लगभग दो-ढाई वर्ष पुरानी बात होगी. फेसबुक पर किसी ने एक समाचार का लिंक शेयर किया कि काकोरी कांड के अमर शहीद ठाकुर रोशन सिंह की पौत्रवधू की झोपड़ी गाँव के दबंगों ने जला दी है. कड़कड़ाती सर्दी में खुले आसमान के नीचे शहीद के वंशज रात गुजारने को मजबूर हैं . समाचार पढ़कर धक्का लगा . समाचार का स्रोत थे शाहजहांपुर समाचार के नाम से फेसबुक पर सक्रिय जगेन्द्र सिंह . मैं उन दिनों किसी महत्वपूर्ण कार्यक्रम के संयोजन में व्यस्त था पर मैंने सोशल मीडिया पर मुहिम चलायी और मेरी उस मुहिम में जगेन्द्रसिंह, सिराज फैसल खान, अमित त्यागी, भारतीय वायुसेना में वरिष्ठ अधिकारी श्रीकांत मिश्र कान्त आदि जुड़े.
फिर मैंने स्वयं शाहजहाँपुर जाकर स्थितियों का आंकलन करने का फैसला किया . यह पहला मौका था, जब मेरी जगेन्द्र सिंह से प्रत्यक्ष मुलाकात हुई . पांच फीट तीन इंच की इकहरी काया वाले जगेन्द्र रोशनसिंह के वंशजों को न्याय दिलाने के अभियान से निजी रूप से तब तक इतने जुड़ चुके थे मानो यह उनकी निजी लड़ाई हो . और २-३ दिन के भीतर ही जगेन्द्र सिंह पीड़ित परिवार को न्याय दिलाने के अपने अभियान में सफल हो गये .
आधुनिक पत्रकारिता के दौर में जब पत्रकार ब्रेकिंग न्यूज के चक्कर में अपनी आँखों के सामने किसी को भी फांसी पर लटकते और धू धू कर जलते देख भी निर्लिप्त होकर रिपोर्टिंग करते हैं, जगेन्द्र सिंह जैसे पत्रकार, जो अन्यायी को सजा दिलाना अपना लक्ष्य मानकर समाचार को परे रख खुद पार्टी बन जाते हैं, समकालीन पत्रकारिता के लिए आश्चर्य जैसे थे . जगेन्द्र सिंह की यही खासियत उन्हें भीड़ में सबसे अलग करती थी तो यही खासियत उनके बलिदान की वजह बनी . जगेन्द्र की जगह कोई भी पत्रकार होता तो उसके लिए आंगनबाड़ी कार्यकत्री से बलात्कार एक सामान्य समाचार भर था पर जगेन्द्र जिस मिट्टी के बने थे, उसमें समाचार गौड़ हो गया और अपराधियों को सजा दिलवाना मुख्य मकसद बन गया . जिसकी परिणति अंतत: उनकी निर्मम हत्या में हुई।