वरिष्ठ पत्रकार और कई बड़े अखबारों में काम कर चुके अनेहस शाश्वत ने अपनी वेबसाइट लांच की है. नाम है- The Golden Talk dot com द गोल्डन टॉक डॉट कॉम. ख़बरों और तात्कालिक विषयों पर लेखन के आजकल के माहौल में ख़ास तौर से हिंदी में दिलचस्प और विविध विषयों पर शोधपूर्ण लेखन कम हो …
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नाकारा सरकारें और आत्महन्ता किसान
अनेहस शाश्वत
लाख दावों प्रति दावों के बावजूद आज भी भारत की अर्थव्यवस्था की रीढ़ खेती ही है। आधुनिक अर्थव्यस्था में इस स्थिति को पिछड़ेपन का द्योतक मानते हैं। बावजूद इसके अपने देश के किसानों ने देश के अनाज कोठार इस हदतक भर दिये हैं कि अगर तीन साल लगातार देश की खेती बरबाद हो जाये तो भी अनाज की कमी नहीं होगी। गौर करें यह तब जब भारत की आबादी लिखत-पढ़त में 125 करोड़ है यानी वास्तविक आबादी इससे ज्यादा ही होगी।
इतिहास में पाकिस्तान जोड़ेंगे, तभी बदलेगा भूगोल
-अनेहस शाश्वत-
अपने देश में किसी भी आदमी से पूछिए, मुग़ल सम्राट शाहजहाँ ने जामा मस्जिद कहाँ बनवाई? तत्काल जवाब मिलेगा दिल्ली में। शाहजहाँ ने एक और भव्य जामा मस्जिद सिंध के थट्टा इलाके में भी बनवाई। ध्यान रहे, शाहजहाँ के राज्य में न केवल आज का पाकिस्तान और बांग्लादेश वरन अफगानिस्तान का भी एक बड़ा हिस्सा शामिल था। ग्यारह सौ किलो सोने और सैकड़ों किलो जवाहरात से बने मयूर सिंहासन पर बैठने वाला शाहजहाँ तत्कालीन दुनिया का सबसे धनी और शक्तिशाली सम्राट था, जिसकी पगड़ी पर अमूल्य कोहिनूर हीरा झिलमिलाता रहता था।
‘बोकरादी’ से ‘पेलपालदास’ तक!
अनेहस शाश्वत बुढ़ापे को लोग बुरा कहते हैं, लेकिन दरअसल ऐसा है नहीं. इस अवस्था के बहुत लाभ भी हैं, खास तौर से हिंदुस्तान में. यहाँ कोई बुड्ढा आदमी कितनी भी बेवकूफी की बात करे, लोग उसका प्रतिवाद नहीं करते बल्कि हाँ में हाँ मिलाते हैं. इधर थोड़ा बदलाव आया है, देश से प्रेम करने …
सहूर है नहीं, कराएंगे पर्यटन!
काफी दिन हुए बीबीसी पर एक प्रोग्राम देखा था. उसमे उन्होंने यूरोप के कुछ फेमस किलों को इस तरह से सजाया था कि वे तीन – चार सौ साल पहले के जीवंत किले दिख रहे थे. ज़ाहिर सी बात है वो प्रोग्राम काफी सफल रहा. पर्यटन के प्रति लोगों का रुझान बढे इसके लिए नए – नए विचारों की जरूरत पड़ती है. लेकिन कम से कम अपने उत्तर प्रदेश में ऐसा नहीं है. यहाँ तो कुछ पेशेवर लोगों का झुण्ड है जो इस काम को अंजाम देता है और पर्यटन का सत्यानाश करने पर उतारू है.
आडवाणी पर राम का कोप हुआ, और कुछ नहीं….!
अनेहस शाश्वत (वरिष्ठ पत्रकार, लखनऊ) हो सकता है आर एस एस बहुत ही देशभक्त और काबिल लोगों का संगठन हो, लेकिन इतना तय है यह एक बंद सा संगठन है, जिसके बारे में जानकारी बहुत स्पष्ट नहीं है. जो लोग इससे जुड़े हैं वे ही इसके बारे में कायदे से जानते हैं. आडवाणी लम्बे समय …
कन्फेशन ऑफ ए ठग
मेरे ऊपर अक्सर मित्रगण यह आरोप लगाकर हंसते हैं कि मैं हर घटना को इतिहास से जोड़ देता हूँ| लेकिन अब मै क्या करूं कि इतिहास में मिलती हुई घटनाएँ याद आ जाती हैं| बुलंदशहर के जेवर के नजदीक हुई हत्या, लूट और बलात्कार की घटना के बाद एकाएक कॉन्फेशन ऑफ ए ठग नामक किताब की याद आ गई| उन्नीसवीं सदी में भारत में कई तरह के ठग गिरोह सक्रिय थे| लूट-पाट और हत्या- बलात्कार उनका पेशा था| देश पर उस समय कई ताकतें काबिज़ थीं लेकिन कोई भी इतनी शक्तिशाली नहीं थी कि उन ठगों को ख़त्म कर सकें| साथ ही तमाम तरह के सामजिक बदलावों से ऐसे लोग सामने आ गए थे जो जीवित रहने को कुछ भी कर डालते थे| ठग ऐसे ही लोग होते थे|
कांग्रेस के मनसबदार
अनेहस शाश्वत, लखनऊ
कांग्रेस का फिलहाल का पराभव देख दिमाग में अनायास मुगलों की मनसबदारी प्रथा की याद कौंध गयी। यह मनसबदार ही थे जिन्होंने मुगलों को दुनिया की अतुलनीय और चकाचौंध वाली ताकत बनाया और मनसबदारों के ही चलते आखिरी मुगल बादशाहों की ताकत लाल किले के भीतर तक ही सीमित होकर रह गयी। आज के माहौल में भी मनसबदार हालांकि एक जाना-माना और चलता हुआ शब्द है लेकिन मनसबदार और मनसबदारी दरअसल होती क्या थी, यह बहुत कम लोग जानते हैं। इसके विश्लेषण से शायद कांग्रेस के पराभव पर भी कुछ रोशनी पड़ सके इसलिए इसे जानना अप्रासंगिक नहीं होगा।
हिन्दू और मुसलमान दोनों पानीपत की तीसरी लड़ाई के घाव आज तक सहला रहे हैं
किसी व्यक्ति परिवार या समाज में कुछ घटनाएं ऐसी हो जाती हैं कि वे सब कई पीढियों तक उस घटना से प्रभावित होते रहते हैं। ये प्रभाव अच्छा भी हो सकता है और बुरा भी। ऐसी ही एक घटना है सन १७६१ में हुई पानीपत की तीसरी लड़ाई। इस लड़ाई के बारे में जानने से …
दगे हुए सांड़ों की दिलचस्प दास्तान : शशि शेखर महोदय के लेखों में थरथराहट काफी होती है…
अनेहस शाश्वत आज यशवंत सिंह के इस भड़ास बक्से में आप सबके लिए कुछ हास्य का आइटम पेश करूंगा। पेशेवर पत्रकारिता को जब एक तरह से तिलांजलि दी थी तो सोचा था कि इस बाबत कभी कुछ लिखूं पढ़ूंगा नहीं, और न ही इस बाबत किसी से कुछ शिकायत करूंगा। क्योंकि इस पेशे में आने …
राष्ट्रोत्थान की फेसबुकी टिट्टिभि प्रवृत्ति
-अनेहस शाश्वत-
इस आर्टिकिल की शुरुआत की जाये इससे पहले टिट्टिभि प्रवृत्ति पर चर्चा लाजिमी है। हालांकि यह एक मिथिकीय कथा है। माना जाता है कि टिट्टिभि (टिटिहिरी) नामक बेहद छोटा पक्षी जब सोता है तो पंजे आसमान की तरफ कर लेता है। टिटिहिरी का मानना है कि उसकी निद्रा की दौरान अगर आसमान फट पड़े तो अपने पैरों पर वह उस बोझ को सम्भाल लेगी और धरतीवासियों को कोई नुकसान नहीं पहुंचने देगी। टिटिहिरी की यह प्रवृत्ति काबिले गौर और काफी हद तक हास्यास्पद है। भले वह गिरते आसमान को रोक पाये या नहीं।
अखिलेश यादव की कहानी से याद आये राजीव गांधी!
–अनेहस शाश्वत–
23 जून, 1980 की सुबह रेडियो पर एक समाचार आया और सन्नाटा छा गया। समाचार यह था कि तत्कालीन प्रधानमंत्री इन्दिरा गांधी के छोटे पुत्र और उनके सम्भावित उत्तराधिकारी कांग्रेस नेता संजय गांधी का दुर्घटना में निधन हो गया। इस दारुण दुख के आघात से उबरी इन्दिरा गांधी ने सिर्फ इतना कहा कि-‘‘मेरे साथ इससे ज्यादा बुरा और क्या हो सकता है।’’ लेकिन किन्हीं भी परिस्थितियों में न डिगने वाली भारतीय मानसिकता की इन्दिरा गांधी ने तत्काल अपने बड़े पुत्र राजीव गांधी को अपना उत्तराधिकारी चुनकर प्रषिक्षण देना शुरू किया। अभी यह प्रशिक्षण चल ही रहा था कि दूसरी दुर्घटना घटी और 31 अक्टूबर, 1984 को इन्दिरा गांधी की हत्या कर दी गयी। चूंकि सारी गोटें इन्दिरा गांधी बिछा चुकी थीं और उनके सिपहसालार भी जांनते थे कि उनका भविष्य वंशवादी शासन में ही सुरक्षित है। इसलिए तत्काल राजीव गांधी को प्रधानमंत्री पद की शपथ दिला दी गयी।
इस भ्रष्ट व्यवस्था में बच्चों की तथाकथित उच्च शिक्षा पर लाखों रुपये न फूंकें!
सामान्य शिक्षा दिलाइए और खर्चीली उच्च शिक्षा पर व्यय होने वाले धन को बच्चों के नाम फिक्स डिपॉजिट कर दीजिए… अभी कुछ दिन पहले एक बड़े अखबार में सर्वे आया था। अमेरिका के युवाओं की बाबत। सर्वे इस बात पर था कि अमेरिका में शैक्षिक ऋण और इस ऋण से हुई पढ़ाई के बाद रोजगार की क्या हालत है। अमेरिका जैसे अतिशय सम्पन्न देश में सर्वे में शामिल युवाओं में से एक चौथाई का मानना था कि वे इस ऋण के जंजाल से बाहर आने के लिए अपनी किडनी तक बेचने को तैयार हैं क्योंकि निरन्तर रोजगार का भरोसा अब नहीं रहा। इस सर्वे को पढ़ने के बाद तत्काल मुझे बहुत पहले खुशवंत सिंह साहब का लिखा एक लेख याद आया जिसमें उन्होंने लिखा था यूरोप और अमेरिका में कई बार पढ़ाई इतनी मंहगी हो जाती है कि कालांतर में सामान्य विद्यार्थी उतना भी नहीं कमा पाते जितना उनकी पढ़ाई पर खर्च हुआ।
प्रवचन नहीं दें, शासन करें
अनेहस शाश्वत
बहुत पहले किसी प्रसिद्ध भारतीय अंग्रेजी पत्रिका में एक इंटरव्यू छपा था, जिसमें इन्दिरा गांधी से उनके व्यक्तित्व से संबंधित सवाल पूछे गये थे। वैसा बेहतरीन इंटरव्यू न तो तब और न ही आज भी किसी हिंदी प्रकाशन में छपना सम्भव है। उसके बहुत से कारण हैं। बहरहाल ये स्यापा फिर कभी। इस इंटरव्यू की खासियत यह थी कि इंदिरा गांधी का पूरा व्यक्तित्व इसमें खुलकर सामने आया था। पूछने वाले की खूबी यह कि उसने ऐसे सवाल बनाए और इंदिरा गांधी का बड़प्पन ये कि उन्होंने सवालों के बेबाक और ईमानदार जवाब दिये। इन्दिरा गांधी से एक सवाल था कि जवाहर लाल नेहरू और इन्दिरा गांधी में बतौर प्रधानमंत्री क्या सबसे बड़ा अंतर है? थोड़ी विनोदी मुद्रा में इन्दिरा गांधी का जवाब था मेरे पिता संत थे और मैं राजनीतिज्ञ हूं। कितनी सच बात कही थी इंदिरा गांधी ने। नेहरू की मौत के जिम्मेदार माने जाने वाले चीन के चेयरमैन माओ-त्से-तुंग तब रुआंसे हो गए जब इंदिरा गांधी ने सिक्किम को हिन्दुस्तान का हिस्सा बना लिया। उस समय चीन सिक्किम पर कब्जा कर उत्तर पूर्व के राज्यों को अस्थिर बनाने की रणनीति पर काम कर रहा था कि इंदिरा गांधी ने बाजी पलट दी थी।
फिर-फिर मुठभेड़ करेगी यह उन्मत्त भीड़
हार्दिक पटेल आज की तारीख में एक बिसरा हुआ नाम है। ज्यादा आशंका है कि हुक्मरान-ए-दौरां इस नाम को हमेशा के लिए दफन करने की पूरी कोशिश करेंगे। वे सफल हो या न हों, लेकिन जो मुद्दे हार्दिक पटेल ने उठाए हैं, वे प्रथम दृष्ट्या बेढंगे दिखने के बावजूद पूरी शिद्दत और तार्किकता के साथ शासक वर्ग के सामने फिर-फिर मुठभेड़ करने के लिए उठ खड़े होंगे। इतिहास गवाह है गुजरात में ही चिमन भाई पटेल के मुख्यमंत्रित्व काल में छात्रों के स्वतः स्फूर्त आंदोलन को तत्कालीन सरकार ने भले ही दबा दिया हो, लेकिन उसकी तार्किक परिणति इमरजेंसी और फिर इन्दिरा गांधी की बेदखली के रूप में सामने आयी। और भी कई उदाहरण हैं। उस समय प्रभुवर्ग ने गुजरात के छात्रों को दिग्भ्रमित बताया और भी तमाम लांछन लगाये गये। जैसा आज भी हो रहा है।