के. सत्येन्द्र-
हमारे देश में न्याय पाने की पहली सीढ़ी पुलिसिया गलियारों और थानों से ही होकर गुजरता है। यहीं से झूठ, सच, मक्कारी, बेईमानी, घूसखोरी के सारे प्रपंच शुरू होते हैं जिनकी परिणीति अदालत की सीढ़ियों तक पहुँचकर थम जाती है। लड़कियों और महिलाओं के हितों की रक्षा के हजारों दावे करने वालो के दावे कितने खोखले है यह किसी से छुपा नहीं है।
ताजा मामला यही बताता है कि योगी जी के शहर की पुलिस निरंकुश हो चली है। इन पुलिसियों की मानवीय संवेदनाएं मर चुकी हैं। इन्हें हर वक्त येन केन प्रकारेण माल कमाने की चिंता खाये जाती है इसलिए ये झूठ, सच और न्याय, अन्याय के बीच का फर्क भुला बैठे हैं।
लगता है कि गोरखपुर के गोला थानेदार साहब भी ऐसे ही पुलिसियों में से एक हैं। दो दिन पहले एक बच्ची को एक लापरवाह गाड़ी चालक ने टक्कर मार दी और मौके पर गाड़ी छोड़कर फरार हो गया। बच्ची को गंभीर स्थिति में अस्पताल ले जाया गया। बच्ची के पैर का अंगूठा काटकर निकलना पड़ा।

दूसरी तरफ 112 नंबर की डायल सेवा आरोपी की गाड़ी पकड़कर ले आयी और थाने में बंद कर दिया। बच्ची के पिता ने बताया कि जब वह तहरीर लेकर थाने पहुँचा तब तक थानेदार साहब अपना खेल कर चुके थे। मुकदमा लिखना तो दूर गाड़ी भी थाने से छोड़ दी गयी और बच्ची के पिता को बिन मांगे पुलिसिया अंदाज में एकदम मुफ्त सलाह दी गयी कि सुलह कर लो।

हालांकि थानेदार साहब अब भी ऐसी किसी घटना और तहरीर मिलने से अनभिज्ञता जता रहे हैं। जबकि इस अनभिज्ञता वाली पोल की होल से उच्च अधिकारी अच्छी तरह वाकिफ हैं। अब थानेदार साहब को कौन बताये की बच्ची का जीवन खराब हो चुका है। कोई पैसा अब उसके पैर का अंगूठा उसे वापस लाकर नहीं दे सकता। आज बच्ची का पिता बेबस है और बेबसी में यही दुआ कर रहा है कि भगवान थानेदार साहब के साथ भी कुछ ऐसा ही न्याय कर दे जैसा थानेदार साहब ने उसके साथ किया है।