वीरेंद्र यादव-
कल टाइम्स ऑफ इंडिया के लखनऊ संस्करण की इस संलग्न खबर के अनुसार इफ्को के प्रबंध निदेशक उदयशंकर अवस्थी की 54 करोड़ के मूल्य की संपत्ति प्रवर्तन निदेशालय ने छापामारी के बाद जब्त की है. इसके पूर्व 100 करोड़ की संपत्ति हवाला और शेल कंपनियों द्वारा अर्जित जब्त की जा चुकी है.
यानि डेढ़ अरब की अवैध संपदा की उदयशंकर अवस्थी और उनके बेटे से जब्ती हो चुकी है. लेकिन इस सबके बावजूद उनकी गिरफ्तारी होना तो दूर वे इफ्को के प्रबंध निदेशक पद पर बरकरार हैं. संभवतः वे आजीवन इस पद. पर बरकरार रहने की अर्हता रखते हैं. उनका रसूख इतना है कि इकनॉमिक अखबारों के छोड़कर अन्य अखबारों ने इस खबर की हवा भी नहीं लगने दी है.
दरअसल इस ध्यानाकर्षण की आवश्यकता इसलिए पड़ी क्योकि इफ्को का सिलसिला हिंदी साहित्य समाज से भी जुड़ा हुआ है. ज्ञातव्य है कि इफ्को संस्था ग्यारह लाख का पुरस्कार ‘श्रीलाल शुक्ल इफ्को सम्मान’ के नाम से हिंदी के किसी लेखक को प्रतिवर्ष देती है. इस पुरस्कार समिति में शामिल लेखकों को भी भरापूरा पारिश्रमिक दिया जाता है.
मुझे लगता है कि हिंदी लेखकों को इफ्को एमडी की काली करतूतों को देखते हुए अब आगे से इस पुरस्कार और इसकी कमेटी से अपने को न सम्बद्ध करने का निर्णय लेना चाहिए. यह न्यूनतम है. मुझे विश्वास है कि जिन श्रीलाल शुक्ल के नाम पर यह सम्मान दिया जाता है, उनकी प्रतिष्ठा भी पुरस्कार से मलिन ही होने वाली है. यदि वे होते तो संभवतः वे स्वयं को इससे असंपृक्त करते. यह हिंदी साहित्यिकों के विवेक और नैतिकता का मुद्दा है. उम्मीद की जानी चाहिए कि हिंदी साहित्यिक अपनी भूमिका का निर्वहन करेंगें.
11 लाख की राशि के सामने कितनों का विवेक टिकेगा, जो पुरस्कार पाते हैं, वे विवेक के साथ वाला ही लेखन करते हैं और जीवन जीते हैं, ऐसा भी नहीं है। बड़े बड़े विवेकियों ने स्वार्थ हित में, बड़ी बूटी पाने के लिए भगवों एवं शिवसैनिकों की शरण ली है अबतक। -musafir baitha
सर जब आपने यह सब लिख ही दिया है तो इसमें एक बात और लिख दें कि जिन लोगों ने यह सम्मान प्राप्त किया है 11 लाख वाला वे अपनी धनराशि को लौटा दें. अच्छा रहेगा. लेकिन जिन लोगों ने उस पैसे से अपना घर बनवा लिया है ,जमीन खरीद लिया है हीरो हौंडा खरीद लिया है एक बेटी की शादी कर ली है वह पैसा कहां से वापस करेंगे. -डॉ विंध्यमणि
इतना पैसा बरामद हुआ है तो वह सही तरीके से कमाया तो नहीं होगा। अवस्थी के कुकृत्यों की ज़िम्मेदारी लेखकों की नहीं होनी चाहिए। कल को साहित्य अकादमी में भी अनियमितताए सामने आ सकती हैं। वास्तव में इस पुरस्कार की शुरुआत ही अनैतिक थी। श्रीलाल शुक्ल का किसानों से कोई संबंध नहीं। इफको किसानों की एक संस्था है। लेखकों के पुरुस्कार का बोझ किसानों की इस संस्था पर डालने का क्या औचित्य है।सिर्फ इसलिए कि श्रीलाल शुक्ल के दामाद उस संस्था में बड़े अधिकारी थे और वे अपने ससुर के नाम पर एक पुरुस्कार स्थापित करना चाहते थे। शायद समयांतर ने इस पर लिखा था जब यह पुरस्कार शुरू हुआ था। -राम प्रकाश अनंत