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सुख-दुख

नहीं रहे ‘अमेठी समाचार’ वाले जगदीश पीयूष!

राजू मिश्र-

राजनीति उन्हें कभी नहीं सुहाई, लेकिन कांग्रेस से उनके रिश्ते जगजाहिर थे। बड़े से बड़ा कांग्रेसी पीयूष जी को नाम से जानता था। बहुत ही अलमस्त और फक्कड़ प्रकृति के जगदीश पीयूष दोस्तों के भी दोस्त थे।

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कांग्रेस के कई लोकप्रिय नारे उन्होंने गढ़े थे। एक बानगी-अमेठी का डंका, बेटी प्रियंका…. राजा गया रजाई में…!!! पीयूष जी अवधी के मर्मज्ञ थे। अवधी भाषा के लिए खासा काम किया उन्होंने। कई किताबें उन्होंने लिखीं। कई खंडों में प्रकाशित उनका अवधी कोष बड़ी थाती है।

उनका छोटा सा अखबार ‘अमेठी समाचार’ गंवई-गांव की खबरों से लैस होकर दिल्ली से लेकर मुंबई तक फुदकता रहता था, उसमें छपकर बड़का नेता स्वयं को धन्य महसूस करते थे। जब भी लखनऊ आना होता, वह बिना मिले नहीं जाते थे। गत वर्ष पत्नी का तिरोधान होने के बाद वह भीतर से काफी टूट से गए थे।

बेशक वह पीते नहीं थे, लेकिन खिलाने-पिलाने के मामले में उनका कोई सानी नहीं था। रवींद्र कालिया ने तो विधिवत पीयूष जी पर खूब मोटा संदर्भ ग्रंथ रच डाला था। पार्टी विशेष से लगाव के चलते अवधी भाषा के लिए उनके योगदान का वस्तुतः टंच मूल्यांकन कभी किया ही नहीं गया। परमात्मा अमेठी के गौरव पुरुष जगदीश पीयूष जी को अपने श्रीचरणों में सबसे करीब स्थान प्रदान करें। विनम्र श्रद्धांजलि।

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Shesh Narain Singh-

अभी ख़बर मिली कि हमने एक बहुत ही अज़ीज़ दोस्त खो दिया . जगदीश पीयूष नहीं रहे. पीयूष जी से मेरी मुलाक़ात १९७३ में कादीपुर के मेरे दोस्त दूधनाथ शुक्ल ‘ करुण ‘ ने करवाई थी . तब से आज तक वे मेरे बड़े भाई रहे. करुण जी और पीयूष जी ,दोनों ही कवि थे, पत्रकार थे, शिक्षक थे . करुण जी तो बहुत पहले चले गए , आज पीयूष जी भी चले गए.

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दिल्ली में उनसे मुलाकातों का सिलसिला 1977 के बाद शुरू हुआ . स्व संजय गांधी से पहली बार उन्होंने ही मिलवाया था . बाद में राजीव गांधी के बहुत क़रीबी रहे. दिल्ली से कोई भी पत्रकार अमेठी जाता था तो उनसे मिलना एक ज़रूरी आइटम होता था. मुझसे हमेशा अवधी में ही बात करते थे. उन्होंने अपने बेटे राकेश पाण्डेय को बता रखा था कि दिल्ली में मैं उनका सबसे पुराना दोस्त हूँ . बेटा भी मुझे सगे चाचा की तरह की मानता है .

पीयूष जी का जाना बहुत ही तकलीफ की बात है .

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