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कानपुर से संचालित होने वाले के. न्यूज चैनल का सच : ”खुद कमाओ और हमे भी लाकर दो, तब हम जानेंगे तुम रिपोर्टर हो!”

: काम करवा कर वेतन नहीं देते है ‘के. न्यूज’ वाले : के. न्यूज की कहानी यहां नौ महीने तक काम करने वाले बनारस के मीडियाकर्मी प्रहलाद गुप्ता की जुबानी :

वाराणसी। चिल्ला-चिल्ला कर झूठ को बेनकाब करने का दावा करने वाले चैनलों का भीतरी सच क्या है? क्या है इनकी हकीकत? कैसे ये अपने यहां काम करने वालो का शोषण करते हैं? मेरा दावा है, चैनलों पर ऐसी कोई बेक्रिंग न्यूज कभी नहीं दिखेगी। कानपुर से संचालित होने वाले रीजनल चैनल ‘के.न्यूज’ के साथ काम कर के मुझे यही सबक मिला कि सच का दम भरने वाले इन चैनलों का भीतरी चेहरा कितना बदसूरत है।

: काम करवा कर वेतन नहीं देते है ‘के. न्यूज’ वाले : के. न्यूज की कहानी यहां नौ महीने तक काम करने वाले बनारस के मीडियाकर्मी प्रहलाद गुप्ता की जुबानी :

वाराणसी। चिल्ला-चिल्ला कर झूठ को बेनकाब करने का दावा करने वाले चैनलों का भीतरी सच क्या है? क्या है इनकी हकीकत? कैसे ये अपने यहां काम करने वालो का शोषण करते हैं? मेरा दावा है, चैनलों पर ऐसी कोई बेक्रिंग न्यूज कभी नहीं दिखेगी। कानपुर से संचालित होने वाले रीजनल चैनल ‘के.न्यूज’ के साथ काम कर के मुझे यही सबक मिला कि सच का दम भरने वाले इन चैनलों का भीतरी चेहरा कितना बदसूरत है।

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इनकी हकीकत ये है दिन-रात पसीना बहाकर इनके लिए काम करने वालों के दुःख-दर्द से इनका कोई लेना-देना नहीं है। आप इनकी टी.आर.पी बढ़ाने के लिए भले ही कितने खतरे उठा लें, पर इन्हें इस बात की छटाक भर चिंता नहीं होती कि इनके लिए काम करने वालों के घर में चूल्हा कैसे जलता होगा? कैसे ये अपनी रोजर्मरा की जरूरतों को पूरा करते होंगे?

आज मुझे 9 महीने हो गए ‘के.न्यूज’ के साथ काम करते हुए। इस दौरान सैकड़ों खबरें मैंने इनके लिए भेजा। पर मुझे दिया गया 5 हजार के हिसाब से सिर्फ दो महीने का वेतन जबकि के.न्यूज ने मुझे 7 हजार रुपया हर महीने देने का वादा किया था। इस दौरान मैंने क्या-क्या दिन नहीं देखा। कभी किसी साथी से उधार लेकर तो कभी किसी से मांग कर मैं खबरों के पीछे दौड़ता रहा, खबरें भेजता रहा। पर जब भी कभी अपनी जेब में हाथ डाला तो वो खाली ही मिला।

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वेतन के लिए जब कभी मैंने चैनल में बैठे जिम्मेदार लोगों से बातचीत कर अपनी मजबूरियों के बारे में बताया तो उधर से जवाब मिला- ”अरे यार कोई व्यवस्था क्यों नहीं खुद ही बना लेते, अपने भी कमाओं और हमे भी लाकर दो, तब न हम जानेंगे तुम रिपोर्टर हो।”

मैं इस चैनल के सम्पादक और मालिकों से पूछता हूं, आप ही बताईए कि खाली जेब से घर चलता है क्या? रोजमर्रा की जरूरतें पूरी होती हैं क्या? मुझे पता है, इसका जवाब कभी नहीं मिलेगा। खबरों में दुनिया भर के लोगों की हक के लिए आवाज उठाने का दावा करने वाले इस चैनल के संपादक से लेकर मालिक तक अपने यहां काम करने वाले रिपोर्टरों का हक मार कर बैठे हुए हैं। 

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प्रहलाद गुप्ता

रिपोर्टर

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‘के.न्यूज’ रीजनल चैनल

वाराणसी

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मोबाइल न. 09454654698

भड़ास के लिए उपरोक्त स्टोरी बनारस के युवा और जनपक्षधर पत्रकार भास्कर गुहा नियोगी ने भेजी है. भास्कर से संपर्क [email protected] के जरिए कर सकते हैं.

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