हिन्दुस्तान टाइम्स ग्रुप में मजीठिया वेज बोर्ड को लागू करने के सवाल पर पटना डिप्टी लेबर कमिश्नर के यहां सुनवाई के दौरान नया मोड़ आया। बार-बार झूठ और भ्रष्ट हरकतों को अपनाने वाली प्रबंधन ने नई चाल चली और 4 अगस्त को उसने वेज बोर्ड लागू करने के संदर्भ में मांगी गई सारी सूचनाओं का अभिलेख लेकर आने के लिए जिस प्रबंधन ने खुद समय लिया था, अचानक भाग खड़ा हुआ। सुनवाई का समय दो बजे दिन तय था और ढाई बजे तक प्रबंधन की तरफ से कोई नहीं पहुंचा। उसके तत्काल बाद एक फोन आया- ”मैं एचटी ग्रुप का नया एचआर हेड अभिषेक सिंह बोल रहा हूं। पुराने एचआर हेड रविशंकर सिंह का ट्रांसफर कर दिया गया है। मैं नया हूं इसलिए कुछ समय चाहिए। मैं इसकी लिखित सूचना और आवेदन भेज रहा हूं।” मगर दो घंटे बाद तक भी लिखित सूचना और आवेदन नहीं आया। अब सुनवाई 21 अगस्त को होगी।
पत्रकारिता को सत्ता की दलाली का मंडी बनाने वाले एक पत्रकार के साथ दिल्ली से आए एचआर हेड राकेश गौतम ने जब देख लिया कि न तो शिकायतकर्ता और न ही सुनवाई करने वाला डिप्टी लेबर कमिश्नर बिकने-डिगने को राजी है तो बिहार सरकार के मुख्य सचिव के पास डीएलसी के खिलाफ झूठी शिकायत लेकर पहुंच गए और हटाने का दबाव देने लगे। चीफ सेक्रेटरी ने श्रम विभाग के प्रधान सचिव को निर्देश दिया कि वे इसे देखें। प्रधान सचिव ने मुख्य सचिव को तत्काल इतना जरूर बताया कि हमारा डीएलसी ईमानदार, योग्य और कर्मठ अधिकारी के रूप में जाना जाता है, वह ऐसी कोई गलती कर ही नहीं सकता।
बाद में चीफ सेक्रेटरी को बताया गया कि सुप्रीम कोर्ट के मजीठिया वेज वोर्ड को लागू कर पत्रकारों और गैर पत्रकारों को समुचित वेतनमान देकर ठेकेदारी प्रथा से मुक्त कराने के सख्त निर्देशों का अनुपालन का मामला है तो उन्होंने भी कह दिया कि ठीक है काम करने दो।
इधर गत 20 जुलाई को भारत सरकार के श्रम सचिव ने सभी मुख्य सचिव को पत्र भेज कर लिखा है कि इस मामले मे सुप्रीम कोर्ट के सख्त निर्देशों का अनुपालन सुनिश्चित कराने के लिए वर्किंग जर्नलिस्ट की धारा 17 मे दिए गए प्रावधानों की शक्तियों का इस्तेमाल करें। इस प्रावधान के अन्तर्गत संस्थान की संपत्ति जब्त कर रिकवरी करने का आदेश जारी करने का अधिकार दिया गया है। संस्थान की एक कोशिश है कि झूठे आरोप और फर्जी मुकदमों का सहारा लेकर जैसे भी हो देरी कराया जाय।
एक बार इस झूठ के फर्जीवाड़े मे खुद संस्थान की भद हो गई है। 19 जुलाई को सुनवाई के दौरान संस्थान के वकील आलोक सिन्हा ने एक कंप्लेन फाइल किया कि याचिकाकर्ता दिनेश सिंह ने सुनवाई के दौरान अपशब्दों का इस्तेमाल किया। वकील खुद नहीं आए मगर सुनवाई में संस्थान के एचआर हेड उपस्थित थे। डीएलसी खुद झूठ से हतप्रभ थे और एचआर हेड से पूछा कि यह झूठा और बेबुनियाद आरोप आप कैसे लगा सकते हैं जब कि यहां कोई ऐसी बात हुई ही नहीं। एचटी के एचआर हेड ने स्वीकारा कि ऐसी कोई बात नहीं हुई थी। तत्काल सुनवाई स्थल से दिल्ली एचआर डायरेक्टर से बात की गई। एडवोकेट का यह झूठ उल्टा पड़ते देख दिल्ली की सहमति लेकर जल्दी-जल्दी में आरोप वापस ले लिया गया। मगर इस झूठ के आधार पर डीएलसी को मैनेज करने में असमर्थ एचआर हेड को तत्काल हटा दिया गया।
नये एचआर हेड आ चुके हैं। अब संस्थान के दलाल बंधु पत्रकार ने कमान संभाल ली है। दिल्ली से एचआर डायरेक्टर को सत्ता के गलियारे में नगरी-नगरी और द्वारे-द्वारे लिए वही घूम रहे हैं। अभी तक मैनेज करने के नाम पर भारी पैसे ले चुके हैं, ऐसा आरोप है लेकिन आउटपुट जीरो है। उसी के कहने पर संस्थान अंतिम समय में सुनवाई में उपस्थित नहीं हुआ। ऐसे भी संस्थान के पास अपनी झूठ छिपाने के लिए कुछ बचा नही है।