जी ग्रुप वाले डीटीएच फील्ड में डिश टीवी नाम से कंपनी चलाते हैं. इस डीटीएच कंपनी की कमाई यानि ग्रास प्राफिट का दस परसेंट इन्हें भारत सरकार को देना होता है. लेकिन जी ग्रुप वाले 2006 से यह दस परसेंट रकम सरकार को देने में आनाकानी कर रहे हैं. कोई न कोई बहाना बना कर, विवाद खड़ा कर, कोर्ट-ट्रिब्यूनल जाकर पैसा देने को टाल देते हैं. इस तरह यह रकम अब तक 600 करोड़ रुपये हो चुकी है.
जी ग्रुप के बाद जो कंपनियां डीटीएच फील्ड में आईं, जैसे वीडियोकान, टाटा आदि, ये भी जी ग्रुप के रास्ते पर चलते हुए सरकार को प्राफिट में से दस परसेंट देने से आनाकानी कर रही हैं. इनका कहना है कि सरकार पहले जी ग्रुप के डीटीएच के विवाद को निपटाए, कोई गाइडलाइन तय करे तो उसी हिसाब से हम सब भी अपना काम करें. इस तरह सभी डीटीएच कंपनियों को मिला कर करीब 2100 करोड़ रुपये सरकार का बकाया है. जी ग्रुप वाले मामले को लटकाते रहने के लिए संबंधित अफसरों की मुट्ठियां गरम करते रहे और फैसला न होने देने हेतु तारीख पर तारीख डलवाते रहे. सूचना प्रसारण मंत्रालय ने जी ग्रुप वालों की यह हरकत देख लाइसेंस कैंसल होने के लिए लिखा. लेकिन जी ग्रुप वाले कोई न कोई सेटिंग गेटिंग करके लाइसेंस कैंसल कराने के आदेश को कैंसल कराने में सफल हो जाते रहे. ताजी खबर है कि अरुण जेटली ने डीटीएच टैक्स बकाया से संबंधित फाइल पर हस्ताक्षर कर सभी डीटीएच कंपनियों पर कुल बकाया 2100 करोड़ रुपये वसूलने के आदेश दिए हैं. इनमें सबसे पहले जी ग्रुप से 600 करोड़ रुपये की वसूली होगी. इस फैसले से जी ग्रुप में हड़कंप मच गया है. बाकायदा भाजपा की सदस्यता ले चुके सुभाष चंद्रा, मोदी की तारीफ में पत्रकारिता की हर मर्यादा सीमा तोड़ने वाले सुभाष चंद्रा, संघ के बड़े नेताओं को सेट कर लेने का गुमान पालने वाले सुभाष चंद्रा को अरुण जेटली ने अपने एक हस्ताक्षर से सन्न कर दिया है.
टीडी सैट यानि टेलीकाम डिस्प्यूट सेटलमेंट ट्रिब्यूनल के जरिए मामले को लटकाए रखने का सपना पालने वाली डीटीएच कंपनियों को जेटली के कदम से सर्दी में पसीने आने लगे हैं. चर्चा है कि डिश टीवी के सीईओ खट्टर को भी हटाया गया है, क्योंकि इन्हें ही यह काम दिया गया था कि आप जो कर लो लेकिन सरकार को 600 करोड़ रुपये देने न पड़े. ज्ञात हो कि जी ग्रुप वालों के डिश टीवी को 2003 में डीटीएच आपरेट करने का लाइसेंस सरकार ने दिया था. यह लाइसेंस दस साल के लिए दिया गया था. दो हजार तेरह में लाइसेंस खत्म हो गया. लेकिन लाइसेंस रिन्यू न किया गया. अनअथराइज्ड तरीके से डिश टीवी चल रहा है. बड़ा मीडिया घराना और बड़ा खिलाड़ी होने के कारण इन पर कोई लगाम नहीं है. इनके लिए कानून के कोई मायने नहीं हैं. डीटीएच गाइडलाइंस में पहले से यह लिखा है कि ग्रास प्राफिट का एक निश्चित एमाउंट भारत सरकार को देना होगा. लेकिन ये लोग हजारों करोड़ की कमाई कर लेने के बाद एक भी पैसा सरकार को न देना पड़े, इस खातिर चले गए टीडी सैट. इस तरह से करते-करते छह सौ करोड़ रुपये का बकाया जी के उपर हो गया. सरकार इस रिकवरी को अंजाम नहीं दे पाती रही क्योंकि मामला उलझाने की जी की रणनीति सफल होती रही. आईबी मिनिस्ट्री के अफसरों को जी वाले सेट करते रहे. इनकी देखादेखी टाटा स्काई, वीडियो कान आदि ने भी कह दिया कि डिश टीवी ने पैसा नहीं दिया तो हम लोग क्यों दें, पहले इनका मामला सेटल करिए. जो फैसला होगा, उसी हिसाब से हम लोग भी देंगे.