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संपादक की मदद से ‘दिव्य हिमाचल’ भी खेल रहा मजीठिया विरोधी खेल

अपने कर्मचारियों को मजीठिया वेज बोर्ड के अनुरूप वेतन देने का दावा करने वाले हिमाचल के हिंदी दैनिक दिव्य हिमाचल के संबंध में हास्यास्पद जानकारी मिली है। इस अखबार ने श्रम विभाग को अपने कर्मचारियों की एक सूची मुहैया करवाई है। इसमें दावा किया गया है कि इन्हें मजीठिया वेज बोर्ड की सिफारिशों के अनुरुप वेतन दिया जा रहा है। बाकी के सैकड़ों कर्मचारी न जाने किस मद में डाले गए हैं। इस लिस्ट में मात्र 84 कर्मचारियों व अधिकारियों के नाम व वेतन दर्शाए गए हैं।

अपने कर्मचारियों को मजीठिया वेज बोर्ड के अनुरूप वेतन देने का दावा करने वाले हिमाचल के हिंदी दैनिक दिव्य हिमाचल के संबंध में हास्यास्पद जानकारी मिली है। इस अखबार ने श्रम विभाग को अपने कर्मचारियों की एक सूची मुहैया करवाई है। इसमें दावा किया गया है कि इन्हें मजीठिया वेज बोर्ड की सिफारिशों के अनुरुप वेतन दिया जा रहा है। बाकी के सैकड़ों कर्मचारी न जाने किस मद में डाले गए हैं। इस लिस्ट में मात्र 84 कर्मचारियों व अधिकारियों के नाम व वेतन दर्शाए गए हैं।

अखबार ने बाकी बड़े अखबारों की तरह ही कर्मचारियों को वेज बोर्ड व वर्किंग जर्नलिस्ट एक्ट के प्रावधानों के अनुरूप वेतन देने में घपलेबाजी की है। जो जानकारी श्रम विभाग को मुहैया करवाई गई है, सही नहीं है। इस अखबार के मुख्य संपादक अनिल सोनी की तनख्वाह उनके अधिनस्थ संजय कुमार अवस्थी की तनख्वाह से भी कम दर्शाई गई है। संजय अवस्थी दिव्य हिमाचल में कई सालों की घिसमपीट के बाद एडिटोरियल के फील्ड कोआर्डिनेटर के पद पर पहुंचे हैं। वेज बोर्ड में इस तरह के किसी पदनाम की जानकारी नहीं है। यह बात साफ है कि उनका रूतबा संपादक अनिल सोनी के काफी नीचे है।

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अब अनिल सोनी व अवस्थी की तनख्वाह की बात करें तो अवस्थी को 31,560 रुपये वेतन दिया जा रहा है, वहीं उनके बास अनिल सोनी का वेतन महज 26,600 रुपये दर्शाया गया है। घपला और भी है। इस अखबार में ज्यादा तनख्वाह लेने वाले का पीएफ कम और कम तनख्वाह लेने वालों का पीएफ ज्यादा कट रहा है। नीचे के कर्मचारियों को क्या और कैसे मिल रहा है, इसकी तो जानकारी नहीं है। इससे यह बात तो साफ है कि अखबार पीएफ काटने में भी घपला कर रहा है। अवस्थी का पीएफ 780 रुपये कट रहा है, वहीं अनिल सोनी का 1200 रुपये।

अब बात करते हैं, असल मामले की। सब जानते हैं कि सोनी अपने पद के अनुरुप कम से कम एक-डेढ़ लाख रुपये माह का पैकेज तो लेते ही होंगे। अब उनका वेतन इतना कम क्यों दर्शाया जा रहा है, इस पर कुछ कयास लगाए जा सकते हैं। मोटा-मोटा अनुमान यही लगता है कि सोनी ने यह सब चक्कर टैक्स से बचने के लिए किया होगा। इसके अलावा बाकी कर्मचारियों को मूर्ख भी तो बनाना है। नहीं तो वे भी ज्यादा तनख्वाह लेने का दावा करने लगेंगे। बड़े-बड़े भाषण झाड़ने वाले सोनी भी संपादक ही तो ठहरे, वे भला अन्य संपादकों से अलग कैसे हो सकते हैं। लिहाजा उन्होंने घपलेबाजी करके अपनी बुद्धिमता का परिचय दे दिया है।

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अब मजीठिया बेज बोर्ड की आस लगाए बैठे दिव्य हिमाचल के कर्मचारियों को यह बात समझ में आ रही है कि हिमाचल का एकमात्र अखबार होने का दंभ भरने वाले दिव्य हिमाचल के मालिक व उनके वफादार चमचे उनका यह सपना कतई पूरा नहीं होने देना चाहते हैं। यहां बधाई के पात्र वे कर्मी हैं, जिन्होंने सुप्रीम कोर्ट में जाकर अपना हक मांगने की हिम्मत दिखाई है।

एक पत्रकार द्वारा भेजे गए पत्र पर आधारित

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0 Comments

  1. अंकुश लट्ठ

    April 7, 2015 at 3:11 pm

    संपादक तो काफी समय से मालिकों के आगे नतमस्तक होने को ही पत्रकारिता मान चुके हैं. पत्रकारों को भी तो जायज हकों के लिए लडना चाहिए.

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