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सुख-दुख

यूपी में सुरक्षित महसूस नही कर रहे पत्रकार, पढ़िए हाथरस में भास्कर के पत्रकार के साथ क्या हुआ…

हाथरस। अब तक हमने खबरे बहुत लिखी पर कल मेरे साथ बड़ी गजब और ऐसी घटना
घटी कि खुद की खबर लिखने लायक घटना घट गई। पत्रकारिता के अबतक के जीवन
काल में मेरी खबरों से जहां कुछ लोग खुश हुए तो कुछ लोग निराश भी हुए।
कुछ लोगों ने इधर उधर से धमकिया भी दिलवाई। पर में चुप न हुआ। पर कल तो
मेरी जान पर बन आयी मैं अपनी जान बचाकर किसी तरह बच कर अपने घर आया।

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हाथरस। अब तक हमने खबरे बहुत लिखी पर कल मेरे साथ बड़ी गजब और ऐसी घटना
घटी कि खुद की खबर लिखने लायक घटना घट गई। पत्रकारिता के अबतक के जीवन
काल में मेरी खबरों से जहां कुछ लोग खुश हुए तो कुछ लोग निराश भी हुए।
कुछ लोगों ने इधर उधर से धमकिया भी दिलवाई। पर में चुप न हुआ। पर कल तो
मेरी जान पर बन आयी मैं अपनी जान बचाकर किसी तरह बच कर अपने घर आया।

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सोमवार को मैं रोजाना की तरह सिटी स्टेसन पर आकर अपनी ट्रेन का इंतजार कर
रहा था। ट्रेन में समय था तो मैं लेपटॉप निकालकर उस पर कार्य कर रहा
था। कुछ युवक मेरे पीछे बेंच पर बैठ कर बातें करने लगे। मैंने उन्हें
अपनी चर्चा करते सुना तो मैं सतर्क हुआ। मैंने काम करते करते अपना ध्यान
उनकी बातों पर लगा दिया। उनकी बातें ठीक नहीं हो रही थीं। तभी ट्रेन आ
गयी। मैं अपना चालू लैपटॉप यों ही बिना शट डाउन किये ऊपर से बंद करके बगल
में लगाकर ट्रेन में चढ़ गया तो वो सभी युवक भी उसी डिब्बे में चढ़ने लगे। कुछ
फोन करने लगे। ट्रेन का क्रॉस होना था। थोड़े समय बाद और लोग आने लगे
जिनके हाथ में हाकी डंडे भी थे। एक व्यक्ति एक गेट पर खड़ा हो गया और खटाक
से उसने एक साइड का गेट बन्द कर दिया और मेरी बगल में खड़ा हो गया। दूसरी
साइड के गेट पर एक अन्य युवक खड़ा हो गया और अपने पैर मेरे आगे लगाकर ऐसे
खड़ा हो गया जैसे मेरा रास्ता बंद कर रहा हो। स्थिति भांप कर मैं आगे के
डिब्बों में पहुंचा तो उसमें भी लोग आने लगे और पूरा डिब्बा-सा घेर लिया।

आगे पहले स्टेशन मेण्डु पर आकर मैं उतरा और ट्रेन के चलने का इंतजार करने
लगा तो डिब्बे में से वही लोग उतरने लगे। कुछ लोग आगे पीछे के डिब्बों के
गेट के पास खड़े हो गए। मुझे अपनी जान संकट में प्रतीत हुई तो मैं ट्रेन
में नहीं चढ़ा और किसी वाहन से जाने का मन बनाया और वहां से बाहर निकलने
लगा। बाहर स्टेशन पर गाड़िया लगी मिलीं। मैं बाहर सड़क पर आया तो पूरा जाम लगा
हुआ था और कुछ लोग मेरा पीछा करते हुए गाड़ियों में आये और दोनों साइड
की ओर गाड़ियां चलने लगीं। मैं इधर उधर घूमकर तुरंत वहां से निकलकर वापस
स्टेशन पहुंचा। स्टेशन पर स्टेशन मास्टर से मिला जो अपने आपको मीणा करके
बता रहे थे। मेंने उन्हें सिटी स्टेशन से लेकर रोड तक की पूरी घटना बताते
हुए अपना परिचय दिया। उन्होंने गम्भीरता से लेते हुए चूँकि मेरा मोबाइल
बैटरी समाप्त होने के कारण बंद हो चुका था, मेरी पत्नी को फोन मिलाया और
मेरी बात कराई। उनको भी मैनें सारी घटना बता दी और जिन जिन लोगों को बता
सकता था उनको अपनी लोकेशन दी। यहां से मीणा जी ने मुझे किसी युवक की बाइक
पर बैठाकर बस में बैठाने के लिए भेज दिया तो फाटक का नजारा देखकर मेरा
दिमाग सन्न राह गया। सिकन्दराराव जाने वाले वाहन फाटक से इधर नहीं आ रहे
थे।  हाथरस जाने वाले वाहन जा रहे थे। सिकन्द्रराव रोड खाली पड़ा था।

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जो ट्रेन में मेरे साथ थे उनमें से कुछ लोग कई लोगों की मदद से आड़े टेड़े
वाहन लगाकर दबंगई से रोड रोक रहे थे। मैंने मामले को गंभीर मानकर हाथरस
जाने का मन बनाया। जब मैं हाथरस जाने के लिए दूसरी साइड आया तो जो लोग
पहले सिकन्द्रराव का रास्ता रोक रहे थे वह अब हाथरस का रोकने लगे। मेरे
आगे पीछे लोग घूमने लगे। उन लोगों को चकमा देकर मैं वहां से पास ही में
मौजूद शिव ढाबा पर आया और जब तक लेपटॉप में मेरा फोन लगा था इसलिए मेरा
फोन कुछ चार्ज हो चुका था। मैंने तुरंत अपने पत्रकार साथी धीरज उपाध्याय
को अपनी लोकेशन दी और घटना की जानकारी भी दी। तब तक वो सभी समझ चुके थे
कि मैं भांप गया हूं कि उनके इरादे नेक नहीं हैं। मैंने होटल पर भी
सुरक्षित होने के लिए वहां घूम फिर के देखा तो वहां भी संदिग्ध लोग ईकट्ठे
हो रहे थे। वहां मुझे सेफ नहीं लगा तो मैं थोड़ा आगे हलवाई की सी दुकान थी,
वहां गया। दुकानदार से आग्रह किया भाई मेरे पीछे कुछ लोग लगे हैं, मेरी
जान को खतरा है, मेरा सहयोग करो। वो ‘दुकान से बाहर उतरो उतरो’ कह कर मुझे
बाहर धकेलने लगा और शोर करने लगा। जो लोग मेरे पीछे थे वही भीड़ बनकर आने
लगे तो मैंने दुकान के अंदर घुसकर उसका शटर डालकर अंदर से बंद कर लिया।

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दुकान के अंदर से कुछ दिख नहीं रह था। केवल बाहर की आवाज़ आ रही थी। नीचे
से झांककर देखने पर केवल टाँगे ही दिख रहीं थीं। मेरा फोन बंद हो चुका था
तो मैंने मोबाइल उसी दुकान में चार्जिंग पर लगाया और उसके चार्ज होने की
प्रतीक्षा करने लगा। बाहर से कुछ लोग लात और ईंटो से शटर बजाने लगे ।
मैंने शटर के जिस लॉक में ईंट फसाकर उसे रोक रखा था, वह खुलने लगा तो मैंने
तुरन्त ऊपर टंगी चाबी को उतारा और जल्दी जल्दी चाबी से लॉक लगा
दिया। इतनी देर में कुछ स्थानीय लोग भी वहां आ गए तो वही संदिग्ध लोग
मेरे बारे में उल्टा सीधा बोलकर उनके दिमाग में गलत छवि डालने लगे। मैं
अंदर से सब बोल बोल कर सबको बता रहा था कि भाई में कोई गलत आदमी नहीं
हूं। पत्रकार हूँ। मेरा मोबाइल अंदर चार्ज हो रहा है। में खुद जंगसन
प्रभारी जी को फोन मिलाऊँगा। थोड़ी देर रुक जाओ। मैं अपनी जान को खतरे में
भांपकर इस दुकान में घुसा हूँ। पुलिस या मेरे किसी परिचित के आने के बाद
ही शटर खोलूंगा। वो सब लोग लात मारकर फिर शटर बजाने लगे। तभी आवाज आने
लगी पुलिस आ गयी, आ गई, अब बात कर ले। मैंने अंदर से क्योंकि कुछ दिख नही
पा रहा था। मैंने पूछा कि जंगसन प्रभारी जी हैं क्या? मैं उन्हें जानता
हूँ। तो कोई उनकी सी आवाज में कहने लगा हां हूँ अब खोल दे। मुझे शक हुआ तो
मैंने कहा कि सर प्रभारी जी तो नहीं हैं। मैं उन्हें जानता हूँ। हाथरस भी
रहे हैं। पहले मैं उन्हें उनके सीयूजी पर फोन मिलाऊँगा। तब खोलूंगा। आवाज
आई तुझे अंदर से कुछ दिख नहीं रहा तो क्या पुलिस का सायरन भी सुनाई नहीं
पड़ रहा है। फिर तेजी से सायरन बजने लगा। मैंने कहा सायरन प्रूफ नहीं करता कि
बाहर पुलिस है। मैं पहले बात करूंगा तब खोलूंगा। फिर तो बह सब शटर तोड़ने
पर उतारू हो गए। एक तरफ का लॉक ठीक से लगा नहीं था सो खुल गया और नीचे से
तीन सिपाही दिखे। मेरी जान में जान आयी और मैं शटर खोलकर बाहर आने लगा।

पब्लिक बहुत थी पर शुरू से रुकने वाले वही लोग पब्लिक के बीच में घुसकर
मेरे साथ जमकर गुस्सा उतार रहे थे। ज्यादातर पब्लिक अचंभित सी होकर नजारा
देख रही थी। मौके पर आए सिपाहियों ने जबरदस्ती मुझे एक गाड़ी में डालकर
ले जाने लगे। वहां उस वक्त जो भी लोग भीड़ के रूप में मुझे दिख रहे थे मैंने उन्हें
चीख चीख कर बताया भाइयों मैं कोई अपराधी नही हूँ, मैं एक पत्रकार हूँ।
अपनी जान बचाने के लिए इस दुकान में शरण ली। मेरे साथ ठीक नहीं हो रहा है।
कोई मुझे पूछता हुआ आये तो बता देना पुलिस ले गयी है जंगसन। गाड़ी में एक
नेता टाइप के व्यक्ति और दो पुलिस कर्मी और गाड़ी का चालक थे। नेता टाइप
वाला व्यक्ति बोल रहा था कि ज्यादा बड़ा पत्रकार बनता है आज तुझे बीजेपी
वाले बचाये। मैंने कहा कि मेरा किसी बीजेपी बीएसपी किसी से कोई लेना देना
नहीं है। मैं पत्रकार हूं। वो पुलिस के सामने ही मारपीट करने लगा। मेरा
फोन छीन लिया। एक पुलिस  कर्मी ने उसे बमुश्किल रोका। मुझे थाने लाकर
बैठा दिया गया। लोग अब थाने आने लगे। मैं देखकर हैरान था कि जिन लोगों
से मैं बच कर भाग रहा था, थाने में वही लोग ज्यादा नजर आ रहे थे। मैंने
अपने घर फोन करने की जिद करना शुरू किया तो तीन सिपाही जो मुझे लेकर आये
थे जबरदस्ती हथकड़ी डालने लगे। मैं विरोध करते हुए चिल्लाने लगा
हथकड़ी क्यों लगा रहे हैं, मैं कोई खूंखार अपराधी नहीं तो हूँ, अपनी जान
बचाने का ही प्रयास किया था। मैं एक पत्रकार हूँ। मेरे घर सूचना दो।

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इस पर तीनों सिपाही बल प्रयोग करने लगे पर मैं उनके काबू में नहीं आया और
चीख चीख कर लोगों को अपना परिचय और घटना बताने लगा। तभी जो लोग घटना
में शुरू से इन्वोल्व थे और थाने में डेरा जमाए हुए थे उनमें से वही नेता
टाइप व्यक्ति आये और अपनी भड़ास थाने के अंदर ही निकालने लगे। मेरी जोर
जोर की आवाज के बाद थाना प्रभारी जी ने पुलिस को बुलाया। थोड़ी देर बाद
थाना प्रभारी जी ने मुझे बुलाया। वहां लगी कुर्सी पर पहले से वही नेता
टाइप व्यकि बैठे हुए थे। थाना प्रभारी ने जानकारी ली तो मैंने उन्हें
पूरी घटना बताई और बताया कि स्टेशन मास्टर से भी मिलकर उन्हें पूरी घटना
बताकर आया हूँ। वहीं से एक युवक बाइक से फाटक पर छोड़ गया। वो लोग मेरे
पीछे थे उनसे बचने के लिए मैंने दुकानदार से हाथ जोड़कर जान को खतरा बताते
हुए सहयोग मांगा था। उसको बिना कोई नुकसान पहुंचाए उसकी दुकान में केवल
सुरक्षित होने के लिए अपने आप को अंदर सिक्योर किया था। मैंने थाना
प्रभारी जी से कहा कि मेरे परिवार को सूचित कीजिए। पर वह सुन नहीं रहे थे।

इसी बीच हाथरस से कुछ पत्रकार साथी आ गए तब जाकर मेरे घर पर फोन किया
गया। तब तक पिताजी सिकन्द्रराव कोतवाली जा चुके थे और मेरी पत्नी ने भी
थाना प्रभारी को फोन पर बताया पापा सिकन्द्रराव पुलिस के पास गए हैं,
उनके साथ आ रहे हैं कहाँ पर आना है। पिताजी कुछ लोगों को लेकर जंगसन थाने
पहुंचे और अपनी सुपुर्दगी में घर लाये। कल मैंने एक ऐसी घटना का
साक्षात्कार किया जिससे में अंदर तक सहम गया। पर परमात्मा की कृपा रही की
मुझे सूझबूझ दी और जिंदा घर आ गया क्योंकि घटना कराने वालों ने योजना तो
बड़ी सोच समझकर और काफी लोगों को लगाकर बड़ी पॉवरफुल  बनाई थी। पर मारना और
बचाना ऊपर वाले के हाथ में है। जान तो बच गयी पर कहीं तक वह लोग सफल भी
हो गए। इस घटना को मैं जीवन भर भूल नहीं सकूँगा। मैंने अपनी अब तक की
पत्रकारिता में जनता से जुड़े हुए मुद्दों को उठाकर जहां कुछ लोगों के
ह्रदय में जगह बनायी तो वहीं कुछ लोगों को निराश भी किया पर आज मुझे
एहसास हो गया कि कलम की आवाज रोकने के लिए पॉवर वाले लोग इतना नीचे जा
सकते हैं। इतनी बड़ी और पॉवरफुल योजना कोई आम बुद्धि वाला व्यक्ति नहीं
बना सकता। खैर जो भी हुआ….. मैं चुप नहीं बैठूंगा।

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मेरे साथ हुई घटना नजरअंदाज कर पुलिस ने मेरी बात पर ध्यान नहीं दिया। मैं
बताता रहा कि मैं अपनी जान बचाकर स्टेशन पर बताकर आया हूँ। मेरे पीछे
बदमाश थे। अगर पुलिस मेरी बात को भी गंभीरता से लेकर जांच करती तो उन
लोगों को पकड़ा जा सकता था। पर पुलिस ने इस ओर कोई धयान नहीं दिया। जिस
दुकान में मैने शरण ली थी वहां मेरा बैग दुकान के अंदर तख्त पर रखा था
जिसमे मेरा लेपटॉप, कैमरा आदि सामान था। उसमें से मेरा लेपटॉप गायब था।
बाकी सब समान मुझे मिल गया। मैंने इसके शिकायत की तो इसपर भी किसी ने कोई
ध्यान नहीं दिया। मेरी रिपोर्ट तो लिखना दूर मेरी बात तक नहीं सुनी गयीं।
सरजी घटना के बाद से में काफी आहत और दहशत में हूँ।

संदीप पुण्ढीर, ब्यूरो चीफ
दैनिक भास्कर हाथरस
सम्पर्क सूत्र-  9927849965

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