सच बोलता पत्रकार असहिष्णुता का सबसे बड़ा शिकार
वाराणसी। देश में सहिष्णुता और असहिष्णुता को लेकर खूब घमासान मचा। इस मुद्दे को लेकर फिल्मी हस्तियों सहित धर्माचार्यों ने भी खूब सुर्खियां बटोरी। स्थिति यह हुई कि संसद में भी जमकर हंगामा हुआ। अभिनेता आमिर खान ने तो यहां तक कह डाला कि उनकी पत्नी को देश में डर लगता है। उनके बयान के बाद मानो भूचाल आ गया। हर खास-ओ-आम खुद को असहिष्णुता का शिकार बताने लगा। कुछ समय के लिए लगा पूरा देश ही असहिष्णुता की आग में झुलस गया हो। लेकिन समय के साथ यह शब्द धीरे-धीरे ठंडा होने लगा। सच कहे तो इस देश में असहिष्णुता का सबसे बड़ा शिकार वह पत्रकार है जो बेबाक बोलता है, सही-गलत को अपने विवेक की तराजू में तौलता है।
यह सिलसिला आज का नहीं है, जब भी पत्रकार ने सच बोला तो उसका परिणाम भुगतना पड़ा और कलम पर तरह-तरह के दबावों के रूप में असहिष्णुता को सहना पड़ा। असहमत लोगों की ओर से खड़े किए गए प्रतिरोध, सार्वजनिक अपमान से लेकर मौत के घाट उतार दिए जाने तक कुछ भी हो सकते है। अमर शहीद गणेश शंकर विद्यार्थी से लेकर सुल्तानपुर के पत्रकार तरूण मिश्रा की शहादत इस असहनशीलता का उदाहरण है। भ्रष्टाचार के कोख से उपजे यह असहिष्णुता हर रोज ही पत्रकार को झेलनी पड़ती है। कभी धमकी के रूप में तो कभी प्रलोभन के रूप में। अब दोनों से बात नहीं बनती तो गोली के रूप में। बावजूद इसके सियासतदां भ्रष्टाचार, अनाचार, अत्याचार की हर घटना के बाद बड़ी बेशर्मी से इसे जब न तब ‘मीडिया का खेल’ करार देते है। कथित चौथे स्तम्भ के हत्या की संख्या में हो रहे इजाफे सरकार सहित नौकरशाहों को कठघरे में खड़ा करता है।
विधानसभा चुनाव नजदीक आते ही सपा सरकार ने पत्रकारों को झुनझुना देना शुरू कर दिया है। ताकि पिछले चार सालों में पत्रकारों पर हुए जुल्म पर मरहम लगाकर उसे दबाया जा सके। हाल ही में अखिलेश सरकार ने पत्रकारों को एक लालीपाप दिया हेल्पलाइन का। अब यक्ष प्रश्न यह कि हेल्पलाइन पर शिकायत के बाद मामले की जांच कौन करेगा। सेल्फी लेने पर एक नाबालिग को सीखचों तक पहुंचाने के बाद सुर्खियों में आई बुलंदशहर की डीएम बी. चंद्रकला ने एक पत्रकार से मात्र इस बात पर बदतमीजी की कि वह डीएम महोदया का भी पक्ष जानना चाहता था। यह तो तय है कि पत्रकार का हर प्रश्न सामने वाले के मनमुताबिक नहीं हो सकता। जब जिले के जिम्मेदार जिलाधिकारी ही बदमिजाज हो तो पत्रकार आखिर अपनी शिकायत किससे करें।
पीएम का संसदीय क्षेत्र भी इससे अछूता नहीं है। जहां की सुरक्षा व्यवस्था अभेद्य होनी चाहिए वहां खुलेआम सत्ताधारी पक्ष के छुटभैय्या नेता और अस्पताल संचालक गुण्डागर्दी पर अमादा है। समाचार संकलन करने गये एक पत्रकार को सिगरा क्षेत्र में लाठी-डंडो से लैस सत्ताधारी पक्ष के मनबढ़ों ने पीटायी की, तो दुसरी ओर मंडुवाडीह चौराहे पर स्थित अंगार नर्सिंग होम में एक खबर की पुष्टि करने गये पत्रकार के साथ डा. डी.एस. सिंह ने बदसलुखी की और अस्पतालकर्मियों ने जान से मार डालने की धमकी तक दे डाली। दोनों मामले ऐसे थे जिसमें पत्रकार सिर्फ अपनी ड्यूटी बजा रहा था, फिर भी इस असहिषुण लोगों ने इसे अपने अहं पर चोट की तरह लिया और सियासी सामंतशाही से ग्रसित होकर जुबान की बजाए इसका उत्तर हमले के रूप में दिया। दोनों मामले में पुलिस मूकदर्शक की भूमिका में रही। वैसे भी सियासत में इन दिनों जो संस्कृति प्रचलन में है उसमें खादी की दबंगई खाकी की हनक पर भारी पड़ रही है। लोकतंत्र के लिए यह कोई अच्छा संकेत नहीं है।
बनारस से अवनिन्द्र कुमार सिंह की कलम से.