वरिष्ठ पत्रकार कुमार सौवीर ने अपने फेसबुक वाल पर लिखा है – ”यूपी के डीजीपी अरविन्द जैन की पुलिस का कमाल यहां शाहजहांपुर में देखें तो आप दांतों तले उंगलियां कुचल डालेंगे, जहां मंत्री का इशारा था, अपराधी मोहरा बना था और अपराधी बना डाला गया हत्या का जरिया। सिर्फ दो दिन तक पुलिस ने एक सीधी-सच्ची एफआईआर को टाल दिया और उसकी जगह में एक नयी रिपोर्ट दर्ज लिख डालीा ताना-बाना इतना जबर्दस्त बुना गया कि उसके बल पर मंत्री-अपराधी-पत्रकार और पुलिस की साजिशों से जगेन्द्र सिंह के खिलाफ डेथ-वारण्ट तामील करा दिया। अब मैं इस प्रकरण पर सीधे अदालत में ही पुलिस के खिलाफ मुकदमा दर्ज कराने जा रहा हूं, जिसमें डीजीपी अरविन्द जैन भी शामिल होंगे, जिन्होंने जान-बूझ कर भी एक असल मामले की तहरीर को मनचाहे तरीके से बदलवा दिया।
”मेरे पास है वह सुबूत, जिसमें शाहजहांपुर की पुलिस के कोतवाल और बाकी पुलिसवालों ने मंत्री राममूर्ति वर्मा के इशारे पर कोतवाल को कुछ इस तरह जकड़ दिया कि वह चूहेदानी में फंसे चूहे की तहर छटपटाने लगा। जगेन्द्र की रची-बची सांसों को इन्हीं हत्यारे गिरोहबाजों ने उस पर तेल डाल कर फूंक डाला।
”अब तो मैं दावे के साथ ऐलान करता हूं कि जगेन्द्र हत्याकाण्ड सीधे-सीधे पुलिस की मिली-भगत से हुआ था और इसमें मंत्री राममूर्ति वर्मा, अमित भदौरिया, गुफरान आदि अनेक खतरनाक षडयंत्रकारी शामिल थे।
”मेरे पास प्रमाण है। पुख्ता प्रमाण कि हल्की-फुल्की हाथापाई को पुलिस ने दो दिनों तक अपनी कोतवाली में नये सिरे से फर्जी लिखवा दिया और हालात इतना खतरनाक बना डाला कि आखिरकार जगेन्द्र सिंह जिन्दा फूंक डाला गया। ऐसे में आप यूपी सरकार के मंत्री राममूर्ति वर्मा की साजिश साफ-तौर पर देख सकते हैं। इस फर्जी एफआईआर को बढ़ा-चढ़ा कर जिस तरह जगेन्द्र सिंह के खिलाफ पुलिस ने मामला तैयार किया, और आखिरकार उसे मौत के चंगुल में दबोच लिया गया, वह यूपी के मानव-समाज के लिए सबसे बड़ा कलंक कहा जा सकता है।
जी हां, यह पुलिस की कपोल-कल्पना नहीं है, जो वह अदालतों में बिलकुल फर्जी तौर पर पेश किया करती है। अरे मेरे पास है इस बात के प्रमाण। पुख्ता प्रमाण, जिसे कोई भी अदालत संज्ञान ले लेगी।
”दस अप्रैल-2015 को सात बजे शाम एक हल्का-फुल्का झगड़ा हुआ था। रिपोर्ट के मुताबिक ग्रामीण पत्रकार संघ के अध्यक्ष राजीव शर्मा के घर अमित भदौरिया से बीतचीत चल रही थी कि अचानक जगेन्द्र सिंह, रंजना हत्याकांड का गवाह आदित्य दीक्षित ऊर्फ मोनू और जीतेंद्र मोटरसायकिल से आये। इसके बाद एक कार से अनुराग मिश्र, विनोद, वकील और विजय राघव तथा ड्राइवर पहुंचे। अमित से झगड़ा शुरू हो गया। इनमें अनुराग और विनोद के हाथ में तमंचा था। इन लोगों ने पहले तो उन्हें साथ ले जाने की कोशिश की, लेकिन बाद में धमकियां देते हुए घटना स्थल से चले गये।
”इसकी तहरीर अमित सिंह भदौरिया ने यहां के अजीजगंज बरेली मोड़ पुलिस चौकी को रात नौ बजे सौंपी थी। इस तहरीर को चौकी प्रभारी दारोगा शाहिद अली ने बाकायदा रिसीव किया और मुकदमा दर्ज करने के लिए कोतवाली-थाना को भेज दिया। कोतवाली में कोतवाली इंस्पेक्टर श्रीप्रकाश राय मौजूद थे, जो मंत्री राममूर्ति वर्मा के पालित श्वान माने जाते हैं।
”अब इसके बाद शुरू हो गयी जगेन्द्र को तबाह-बर्बाद करने की साजिशें। अगले दिन तो पूरी तरह साजिश को बुनने में लग गया और आखिरकार जब मंत्री समेत सभी लोग संतुष्ट हुए तो श्रीप्रकाश राय के मोहर्रिर ने अमित की नयी तैयार तहरीर दर्ज करा दी।
”अब यह नयी रिपोर्ट नयी साजिशों का पुलिंदा बन गयी, जिसमें जगेन्द्र, आदित्य, अनुराग, विनोद आदि कई लोग आये, तमंचा लहराते हुए। जगेन्द्र ने अमित को जमकर लात-घूसों से पीटा। इस बीच अमित को जान से मार डालने के लिए जगेन्द्र ने बुरी तरह लात-घूंसों से पीटा, उसे घसीटा और बाद में धमकी देते हुए चले गये। पुलिस ने जगेंद्र और अनुराग समेत कई लोगों पर मुकदमा दर्ज कर लिया। पुलिस ने इस रिपोर्ट को मुकदमा संख्या:- 937-15 के तहत,आईपीसी की धारा 363, 307, 323, 504, 506 के तहत दर्ज किया था। हैरत की बात है कि यह रिपोर्ट भले ही दो दिन बाद दर्ज हुई गयी, लेकिन पुलिस ने रिपोर्ट को लिखाने में हुए विलम्ब के लिए सीधे वादी को ही जिम्मेदारी ठहरा दिया। ”
कुमार सौवीर के एफबी वाल से