Abhishek Parashar : मैंने किसी भी देश की धमकी के आगे भारत को इस तरह घुटने टेकते नहीं देखा…तब भी नहीं जब हमारे ऊपर कड़े प्रतिबंध लगा दिए गए थे. भारत ने हंसते-हंसते प्रतिबंधों का सामना किया और हम कमजोर होने की बजाए और मजबूत ही हुए.
सवाल किसी देश की मानवीय मदद करने के नैतिक मूल्यों का नहीं है. यह हमारी विदेश नीति है और हमारा नैतिक मूल्य भी. लेकिन हमें कोई धमकी देकर हमसे मदद नहीं मांग सकता. मदद की भाषा होती है. उसमें विनम्रता होती है. भारत मदद करेगा और कर रहा है, लेकिन शर्त हमारी होनी चाहिए. अमेरिकी धमकी के आगे घुटने टेक देना, अपमानजनक फैसला है. यह 130 करोड़ देशवासियों का अपमान है. और क्या है कि अगर कोई इस तरह धमकी देता है, तो उसे वाजिब मदद भी नहीं देनी चाहिए, अगर हम देने में सक्षम है तो भी.
Soumitra Roy : विश्व गुरु, महाशक्ति, पांचवीं सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था- न जाने इस देश के कितने नाम बीते 6 साल में सामने आए हैं।
इन सबके बीच भारत की अवधारणा कहीं खो गई। आज लोग भारत को जितना नहीं जानते, पाकिस्तान को लेकर उतने ही आनंदित रहते हैं।
दरअसल, हमारी औकात पाकिस्तान तक ही है। चीन को कोसने और चाइनीज इस्तेमाल करने वाले समाज को इतिहास में झांकना चाहिए कि राष्ट्र गौरव झूठ पर नहीं टिका होता।
3 दिसंबर 1971 को जब पाकिस्तानी एयरफोर्स ने भारत पर हमलों की शुरुआत की तो भारत ने भी पलटवार शुरू कर दिया। लेकिन उस समय पाकिस्तान के कूटनीतिक दोस्त अमेरिका ने भारत पर ही दबाव बनाना शुरू कर दिया।
उस समय इंदिरा गांधी देश की प्रधान मंत्री थीं। जब इंदिराजी दबाव के आगे नहीं झुकीं, तब उस समय के अमेरिकी राष्ट्रपति रिचर्ड निक्सन ने इसे अमेरिका का अपमान माना और पाकिस्तान की मदद के लिए अमेरिकी जहाजी बेड़ा तक भेज दिया।
भारत ने पाकिस्तान के दो टुकड़े कर दिए। उस वक़्त भारत का एक चरित्र था। सबसे बड़े लोकतंत्र, एक गंभीर, निर्गुट, विचारशील देश का। भारत की बात अंतरराष्ट्रीय मंचों पर सुनी जाती थी। हमारी राजनीति और नेताओं का एक चरित्र था।
आज देश में धंधेबाजों की सरकार है। ये चाहें तो आपकी नाक के नीचे न जाने क्या बेच दें।
तभी तो अमेरिकी राष्ट्रपति की एक धमकी के आगे हमारा राष्ट्र गौरव और सार्वभौमिकता साष्टांग हो जाती है। फिर देश के लोग कोरोना से मरें या जियें। धंधा चलना चाहिए।
इसमें ग़लती आपकी है। आपने ही बिना चरित्र और क्षमता देखे वोट दिया है। अब भारत माता भी आपकी ग़लती की सज़ा भोग रही है।
भूल जाइए कि आपने मेरा यह पोस्ट पढ़ा है। जमकर मूर्खता कीजिये। ताली, थाली, शंख बजाइये। गोबर में लोटपोट हो जाइए।
दुनिया आपको एक महान देश के मूर्ख नागरिक के रूप में पहचान चुकी है।
शब्द तीखे और कड़वे हैं, पर सच यही है।
Manish Singh : ताकत मिलने पर विवेकशील, अतिरिक्त नम्र हो जाता है। उसे पता होता है कि जिस स्थान पर वह आ गया है, वहाँ से मामूली एक्शन भी बहुतों की जिंदगी में भूचाल ला सकता है। वह एक एक शब्द सोच समझकर, तौलकर बोलता है। निर्णय के पहले विज्ञजनों से परामर्श कर लेता है।
वह ताकत बांटता है, सहयोगी रखता है। दिशा निर्देश खुद के, मगर निर्णय का प्रसारण औरो के माध्यम से होने देता है। इसलिए कि उसकी ताकत अगर सुप्रीम है, तो कुछ गलत हो जाने पर किसी अपील का चांस नही होगा। आलोचना खुद की होगी, सीधी होगी। कल को निर्णय पलटना उचित हुआ, तो सहयोगी के निर्णय पलटा जाए। खुद की उच्चता, न्यायप्रियता बनी रहेगी।
मगर छुद्र व्यक्ति का व्यवहार अलग होता है। ताकत मिलते ही वो बौरा जाता है। उसे सब कुछ अपने वैभव में जोड़ने के लिए चाहिए। उसे ताकत का प्रदर्शन करना है, दिखाना है कि वह तुम सबकी जिंदगी कन्ट्रोल कर सकता है, बांध सकता है, खत्म कर सकता है। उसे झुके हुए सर, सहमा हुआ समाज चाहिए।
आखिर लोग उससे डरें नही, तो ताकत कैसी??
उसे सहयोगियों की जरूरत नही। वह अतिमानव है, उसे सब कुछ आता है। आंखिर आज तक सबकुछ उसने अकेले ही तो हासिल किया, अपने बल, मेधा, ज्ञान, रणनीति से। आगे भी वो अकेला चल सकता है। चलेगा!!!
और फिर ताकत का कन्फर्मेशन चाहिए। बार बार चाहिए। विरोध को नष्ट करना, समर्थंक की संख्या बढ़ाना, संख्या को बार बार गिनना। तालियों की गड़गड़ाहट और जयजयकार की आवाजें अपनी सुप्रीमेसी के भाव को आश्वस्त करती हैं। हर रात तकिए पर सर रखकर गिनता है कि कितने हिसाब आज बराबर किये। कितने कल किये जाने हैं। वह अपनी तस्वीरें देखता है, आईने को घूरता है। आकार कल से कुछ बड़ा, चेहरे का रौब कल से कुछ ज्यादा दिखता है। वह चैन से सो जाता है।
सुबह, चाकर उठाकर बताते हैं, सात समंदर पार बैठे बड़े मालिक ने धमकी भेजी है। झटका लगता है। पजामा आगे से गीला, पीछे से पीला हो जाता है।
Amrendra adv
April 7, 2020 at 4:25 pm
Bimar aadmi chirchira ho jata hai.agar vah doctor KO gaali bhee deta hai tab bhee doctor uska elaj karta hai