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अखबारों और न्यूज चैनलों के फेसबुक पेज न्यूज की आड़ में गंदगी परोसते हैं

Sushant Jha : पिछले साल भर में जितने भी हिंदी समाचार पत्र या चैनलों के फेसबुक पेज थे लगभग सबको अनलाइक कर चुका हूं, क्योंकि ये सिर्फ न्यूज की आड़ में ‘गंदगी’ परोसते हैं। फेसबुक पेज पर भी वे ऐसी खबरों को प्रमोट करेंगे जो अरुचिपूर्ण हो, अव्वल आप उनकी साइट पर देखें तो भले ही वो खबरें पूरी खबरों में महज 5 फीसदी हो-लेकिन फेसबुक पर अक्सर पोर्न किस्म की खबरें ही प्रमोट की जाती है या उसका एक शातिराना अंतराल होता है।

<p>Sushant Jha : पिछले साल भर में जितने भी हिंदी समाचार पत्र या चैनलों के फेसबुक पेज थे लगभग सबको अनलाइक कर चुका हूं, क्योंकि ये सिर्फ न्यूज की आड़ में 'गंदगी' परोसते हैं। फेसबुक पेज पर भी वे ऐसी खबरों को प्रमोट करेंगे जो अरुचिपूर्ण हो, अव्वल आप उनकी साइट पर देखें तो भले ही वो खबरें पूरी खबरों में महज 5 फीसदी हो-लेकिन फेसबुक पर अक्सर पोर्न किस्म की खबरें ही प्रमोट की जाती है या उसका एक शातिराना अंतराल होता है।</p>

Sushant Jha : पिछले साल भर में जितने भी हिंदी समाचार पत्र या चैनलों के फेसबुक पेज थे लगभग सबको अनलाइक कर चुका हूं, क्योंकि ये सिर्फ न्यूज की आड़ में ‘गंदगी’ परोसते हैं। फेसबुक पेज पर भी वे ऐसी खबरों को प्रमोट करेंगे जो अरुचिपूर्ण हो, अव्वल आप उनकी साइट पर देखें तो भले ही वो खबरें पूरी खबरों में महज 5 फीसदी हो-लेकिन फेसबुक पर अक्सर पोर्न किस्म की खबरें ही प्रमोट की जाती है या उसका एक शातिराना अंतराल होता है।

क्या आजतक, क्या एबीपी और क्या नवभारत कोई इसमें पीछे नहीं है। भास्कर तो कई बार इनका बाप लगता है। इनके कर्ताधर्ताओं का आत्मविश्वास इतना डोला हुआ है कि उन्हें लगता है कि हम हिट्स के मामले में दूसरों से पिछड़ जाएंगे। हिंदी टीवी का तमाम कूड़ा लगता है सांस्थानिक हिंदी ऑनलाइन न्यूज में आ गया है। मेरे बहुत सारे वरिष्टों को ये बात कड़वी लगेगी-जिनके हाथ में उन संस्थाओं की बागडोर है लेकिन कहे बिना नहीं रह पा रहा हूं। ये बहस पुरानी है कि पत्रकारों पर बहुत दबाव है, लेकिन कई बार बहुत ‘दबाव’ की आड़ में जब पत्रकार अपनी ‘रीढ-विहीनता’ छुपाने लगते हैं तो वाकई उन पर गुस्सा आता है। क्या दबाव सिर्फ पत्रकार पर है? या किसानों और ठेकेवाले मास्टरों पर भी है?

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पत्रकार सुशांत झा के फेसबुक वॉल से.

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