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दिल्ली

भक्तों की भाषा पर वर्षों चुप-शांत रहे अरुण जेटली अब केजरीवाल को भाषा संबंधी सीख दे रहे हैं

Sanjaya Kumar Singh : अरुण जेटली का महत्त्व… लोकसभा चुनाव प्रचार के दौरान जब नरेन्द्र मोदी अनोखे और बाद में जुमले घोषित किए जा चुके दावे कर रहे थे तो पूर्व वित्त मंत्री पी चिदंबरम ने कहा था कि नरेन्द्र मोदी का आर्थिक ज्ञान रसीदी टिकट के पीछे लिखे जाने भर है। नरेन्द्र मोदी ने यह कहकर इसका जवाब दिया था कि वे जानकारों के सहयोग से सरकार चलाएंगे। ऐसे में वित्त मंत्री कौन होता है यह महत्त्वपूर्ण था और जब अरुण जेटली का नाम सार्वजनिक हो गया तो समझ में आ गया कि राजा की जान किस तोते में है।

<p>Sanjaya Kumar Singh : अरुण जेटली का महत्त्व... लोकसभा चुनाव प्रचार के दौरान जब नरेन्द्र मोदी अनोखे और बाद में जुमले घोषित किए जा चुके दावे कर रहे थे तो पूर्व वित्त मंत्री पी चिदंबरम ने कहा था कि नरेन्द्र मोदी का आर्थिक ज्ञान रसीदी टिकट के पीछे लिखे जाने भर है। नरेन्द्र मोदी ने यह कहकर इसका जवाब दिया था कि वे जानकारों के सहयोग से सरकार चलाएंगे। ऐसे में वित्त मंत्री कौन होता है यह महत्त्वपूर्ण था और जब अरुण जेटली का नाम सार्वजनिक हो गया तो समझ में आ गया कि राजा की जान किस तोते में है।</p>

Sanjaya Kumar Singh : अरुण जेटली का महत्त्व… लोकसभा चुनाव प्रचार के दौरान जब नरेन्द्र मोदी अनोखे और बाद में जुमले घोषित किए जा चुके दावे कर रहे थे तो पूर्व वित्त मंत्री पी चिदंबरम ने कहा था कि नरेन्द्र मोदी का आर्थिक ज्ञान रसीदी टिकट के पीछे लिखे जाने भर है। नरेन्द्र मोदी ने यह कहकर इसका जवाब दिया था कि वे जानकारों के सहयोग से सरकार चलाएंगे। ऐसे में वित्त मंत्री कौन होता है यह महत्त्वपूर्ण था और जब अरुण जेटली का नाम सार्वजनिक हो गया तो समझ में आ गया कि राजा की जान किस तोते में है।

यह तो मालूम ही था कि अरुण जेटली को अमृतसर से मशहूर क्रिकेटर नवजोत सिंह सिद्धू की जगह टिकट दिया गया था और वे कांग्रेस के अमरेन्द्र सिंह से चुनाव हार गए थे। फिर भी मंत्री बने तो उनका महत्त्व नहीं समझने वाला राजनीति का कोई नवसिखुआ ही होगा। इसलिए, कीर्ति आजाद ने जब डीडीसीए के मामले में ही सही, अरुण जेटली के खिलाफ मोर्चा खोल लिया तो मामला गंभीर होना ही था। कीर्ति आजाद ने अपनी ओर से सावधानी बरती भी लेकिन कीर्ति के खुलासे का लाभ उठाने और प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी से अपना हिसाब बराबर करने की कोशिश में अरविन्द केजरीवाल और आम आदमी पार्टी के नेताओं ने अरुण जेटली को अपनी सहिष्णुता दिखाने का मौका दिखा और उन्होंने उसकी कीमत 10 करोड़ रुपए लगाई।

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भक्तों की भाषा पर वर्षों चुप और शांत रहे अरुण जेटली अब अरविन्द केजरीवाल को भाषा संबंधी सीख दे रहे हैं (वे कह रहे हैं कि अरविन्द मुख्यमंत्री हैं उसका ख्याल उन्हें रखना चाहिए बाकी लोगों की बात अलग है) पर यह अलग मुद्दा है। जेटली के महत्त्व का अंदाजा इस बात से भी लगता है कि मानहानि के मामले में जब वे बयान दर्ज करवाने अदालत पहुंचे तो उनके साथ केंद्रीय मंत्री स्‍मृति ईरानी और पीयूष गोयल भी थे। जेटली के अदालत पहुंचने से पहले उनके समर्थक कोर्ट के बाहर मौजूद रहकर नारेबाजी करते रहे। पटियाला हाउस कोर्ट में इस पर 5 जनवरी को सुनवाई होगी।

खास बात यह रही कि जेटली ने कीर्ति आज़ाद के खिलाफ केस दर्ज नहीं किया है। उधर, भारतीय जनता पार्टी ने अरुण जेटली के महत्त्व को समझते हुए, कीर्ति आजाद को पार्टी से निलंबित कर दिया है। अब कीर्ति का पार्टी अध्यक्ष अमित शाह से यह पूछना जायज है (जब जेटली को उनसे कोई शिकायत ही नहीं है, होती तो उनके खिलाफ भी शिकायत दर्ज कराते) कि उन्हें उनका अपराध बताया जाए। यही नहीं, जेटली की ओर से दायर आम आदमी पार्टी के नेताओं के खिलाफ इस मुकदमे में आम आदमी पार्टी की ओर से वरिष्ठ अधिवक्ता राम जेठमलानी पेश होंगे।

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कुल मिलाकर, स्थितियां ऐसी बनीं हैं जैसे कांग्रेस की जान अगर सोनिया गांधी और राहुल गांधी में है तो केंद्र की मौजूदा सरकार की जान अरुण जेटली में है। इससे सुब्रह्मणियम स्वामी से बेहतर कौन समझेगा। सो वे कीर्ति आजाद के साथ है। और सुना है डीडीसीए के मामले में कीर्ति भी अदालत में मुकदमा दायर करेंगे (दोनों मामलों में समानता यह है कि आरोप पुराने हैं, सरकार जांच करा चुकी है, कुछ नहीं मिला है। पर जेटली को हेरल्ड मामले में और कीर्ति को डीडीसीए मामले में हुई जांच से संतोष नहीं है और जैसे स्वामी ने नेशनल हेरल्ड मामले में किया है वैसे ही वे डीडीसीए मामले में करने वाले हैं)।

रही सही कसर दिल्ली के अजीब लाटसाब नजीब जंग ने पूरी कर दी है। डीडीसीए के इस मामले में वे अरविन्द केजरीवाल की जांच कराने की कोशिशों में हमेशा की तरह अड़ंगा लगाने का अपने कर्तव्य उम्मीद के अनुसार पूरी लगन से निभा रहे हैं। और ऐसे में ‘चाल, चरित्र और चेहरे’ वाली पार्टी जिसे ‘पार्टी विद अ डिफरेंस’ भी कहा जाता है का नया कदम देखने लायक होगा। ‘कोऊ नृप हों हमें का हानि’ – में विश्वास करने वाले सभी लोगों को मुफ्त का यह मनोरंजन मुबारक। उम्मीद है, सिर्फ मुनाफा पहुंचाने वाली मुफ्त की खबरों से टीआरपी बटोरने और टाइमपास करने को मजबूर सेल्फी मीडिया को भी इस मामले से पर्याप्त मसाला मिलेगा।

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वरिष्ठ पत्रकार संजय कुमार सिंह के फेसबुक वॉल से.

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