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पत्रकार दिलीप पडगांवकर नहीं बच पाए, पुणे में ली अंतिम सांस

अंग्रेजी के जाने माने पत्रकार दिलीप पडगांवकर का 72 साल में पुणे में निधन हो गया. वो लंबे समय तक अंग्रेज़ी अख़बार टाइम्स ऑफ़ इंडिया के संपादक रहे. हार्ट अटैक के बाद उन्हें पुणे के रूबी अस्पताल में भर्ती कराया गया था. उन्हें किडनी की भी बीमारी थी. वे मूल रूप से पुणे के रहने वाले थे. 1944 में पैदा दिलीप ने फ्रांस के सॉरबॉन विश्वविद्यालय से डॉक्टरेट किया था और उनकी पहली नियुक्ति टाइम्स ऑफ़ इंडिया के पेरिस संवाददाता के तौर पर हुई थी. भारत वापस लौटने के बाद उन्हें टाइम्स ऑफ़ इंडिया के दिल्ली और मुंबई संस्करण का सहायक संपादक बनाया गया.

<p>अंग्रेजी के जाने माने पत्रकार दिलीप पडगांवकर का 72 साल में पुणे में निधन हो गया. वो लंबे समय तक अंग्रेज़ी अख़बार टाइम्स ऑफ़ इंडिया के संपादक रहे. हार्ट अटैक के बाद उन्हें पुणे के रूबी अस्पताल में भर्ती कराया गया था. उन्हें किडनी की भी बीमारी थी. वे मूल रूप से पुणे के रहने वाले थे. 1944 में पैदा दिलीप ने फ्रांस के सॉरबॉन विश्वविद्यालय से डॉक्टरेट किया था और उनकी पहली नियुक्ति टाइम्स ऑफ़ इंडिया के पेरिस संवाददाता के तौर पर हुई थी. भारत वापस लौटने के बाद उन्हें टाइम्स ऑफ़ इंडिया के दिल्ली और मुंबई संस्करण का सहायक संपादक बनाया गया.</p>

अंग्रेजी के जाने माने पत्रकार दिलीप पडगांवकर का 72 साल में पुणे में निधन हो गया. वो लंबे समय तक अंग्रेज़ी अख़बार टाइम्स ऑफ़ इंडिया के संपादक रहे. हार्ट अटैक के बाद उन्हें पुणे के रूबी अस्पताल में भर्ती कराया गया था. उन्हें किडनी की भी बीमारी थी. वे मूल रूप से पुणे के रहने वाले थे. 1944 में पैदा दिलीप ने फ्रांस के सॉरबॉन विश्वविद्यालय से डॉक्टरेट किया था और उनकी पहली नियुक्ति टाइम्स ऑफ़ इंडिया के पेरिस संवाददाता के तौर पर हुई थी. भारत वापस लौटने के बाद उन्हें टाइम्स ऑफ़ इंडिया के दिल्ली और मुंबई संस्करण का सहायक संपादक बनाया गया.

टीओआई के संपादक रहते हुए उन्होंने कहा था कि भारतीय प्रधानमंत्री के बाद टीओआई के संपादक का पद देश का सबसे महत्वपूर्ण पद है. उनके इस बयान की देश भर में काफ़ी चर्चा भी हुई थी. 1988 में पडगांवकर टाइम्स ऑफ़ इंडिया के संपादक बने थे. इससे पहले आठ साल तक उन्होंने यूनेस्को के लिए भी काम किया था. इस दौरान उन्होंने बैंकॉक और पेरिस में लंबा वक्त गुज़ारा. पडगांवकर शारजाह से प्रकाशित होने वाले अख़बार गल्फ़ टुडे के भी संपादक रहे. साल 2002 में उन्हें पत्रकारिता के लिए फ़्रांस के सबसे बड़े नागरिक सम्मान से नवाज़ा गया.

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1975 में इमरजेंसी के दौरान पडगांवकर ने लिखकर विरोध करने का एक नया तरीका अपनाया था. वे अर्जेंटीना पर लेख लिखते थे और भारत की तुलना वहां की तानाशाही से किया करते थे. वे अर्जेंटीना के माध्यम से भारत में इमरजेंसी पर निशाना साधते थे. उस समय इज़ाबेल पेरों अर्जेंटीना की राष्ट्रपति थीं. दिलीप पडगांवकर मनमोहन सिंह सरकार के लिए कश्मीर मुद्दे पर वार्ताकार भी रहे.

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