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सियासत

क्या भारतीय प्रधानमंत्री और अमेरिकी राष्ट्रपति अपने देश के नागरिको को ‘ऑनलाइन गुंडा’ कहकर संबोधित करेंगे!

NDTV के पत्रकार रवीश कुमार ने ट्विटर पर लिखना छोड़ ही दिया था अब फेसबुक पर लिखना भी बंद कर दिया। कारण दिया सोशल मीडिया पर गुंडागर्दी। रवीश कुमार आप या आपके समर्थक पत्रकार कुछ भी कहे लेकिन, सोशल मीडिया’ सहमति,असहमति और विरोध का माध्यम है और रहेगा। पिछले 2 दशकों से जिस प्रकार आप लोगों ने अपनी पत्रकारिता के माध्यम से देश की जनता पर अपने एक विचारो को थोपते चले आ रहे हैं, ‘सोशल मीडिया’ आ जाने से लोगो को एक ताक़त मिली है कि आप लोगो से भी प्रश्न कर सके। आप लोग अभी तक एकतरफा पत्रकारिता करते हुए जनता को गुमराह कर रहे थें, ‘सोशल मीडिया’ द्वारा जनता आपसे प्रश्न करती है तो आप उन्हें ‘राष्ट्रवादी गुंडा’ कहकर बुलाते हैं।

<p>NDTV के पत्रकार रवीश कुमार ने ट्विटर पर लिखना छोड़ ही दिया था अब फेसबुक पर लिखना भी बंद कर दिया। कारण दिया सोशल मीडिया पर गुंडागर्दी। रवीश कुमार आप या आपके समर्थक पत्रकार कुछ भी कहे लेकिन, सोशल मीडिया' सहमति,असहमति और विरोध का माध्यम है और रहेगा। पिछले 2 दशकों से जिस प्रकार आप लोगों ने अपनी पत्रकारिता के माध्यम से देश की जनता पर अपने एक विचारो को थोपते चले आ रहे हैं, 'सोशल मीडिया' आ जाने से लोगो को एक ताक़त मिली है कि आप लोगो से भी प्रश्न कर सके। आप लोग अभी तक एकतरफा पत्रकारिता करते हुए जनता को गुमराह कर रहे थें, 'सोशल मीडिया' द्वारा जनता आपसे प्रश्न करती है तो आप उन्हें 'राष्ट्रवादी गुंडा' कहकर बुलाते हैं।</p>

NDTV के पत्रकार रवीश कुमार ने ट्विटर पर लिखना छोड़ ही दिया था अब फेसबुक पर लिखना भी बंद कर दिया। कारण दिया सोशल मीडिया पर गुंडागर्दी। रवीश कुमार आप या आपके समर्थक पत्रकार कुछ भी कहे लेकिन, सोशल मीडिया’ सहमति,असहमति और विरोध का माध्यम है और रहेगा। पिछले 2 दशकों से जिस प्रकार आप लोगों ने अपनी पत्रकारिता के माध्यम से देश की जनता पर अपने एक विचारो को थोपते चले आ रहे हैं, ‘सोशल मीडिया’ आ जाने से लोगो को एक ताक़त मिली है कि आप लोगो से भी प्रश्न कर सके। आप लोग अभी तक एकतरफा पत्रकारिता करते हुए जनता को गुमराह कर रहे थें, ‘सोशल मीडिया’ द्वारा जनता आपसे प्रश्न करती है तो आप उन्हें ‘राष्ट्रवादी गुंडा’ कहकर बुलाते हैं।

आप मीडिया को देश का चतुर्थ स्तम्भ होने की बात करते हैं तो आपको बता दूं सारे स्तंभों से बड़ा भारत की जनता है, उसे हक़ है आप चारो स्तंभों से प्रश्न पूछने का। जब आप अपनी पत्रकारिता पर दंभ भरते हैं तो मुझे आपका ‘प्राइम टाइम’ याद आता है कि किस प्रकार कितनी बहसों में तथ्यों के बिना भी किसी घटना को एक संगठन से जोड़ देते रहें हैं। मैं हाल के सिर्फ 2-3 घटनाओ का जिक्र कर देता हूँ।

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एक घटना दिल्ली के चर्च में हुई, जिसमे कुछ असामाजिक तत्वों ने चर्च में तोड़फोड़ की थी। आपने इसके लिए हिंदूवादी संगठनो को सीधे-सीधे जिम्मेदार ठहराया था, बाद में क्या हुआ पकड़े गए लोग ईसाई धर्म के और इसी चर्च से सम्बंधित थे। एक और याद आ रहा है ‘नन रेप’ वाली घटना, इसमे तो आप अपनी तथाकथित पत्रकारिता करते हुए इतने उग्र हो गए की चिल्लाते हुए बिना किसी तथ्य के इस घटना का भी सम्बन्ध हिंदूवादी संगठनो से करने लगे।बाद में क्या हुआ ये तो आपको पता ही हैं।

कुछ वर्ष पहले की बात करें तो किस प्रकार से आपलोगो ने ‘हिन्दू आतंकवाद’ का नाम दिया था और जनता के बीच एक अफवाह फ़ैलाने का दौर अपनी पत्रकारिता के माध्यम से चलाया था। आप लोगो ने पत्रकारिता से ऐसा माहौल तैयार कर दिया था कि हिन्दू शब्द सांप्रदायिक शब्द घोषित हो गया था।जब आपकी पत्रकारिता और प्राइम टाइम को लेकर कोई आपसे प्रश्न पूछ देता है तो वो आपके लिए ‘राष्ट्रवादी गुंडा’ हो जाता है।

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एकतरफा विचार थोपना, जनता को गुमराह करना आपकी पत्रकारिता में स्पष्ट दिखती है। ये ‘सोशल मीडिया’ है यहाँ हर प्रकार के लोग हैं आपकी घाटियां पत्रकारिता से परेशान होकर कुछ लोग आपके पेजो पर गाली-गलौच कर देते होंगे लेकिन इसका ये मतलब नहीं है कि आप ‘सोशल मिडिया’ पर उपस्थित लोगो को राष्ट्रवादी या ऑनलाइन गुंडा कहे। भारत के प्रधानमंत्री से लगाकर अमेरीका के राष्ट्रपति तक को ‘सोशल मीडिया’ पर गाली गलौच का सामना करना पड़ता है तो क्या भारत के प्रधानमंत्री और अमेरीका के राष्ट्रपति अपने देश के नागरिको को ऑनलाइन गुंडा कहकर संबोधित करेंगे।

दिक्कत सिर्फ गाली-गलौच का नहीं है रवीश कुमार जी। यहाँ दिक्कत ये है कि ‘सोशल मीडिया’ के आ जाने से अब लोग पत्रकारो से भी प्रश्न पूछ ले रहे हैं। और आप जैसे पत्रकारो का गन्दा खेल जो अबतक चल रहा था ‘सोशल मीडिया’ आ जाने से लोगो को आपकी सच्चाई दिखने लगी। आज ‘सोशल मीडिया’ ‘मेन स्ट्रीम मीडिया’ से कही ज्यादे ताक़तवर हो रहा है। पहले मीडिया ट्रायल में आप खुद मुद्दे सेट करते थे, उसपर बहस करके खुद ही फैसला सुना देते थे। लेकिन अब ‘सोशल मीडिया’ आने से देश की जनता अपना मुद्दा खुद तय करती है, सार्वजनिक बहस होता है और फैसला सुनाने की कोई जरूरत नहीं होतो लोग खुद ही समझ जाते हैं क्या सही है, क्या गलत है।

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गोरखपुर निवासी साफ्टवेयर डेवलपर पवन उपाध्याय के फेसबुक वॉल से.

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