रविंद्र सिंह-
भारत का भ्रष्टाचार से काफी पुराना नाता है इसकी वजह यह है दोनों की राशि भी एक है. देश में भ्रष्टाचार के नए-नए आयाम लंबे समय से सामने आते रहे हैं. फिर भी भ्रष्टाचार के नवाचार को सीखना हो तो इफको के संचालक मंडल की कार्य संस्कृति को जान लीजिए.
यहां नियम कानून सब कुछ ताक पर रखकर काम किया जाता रहा है. लोकतांत्रिक सहकारी समितियां स्वायत्त और स्व सहायता संगठन होती हैं, जिनका नियंत्रण उनके सदस्यों द्वारा किया जाता है. यदि वे सरकार सहित अन्य संगठनों के साथ कोई समझौता करती हैं, ऐसा वे उन शर्तों पर करती हैं जिससे उसके सदस्यों का लोकतांत्रिक नियंत्रण तथा सहकारी समिति की स्वायत्ता सुनिश्चित होती हो.
सहकारी समिति में समय-समय पर सदस्य और कार्मिकों को प्रशीक्षण भी दिया जाता है ताकि वे अपने विकास के रास्ते को आगे बढ़ाते हुए समाज के साथ कन्धे से कन्धा मिलाकर सहकारी आंदोलन को सफल बना सकें. यह समिति पूरी तरह से स्वैच्छिक संगठन होती है, जो लैंगिक, सामाजिक, नस्लीय, राजनीतिक, धार्मिक भेदभाव रहित हर ऐसे व्यक्ति के लिए खुली होती हैं जो उनकी सेवाओं का उपयोग कर सके और सदस्य बनकर सहकारिता के महत्व को साकार कर सकें.
कहने के लिए सहकारी समिति इफको लोकतांत्रिक संगठन है जिसका नियंत्रण उसके सदस्य करते हैं और नीतियां निर्धारित करने तथा निर्णय लेने में सक्रिय भूमिका निभाते हैं. निर्वाचित प्रतिनिधि के रूप में सेवा प्रदान करने वाले पुरूष और महिलाएं सदस्यता के प्रति जवाबदेह होते हैं, बाकी के अदिकारों का खुलेआम हनन किया जा रहा है.
संस्था में बार-बार वही निदेशक चुनकर आने से माफिया होने का सबसे बड़ा सबूत है. इफको में सदस्यों की आर्थिक प्रतिभागिता की बात की जाती है लेकिन यहां चंद लोगों का कब्जा हो चुका है कागजों में संस्था को सहकारिता के आधार पर संचालित कर दावा तो करते हैं लेकिन लाभ स्वयं और अपने सिंडीकेट को देते हैं. इफको में सहकार की बात की जाती है लेकिन स्थानीय व क्षेत्रीय स्तर पर सदस्यों के हितों की अनदेखी कर सहकारिता में विश्वास के नाम पर कदम दर कदम राष्ट्र को धोखा दिया जा रहा है.
सहकारिता की परिभाषा के विपरीत इफको में चंद लोग देश 5.5 करोड़ किसानों की चिंता करने के बजाए अपनी चिंता में लगे हुए हैं. प्रबंधन ने किसान सेवा ट्रस्ट व किसान सेवा फंड नाम से 2 संस्थाएं संचालिक की हैं. इन संस्थाओं में किसानों के नाम पर अब तक करोड़ों का धन हजम किया जा चुका है.
किसानों के होनहार बच्चों को शिक्षा की मुख्य धारा से जोड़ने के लिए सुरेंद्र कुमार जाखड़ नाम से छात्रवृत्ति योजना इसलिए संचालित की गई है ताकि इफको प्रबंधन द्वारा उनकी कराई गई हत्या को छुपाया जा सके. इफको की उपविधियों में उपलब्ध प्रावधानों के अनुसार रिप्रेजेंटेटिव जनरल बॉडी (RGB) चुनती है. यह बॉडी सर्वोच्च है और इफको की नीति सिर्फ फाइलों में तय कर रही है यहां भी उदय शंकर का हस्तक्षेप है. वह निजी लाभ के लिए जनरल बॉडी के सदस्यों को गरीब किसानों का खून पिलाकर नीतियां बनाने में लंबे समय से सफल हो रहे हैं.
इस बात का जीता जागता सबूत है संस्था में भ्रष्टाचार छुपाने के लिए सत्ता पक्ष की सरकार के पार्टी, पार्टी विचारधारा से अध्यक्ष और उपाध्यक्ष बनाकर अपना उल्लू सीधा किया जा रहा है.
लंबे समय से बलविंदर सिंह नकई, बादल गुट पंजाब, एनपी पटेल, कांग्रेस समर्थक, गुजरात को बारी-बारी से अध्यक्ष और उपाध्यक्ष की कुर्सी मिलती रही है. केंद्र में सत्ता परिवर्तन के बाद उदय शंकर ने सरकार की आंखों में धूल झोंकते हुए एनपी पटेल को अध्यक्ष से उपाध्यक्ष और बलविंदर सिंह नकई को उपाध्यक्ष से अध्यक्ष बनाकर अपने आप को सरकार का समर्थक साबित कर दिया है.
एक कहावत है जो हवा के साथ-साथ चलते हैं उनको अपनी राह पथरीली, कंटीली होने का आभास नहीं होता है और मंजिल तक आसानी से पहुंच जाते हैं. ऐसा ही खेल उदय शंकर लंबे समय से खेलते आए हैं.
बीते वर्ष PMO की संस्तुति पर इफको में उदय शंकर के भ्रष्टाचार की जांच CBI को सौंप दी गई है. अब अपनी मुश्किलें बढ़ती देख उसे बचने के लिए मजबूत सुरक्षा कवच की जरूरत थी. इसी बीच एनपी पटेल ने खुद को फंसता देख भाजपा के स्तंभ पोरबंदर सांसद विट्ठलभाई रदडिया को अध्यक्ष बनाने का सुक्षाव दे दिया. एनपी पटेल के मन में बार-बार एक ही सवाल उठ रहा था कि CBI जांच में इफको का भ्रष्टाचार खुलकर सामने आए उससे पहले प्रबंध कर लिया जाए. श्री रदडिया गुजरात विधान सभा में कई बार विधायक रह चुके हैं. 2014 में दुबारा भाजपा सांसद के रूप में संसद पहुंचे हैं. पार्टी में उनका कद काफी बड़ा है. इफको बोर्ड की 479वीं बोर्ड मीटिंग में सोची समझी साजिश के तहत उन्हें इफको का उपाध्यक्ष चुन लिया गया.
उदय शंकर ने देखा की केंद्र सरकार हर मंत्रालय में गुजरात कैडर के IAS को तरजीह दे रही है और बाकी को हाशिए पर डाल दिया है इसलिए सरकार की मंशा के तहत काम कर वाहवाही लूटने और खुद को बचाने का अघोषित प्रयास किया है. बोर्ड में संविधान के तहत 21 निदेशक होने चाहिए जिसमें एक-एक पिछड़ी और अनुसूचित जाति से होना आवश्यक है. लेकिन यहां निदेशक की संख्या 31 है और सबसे बड़ी बात यह है निदेशक सरकार द्वारा नियंत्रित समिति से नहीं बनाए गए हैं. बल्कि निजी सहकारी ऐसी समिति को तरजीह दी गई है जिससे किसानों का कोई लेना-देना नहीं है.
इफको में सहकारी समिति की संख्या सन् 2013-14 तक 39084 हो चुकी थी और अचानक 2016-17 में घटकर 36666 रह गई है. जबकि MSCS एक्ट परिवर्तन में मोर डेमोक्रेसी की बात की गई थी. सदस्य संख्या घटने का कारण भी बोर्ड बताने को तैयार नहीं है. इन्हीं समिति के माध्यम से देश के लघु और सीमांत खेतीहर 5.5 करोड़ किसान सीधे तौर पर इफको से जुड़े हुए हैं. बोर्ड द्वारा भ्रष्टाचार का नवाचार अपना कर संस्था के धन का दोहन किया जा रहा है.
बरेली के पत्रकार रविंद्र सिंह द्वारा लिखित किताब ‘इफ़को किसकी?’ का पांचवा पार्ट.
जारी है…
चौथा पार्ट.. इफको की कहानी (4) : हरे-हरे नोटों की दम पर अवस्थी ने IFFCO को अपंग बना रखा है!