-अनेहस शाश्वत-
अपने देश में किसी भी आदमी से पूछिए, मुग़ल सम्राट शाहजहाँ ने जामा मस्जिद कहाँ बनवाई? तत्काल जवाब मिलेगा दिल्ली में। शाहजहाँ ने एक और भव्य जामा मस्जिद सिंध के थट्टा इलाके में भी बनवाई। ध्यान रहे, शाहजहाँ के राज्य में न केवल आज का पाकिस्तान और बांग्लादेश वरन अफगानिस्तान का भी एक बड़ा हिस्सा शामिल था। ग्यारह सौ किलो सोने और सैकड़ों किलो जवाहरात से बने मयूर सिंहासन पर बैठने वाला शाहजहाँ तत्कालीन दुनिया का सबसे धनी और शक्तिशाली सम्राट था, जिसकी पगड़ी पर अमूल्य कोहिनूर हीरा झिलमिलाता रहता था।
शाहजहाँ रत्नों को पसंद करनेवाला उनका पारखी सम्राट भी था। दुनिया भर के जौहरियों के लिए उसका स्थाई आदेश था कि पहले रत्न उसे दिखाए जाएँ, जो रत्न उसके खरीदने से बच जाएँ, उन्हें बाज़ार में भेजा जाए। ऐसे व्यक्तित्व का स्वामी शाहजहाँ मुगलों की वंशावली का सबसे भव्य निर्माता भी था। आगरा का ताज महल, दिल्ली का लाल किला और जामा मस्जिद तो उसने बनवाए ही, पहले से बनी इमारतों और किलों मे भी शाहजहाँ ने नई और भव्य इमारतें जोड़ीं। मुग़ल इमारतों में बहुतायत से संगमरमर और संगमूसा का प्रयोग शाहजहाँ ने ही किया। इसी क्रम मे सिंध के थट्टा इलाके में भी शाहजहाँ ने एक बड़ी और भव्य जामा मस्जिद बनवाई जो उस इलाके में शाहजहाँ के वैभव और ताकत का प्रतीक है।
मुग़लों के और भी तमाम निर्माण आज के पाकिस्तान, बांग्लादेश और अफगानिस्तान मे हैं, जिनके बारे मे आज-कल न तो अपने देश में बताया जाता है और न ही लोगों को मालूम है।
भारत शुरू से ऐसा देश रहा है, जिसकी समृद्धि से आकर्षित होकर तमाम विदेशी यहाँ आए और फिर यहीं के होकर रह गए। महमूद गजनवी, नादिर शाह और अब्दाली जैसे लुटेरे भी आए लेकिन वे अपवाद थे। जो यहाँ बस गए उन्होंने अगर इस देश से लिया तो इसे दिया भी बहुत कुछ। बात यूनान के लोगों से ही करें, मूर्तिशिल्प की गांधार शैली उन्हीं की देन है। इसी शैली में सबसे पहले भगवान बुद्ध की मूर्तियाँ बनीं। यह सिलसिला जारी रहा और यहाँ आकर बस गए विदेशियों ने भारत की संस्कृति और समाज में बहुत कुछ जोड़ा।
अंग्रेज़ जरूर इस प्रवृत्ति के अपवाद रहे, हालांकि उन्होंने भी हिंदुस्तान को काफी कुछ दिया, लेकिन जितना दिया उससे कहीं ज्यादा ले लिया, साथ ही पाकिस्तान के रूप में एक नासूर भी दे गए। उस समय फैली अफरा-तफरी और घृणा के बावजूद एक बहुत ही छोटा तबका ऐसे लोगों का भी रहा, दोनों ही देशों में, जो यह मानता था कि दोनों देशों की साझी संस्कृति को भुलाया न जाए। हालांकि विभाजन के तुरंत बाद के दिनों मे यह तबका दोनों ही देशों मे अप्रासंगिक था। उन दिनों पाकिस्तान ने अपना मनगढ़ंत इतिहास तैयार किया और हिंदुस्तान में भी उन चीजों पर चुप्पी साध ली गई, जो पाकिस्तान चली गईं। हमारे इतिहास मे पंजाब, सिंध और बलूचिस्तान पर चुप्पी साध ली गई, और लाहौर, जो अविभाजित भारत में दुनिया के सुंदरतम शहरों में से एक था, वो स्वतंत्र भारत में भुला दिया गया।
लेकिन कहावत है कि समय बड़े से बड़ा घाव भर देता है। अब भी ये जमात हालांकि छोटी सी ही है, लेकिन है दोनों तरफ, जो साझी विरासत को लेकर गंभीर है। इसी के तहत पाकिस्तान में बहुत प्राचीन और प्रसिद्ध कटासराज मंदिर की मरम्मत की गई। यह उस इलाके में भगवान शिव का मंदिर है। राज कपूर और दिलीप कुमार के पैतृक आवास को संग्रहालय बनाया जा रहा है और लाहौर में एक चौक का नाम शहीद भगत सिंह के नाम पर रखा जाना प्रस्तावित है। ऐसे ही और भी बहुत से काम वहाँ हो रहे हैं।
देखें ये वीडियो :
हमे भी कम से कम अपने इतिहास मे बच्चों को वो सब पढ़ाना चाहिए जो कुछ भी एकीकृत भारत में हुआ। स्वतंत्रता संग्राम के दौर में पंजाब, सिंध और बलूचिस्तान वगैरह में जो कुछ भी हुआ, उसका विस्तार से इतिहास आज भी पढ़ाना चाहिए। जो हिस्सा हमारा था, अगर हम ही उस पर चर्चा नहीं करेंगे तो कौन करेगा? पाकिस्तान को चित्त से मत उतरने दीजिये। भविष्य किसी ने नहीं देखा। उस समय अगर कुछ सकारात्मक हुआ तो चित्त में बसे होने की वजह से दोनों तरफ से मेल-मिलाप आसान और तेज़ होगा। आपसी घृणा और लड़ाई-झगड़े के बावजूद कहीं न कहीं कुछ ऐसा है कि तिरंगे झंडे को सलामी मुग़लों के लाल किले से दी जाती है और करोड़ों रूपए खर्च कर भगवान शिव के मंदिर का जीर्णोद्धार कराया जाता है।
लेखक अनेहस शाश्वत सुल्तानपुर के निवासी हैं और उत्तर प्रदेश के वरिष्ठ पत्रकार हैं. मेरठ, बनारस, लखनऊ, सतना समेत कई शहरों में विभिन्न अखबारों में वरिष्ठ पदों पर काम कर चुके हैं. इन दिनों लखनऊ में रहने वाले अनेहस शाश्वत से संपर्क 9453633502 के जरिए किया जा सकता है.