या पुलिस का सख्त रवैया जरूरी हो जाता है। यदि वे ऐसा न कर उनके साथ नरमी से पेश आयेंगे तो समस्याएं और भी ज्यादा जटिल हो जायेंगी।
देशभर के नौजवान सेना और अर्द्धसैनिक बलों में भर्ती होकर बतौर सैनिक जो कुछ भी करते हैं, वह सब देश की संप्रभुता, सुरक्षा और शांति को बचाए रखने के लिए ही होता है। इस पवित्र उद्देश्य के लिए उनके दायित्व-निर्वहन और बलिदान के बदले उन्हें सेना से बर्खाश्त कर या फिर कोई दूसरी सजा देकर उन्हें दंडित किया जाता है, तो यह बहुत ही दुखद है। निश्चित रूप से इससे देश की सेना और सुरक्षाबलों के जवानों का मनोबल गिरता है। इस प्रकार सरकार द्वारा अपने राजनीतिक लाभ के लिए सैनिकों और अर्ध-सैनिक बलों को बलि का बकरा बनाना देश के लिए घातक सिद्ध होगा।
श्यामसिंह रावत
वरिष्ठ पत्रकार
30-01-2018
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