दुनिया हिल गई है, हर आदमी भय के माहौल में जी रहा है। सड़कें वीरान पड़ी हैं ,थम गई है रेल का पहिया ,आसमान में गरजते वायुयान की गर्जना सहम गई है । पूरा का पूरा आधुनिक विकास थक गयी है. ऊंची ऊंची अट्टालिका एवं फाइव स्टार होटल वाले कंक्रीट के जंगल पूरी तरह विरान दिख रहे हैं । हर तरफ सन्नाटा पसरा हुआ है। प्रत्येक नागरिकों से घर के बाहर नहीं निकलने की अपील हो रही है। आप सभी समझ ही रहे होंगे कि मैं वैश्विक संकट का कारण बन चुके करोना वायरस के संक्रमण की बात करने जा रहा हूं। जी हां इस महामारी को रोकने का एकमात्र उपाय भी यही है कि स्वयं अपने आप को बचाने के लिए विश्व स्वास्थ्य संगठन और अपनी सरकार के स्तर पर दिशा निर्देश सावधानियां बताई जा रही है उसका शत प्रतिशत पालन करें और राष्ट्र एवं जीवन हित में अपनी एकजुटता का प्रदर्शन करें।
मित्रों सही ही कहा गया है जान है तो जहान है । इस महामारी ने इस मुहावरे को पूरी तरीके से चरितार्थ कर दिखाया है. यह महामरी कई सारी मुश्किलों एवं चुनौतियों के साथ बहुत कुछ सिखाने की भी कोशिश कर रहा है किंतु अफसोस की बात यह है कि महा संकट की इस घड़ी में भी कुछ एक चिंतकों विशेषज्ञ और जमीनी कार्यकर्ताओं को छोड़कर अब भी हम सबक सीखने के लिए तैयार नहीं है बजाय इसके संकट में भी अपनी गलतियों को छुपाने की पुरजोर कोशिश हो रही है।वर्तमान में भले ही इस महामारी के लिए करुणा वायरस को जिम्मेदार बताया जा रहा हो और विश्व समुदाय के द्वारा के इस वायरस का निर्माण करके अलग-अलग देशों में भेजने के लिए चीन की साजिश बताई जा रही हो हमारे देश में उसको फैलाने के पीछे तबलीगी जमात में सम्मिलित लोगों को जिम्मेदार बताया जा रहा हो किंतु इन सभी चर्चाओं के बीच हम इस सच को नहीं छुपा सकते हैं कि यह दशकों से तड़पती कराहती प्रकृति की उपज नहीं है क्योंकि मनुष्य भी प्रकृति का ही सबसे समझदार और मजबूत प्राणी है । चाहे वह चीन में रहता हो या अमेरिका, इटली, फ्रांस, जापान, सहित भारत का ही रहने वाला हो. प्रकृति को सवारने और बिगाड़ने के लिए मनुष्य ही पूरी तरीके से जिम्मेदार एवं उत्तरदाई है. ऐसे ही कुछ महत्वपूर्ण पहलुओं पर मैं अपनी बात आपसे साझा करने की कोशिश कर रहा हूं क्योंकि अब यह सिद्ध हो गया है कि इन पहलुओं को नजरअंदाज करके अब मनुष्य अपने सुरक्षित जीवन की परिकल्पना को मूर्त रूप नहीं दे सकता है क्योंकि आगे कई और खतरे हैं।
करोना वायरस जिसे कोविड 19 के नाम से जाना जा रहा है। उसकी बात करते हैं. मित्रों इस वायरस के सामने यह तो सच है कि पूरे विश्व में मत्था टेक दिया है, हथियार डाल दिए हैं. बस इससे बचने का एक ही रास्ता है कि आदमी आदमी से दूर रहे पढ़े लिखे समाज ने इसके लिए कुछ नाम दे दिए कुछ दिशा-निर्देश दे दिए ताकि उसका अनुपालन करते हुए हम सभी इस महामारी से अपने को बचाया जा सकें। सवाल उठता है कि क्या वाकई यह वायरस इतना मजबूत है या फिर हम कमजोर हुए हैं । वर्तमान में इस मुद्दे पर व्यापक विचार विमर्श और मंथन की जरूरत है। मैं एक साधारण परिवार का आदमी हूं पारिस्थितिकी एवं पर्यावरण विज्ञान के क्षेत्र मे अध्ययन के बाद अब तक लगभग 20- 25 वर्षों में हमने एक आम कार्यकर्ता के रूप में जो देखा है और, अनुभव किया है। वह सभी वर्तमान में एक कटु सत्य के रूप में सामने खड़ी है। अपने अपने जीवन में अब तक सारे लोगों ने यह महसूस किया होगा कि विकास की असंयमित और अनियमित मापदंडों के साथ हम सभी ने जीवन का जो सफर तय किया है और जिस पड़ाव पर आज हम खड़े हैं। महसूस करिए की क्या हमारी कृतयों से प्रकृति को जरूरत से ज्यादा क्षति नहीं पहुंचाई गई। हरे भरे जंगलों को काट कर रेगिस्तान बना दिया, गया पहाड़ों की ऊंची ऊंची श्रृंखलाओं को काट कर समतल मैदान कर दिया, नदियों को सिर्फ बाधा ही नहीं गया बल्कि उसे गंदा नाला तक बना दिया गया. इतना ही नहीं अपने असीमित अभिलाषा को पूरा करने के लिए इतने बड़े-बड़े कल कारखाने लगा दिए की आसपास के हवा-जल को भी हमने जहरीला बना दिया है नतीजा यह हुआ कि हमारे आसपास मौजूद सकारात्मक ऊर्जा प्रकृति प्रदत्त संसाधनों का क्षरण हुआ और दूसरी तरफ नकारात्मक कारक बड़ी तेजी से बड़े ही नहीं बल्कि मजबूत भी हुई है। और हम सभई जानते हैं यह सब कैसे हुआ ।
उदाहरण के लिए मैं आपको कहीं दूर नही ले जाना चाहूंगा.
1-हमको इतना बताएं कि अपने घरों में मच्छर भगाने के लिए जिन रासायनिक संसाधनों का हमने उपयोग किया उसका परिनाम निकला. प्रारंभिक दिनों में हमारे घरों से मच्छर भाग जाया करते थे या बेहोशी की स्थिति में कहीं पर गिर जाते थे किंतु ज्यादा नहीं 10-15 सालों के अपने अनुभव पर आप नजर डालें तो क्या आपको नहीं लगता है की धीरे-धीरे करके मच्छर उन सभी बाजार उत्पादित रासायनिक संसाधनों के आदी हो गए अब वह इतनी आसानी से घर से नहीं निकलते हैं जितनी आसानी से पहले भाग जाते थे। ऐसे कई और जीवंत उदाहरण हम सभी के सामने मौजूद हैं जो कहीं न कहीं से हमारे दिनचर्या के हिस्से हैं अथवा हम आप देखते हैं और महसूस करते हैं। बड़ा ही सहज स्थिति है. इस बात को समझने के लिए आखिर हुआ क्या।
2- हम अपने घरों से बाहर निकले और देखें की किसान अपने खेतों में खरपतवार और कीटों के रोकथाम के लिए जिन खरपतवार नाशी अथवा कीटनाशक का उपयोग अपने जीवन के प्रारंभिक दिनों में करना शुरू किया था उस समय रासायनिक संसाधनों का इतना असर देखा जा रहा था हमें याद है कि जब ऐसे संसाधनों का उपयोग किसान आज से लगभग 20 साल पहले करना शुरू किया था। उस समय उसका भरपूर असर उसके खेतों में दिखाई दे रहा था । नुकसानदायक कीट पतंग मर जाते थे , खरपतवार नष्ट हो जाते थे लेकिन धीरे धीरे आज हम एक ऐसी स्थिति में अपने को पाते हैं कि रासायनिक पदार्थों का उपयोग करने के बावजूद भी कीट पतंगों पर और खरपतवार नाशी के ऊपर इतना असर नहीं देखा जा रहा है बजाय इसके उन सारे रासायनिक पदार्थों के जहरीले तत्व हमारी फसलों पर और उसकी गुणवत्ता पर नकारात्मक प्रभाव जरूर दिखाने लगे जो खाद्यान्नों फल फूल सब्जियों एवं दूर पानी के साथ नित्य हमारे शरीर में दाखिल हो रहा है और इसके नकारात्मक प्रभाव पर बराबर चर्चा हो रही है। इतना ही नहीं अब तो विशेषज्ञ कम से कम रासायनिक खादों खरपतवार नासी एवं कीटनाशकों के उपयोग पर बल दे रहे हैं। जैविक खेती की ओर बढ़ने के लिए प्रोत्साहित भी कर रहे हैं।
क्या आप इस सच को नहीं स्वीकार करते हैं की हमारे द्वारा उपयोग में लिए जा रहे रासायनिक पदार्थों से हमारे वातावरण में हमें नुकसान पहुंचाने वाले जीवाणु विषाणु सहित अनय सभी कारको की क्षमता पहले से कई गुना बढ़ गई है, दूसरी तरफ हमारी शरीर की प्रतिरोधक क्षमता घट गई है। हम उन रासायनिक पदार्थों के शरीर पर पड़ने वाले नकारात्मक प्रभावों की चर्चा नहीं करूंगा क्योंकि अधिकतर लोग भुक्तभोगी है। ऐसे दर्जनों जीवंत उदाहरण हम सभी की आधुनिक जीवन चर्या के साथ जुड़ी हुई है जिसकी समीक्षा करने पर निष्कर्ष यही निकलता है कि हम अपने जीवन के प्रति जानबूझकर नासमझ बने हुए हैं जो हमें बराबर कमजोर कर रहा है. दूसरी ओर हमारे आसपास जो नकारात्मक तथा हमें नुकसान पहुंचाने वाले कारक मौजूद हैं उनको मजबूत बना रही हैं। आज हम अपनी कमजोरी व नकारात्मक प्रभावो के मजबूती के उच्चतम प्रभाव के बीच पूरी पराकाष्ठा पर हैं। जहां यह साबित हो चुका है कि हमारे सामने बजाएं विकास एवं आवश्यकता को समन्वित तरीके से समझ कर आगे बढ़ने के अलावा कोई और विकल्प नहीं है। जैसा कि करोना वायरस को लेकर के गत तीन चार माह में विश्व स्तर पर और अपने देश में भी जिस प्रकार की चर्चा सामने आई है और आ रही है. उसमें जानकारों ने यह स्पष्ट किया है की यह वायरस कोई नया वायरस नहीं है बल्कि यह पहले की अपेक्षाकृत वर्तमान में नए और मजबूत रूप में हमारे सामने संकट बनकर खड़ा हुआ है।चिकित्सक यह भी मान रहे हैं कि इससे बचने के लिए शरीर में रोगों की प्रतिरोधक क्षमता बढ़ाकर और दिनचर्या में सावधानियों का ख्याल रखते हुए ही इससे बचा जा सकता है।
अब जो भी लोग हमारी बातों से अपनी सहमति नहीं रखते हैं उन सभी ऐसे महानुभाव से मेरा निवेदन है कि सभी अपने अपने कलेजे पर हाथ रख कर एकांत में बैठकर यह सोचे कि वाकई हमारे कृतयों से नुकसान पहुंचाने वाले कारकों की छमता बढी है कि नहीं बढ़ी है और अपेक्षाकृत मेरी शारीरिक क्षमता पहले से घटी है कि नहीं घटी है। उसके बाद अपनी टिप्पणी अवश्य दें आगे मैं कोशिश करूंगा कि करोना वायरस जनित और कौन-कौन से महत्वपूर्ण तथ्य सामने आए हैं जो हमारे कुकृत्य को बेनकाब कर चुके हैं और उनसे हमको सीख लेनी चाहिए कि नहीं लेनी चाहिए इस पर विचार करेंगे.
प्रदीप कुमार शुक्ला
pardeep shukal
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