Connect with us

Hi, what are you looking for?

उत्तराखंड

कलंकित राज्यपालों की लिस्ट में महा ‘भगत’ उर्फ कोश्यारीजी का भी नाम दर्ज हो गया

भगत सिंह कोश्यारी

Raj Kumar Singh : इंसान के पास इतिहास में दर्ज होने के मौके कम आते हैं. और आते भी हैं तो उसे ये तय करना होता कि इतिहास उसे कैसे याद करे. महाराष्ट्र के राज्यपाल भगत सिंह कोश्यारी के पास ऐसा ही मौका आया. 77 साल के उत्तराखंड के इन पूर्व सीएम ने जो तरीका चुना उससे इतिहास उन्हें याद तो करेगा पर अलग तरह से. शायद वैसे ही जैसे 1998 में यूपी के राज्यपाल रहे रोमेश भंडारी को याद किया जाता है. तब भंडारी ने कल्याण सिंह को बर्खास्त कर जगदंबिका पाल को सीएम पद की शपथ दिला दी थी.

Pankaj Shukla : गणित भले ‘चाणक्य’ की फेल हुई मगर ‘राजभोग’ के लिए महाराष्ट्र गए भगत दा ने अपनी जिंदगी भर की कमाई लुटवा ली. दो कौड़ी की करवा ली है. वैसे तो उम्मीद बेमानी है लेकिन अगर हिम्मत दिखा देते तो राजभवनों की साख के लिहाज से इतिहास में अपना नाम लिखवा लेते, वो अमर हो सकते थे. क्या उनके अंदर का सच्चा जननेता मर गया है? बेड़ियां तोड़ देते तो क्या बिगड़ जाता, उन्हें कौन सा ईडी और सीबीआई का डर था.

Awesh Tiwari : जियो राजा कोश्यारी, गजब करी होशियारी… न विधायक न बहुमत, सरकार बना दी न्यारी… लोकतंत्र का बैंड बजाए, सुबह से हम सबको खड़खाये… उद्धव चीखे चिल्लाए… सुप्रिया को रोना आये… मत गई तुम्हारी मारी… मुबारक हो तुमको जी भर के… मोटा भाई की यारी, भाजपा प्यारी… देख ली गवर्नरी तुम्हारी, जाऊं बलिहारी…

Advertisement. Scroll to continue reading.

Devpriya Awasthi : सारी उठा-पटक के बीच एक इस्तीफा और अपेक्षित है। वह इस्तीफा महाराष्ट्र के धृतराष्ट्र राज्यपाल भगतसिंह कोश्यारी का होना चाहिए। बहुत संभव है कि वह दिल्ली में बैठे अपने आकाओं के निर्देशों पर अमल भर किए हों, लेकिन अब उनके पद पर बने रहने का कोई औचित्य नहीं है। उन्होंने राजभवन को जिस तरह से ओछी राजनीति का अखाड़ा बना दिया और जिस आनन-फानन में शनिवार को देवेंद्र फडनवीस और अजित पवार को मुख्यमंत्री और उप मुख्यमंत्री पद की शपथ दिलाई वह देश की संसदीय राजनीति का काला अध्याय बन गया है। इस काले अध्याय को तो मिटाया नहीं जा सकता है, लेकिन इसमें और काले पन्ने नहीं जुड़ें इसलिए कोश्यारी को तत्काल राज्यपाल पद से हट जाना चाहिए।

Vijay Shanker Singh : अब महाराष्ट्र के राज्यपाल को भी अपना पद त्याग कर देना चाहिये. अजित पवार ने इसलिए इस्तीफा दिया कि उनके पास एनसीपी के विधायक जितने बहुमत के लिये होने चाहिये थे, उतने नहीं थे। देवेंद्र फड़नवीस ने इस्तीफा इसलिये दिया कि उन्हें लगा कि वह कल 27 नवंबर को सदन में बहुमत नहीं सिद्ध कर पाएंगे। अब राज्यपाल को इस्तीफा इसलिये दे देना चाहिये कि उन्होंने बिना प्रारंभिक छानबीन किये और स्वतः संतुष्ट हुये बिना ही आनन फानन में राष्ट्रपति शासन समाप्त करने के लिये भारत सरकार से अनुरोध कर दिया। औऱ इसलिए भी कि, उन्होंने ( राज्यपाल ने ), सरकार के मुख्यमंत्री और उपमुख्यमंत्री के रूप में, क्रमशः देवेन्द्र फडणवीस और अजित पवार को बिना बहुमत की संतुष्टि किये ही शपथ दिला दी। राज्यपाल के इस आपरिपक्व और जल्दीबाजी में बिना विवेक का इस्तेमाल किये गए निर्णय से न केवल केंद्र सरकार की किरकिरी हुयी है बल्कि राष्ट्रपति के पद को भी अनावश्यक विवाद में पड़ कर असहज होना पड़ा है। अब यह मुझे नहीं पता कि यह निर्णय राज्यपाल का स्वतः निर्णय था या किसी के इशारे पर लिया गया था।

Advertisement. Scroll to continue reading.

Ravi Joshi : संविधान दिवस पर महाराष्ट्र के राज्यपाल कोश्यारी जी ने भी कोई भाषण पेला था क्या? बाक़ी प्रधानमंत्री जी ने तो गर्दा उड़ा दिया! मैं तो हंस हंस के पागल हो जाता हूं इन भाषणबाजों को सुनकर. माना कि इनके भक्त संवैधानिक, राजनीतिक और मीडिया के तौर पर महामूर्ख हैं, लेकिन जो संविधान को मानता है और संविधान को समझता है क्या वह इनकी हरकतों से पता नहीं लगा पाएगा कि ये रोज संविधान की कितनी धज्जियां उड़ाते हैं.

Girish Malviya : असली भगत; भगतसिंह कोश्यारी जो देश के लोकतंत्र के दुर्भाग्य से राज्यपाल भी बने बैठे हैं ओर कल रात जिनकी बहुत बुरी गुजरी है… उनको समर्पित पैरोडी…..

Advertisement. Scroll to continue reading.

‘रात भर दीदा-ए-नमनाक में लहराते रहे
साँस की तरह से अजित पवार आते रहे जाते रहे

(दीदा-ए-नमनाक = आँसू भरी आँखें)

Advertisement. Scroll to continue reading.

ख़ुश थे हम कमला बाई का राज आएगा
अपना अरमान बर-अफ़्गंदा नक़ाब आएगा

( बर-अफ़्गंदा नक़ाब = बिना परदा किये)

Advertisement. Scroll to continue reading.

मख़्दूम मोइउद्दीन से क्षमा

एक दिलचस्प तुलना पेश है . 22 नवम्बर की रात थी. ठीक 1 वर्ष 1 दिन पहले यानी 21 नवम्बर 2018 की रात कश्मीर के राज्यपाल सत्यपाल मलिक ने कश्मीर विधानसभा भंग करने का ऐलान किया था … ये तब हुआ था जब PDP ने नैशनल कॉन्फ्रेंस (NC) और कांग्रेस के समर्थन से सरकार बनाने की कोशिश की. पीडीपी की मुखिया महबूबा मुफ्ती ने उस रात ट्विटर पर ऐलान किया कि वो NC और कांग्रेस के सपोर्ट से सरकार बनाने का दावा पेश कर रही हैं. लेकिन तब बताया गया कि कश्मीर के राज्यपाल भवन की फैक्स मशीन खराब हो गयी इसलिए यह सूचना सत्यपाल मलिक को मिल ही नही पायी ओर उन्होंने कश्मीर विधानसभा भंग कर दी उन्होंने उसका एक बड़ा कारण भी बताया कि अलग-अलग विचारधारा वाली पार्टियों के साथ मिलकर सरकार बना रही थी जो उनके विवेकधीन शक्तियों के अनुसार सही नहीं था. ठीक एक साल बाद कल रात महाराष्ट्र विधानसभा बिल्कुल उल्टा सीन हुआ…विपरीत विचारधारा वाली पार्टी NCP के अजित पवार और बीजेपी की बातचीत रात करीब 11:45 बजे फाइनल हुई, जिसके बाद राज्‍यपाल को सूच‍ित कर सरकार बनाने का दावा पेश किया गया। सरकार गठन के ल‍िए पर्याप्‍त संख्‍या बल को लेकर राज्‍यपाल कोश्यारी जी न जाने कैसे इस प्रस्ताव से आश्वस्त हो गए!….. और उन्होंने तुंरत केंद्र को राष्‍ट्रपति शासन हटाने की अनुशंसा भेजी। इस अनुशंसा पर राष्ट्रपति भवन रात में ही जाग गया ओर राज्‍यपाल की अनुशंसा पर केंद्र ने सुबह 5:47 बजे राष्‍ट्रपति शासन हटा लिया और सुबह 8:05 बजे फडणवीस ने सीएम पद की शपथ ले ली। यानी बीजेपी के हित का काम हो तो क्या राज्यपाल ओर क्या राष्ट्रपति! पूरी कायनात मिलकर बीजेपी की सरकार बनाने में लग जाती हैं, सरकारी मशीनरी रातोरात चौकस हो जाती है लेकिन यदि बीजेपी के हितों के खिलाफ काम हो रहा हो तो फैक्स जैसी साधारण मशीन भी खराब बता दी जाती है.

Advertisement. Scroll to continue reading.

Pawan Kumar Jha : जिन्होंने देखे हैं रोमेश भंडारी उन्हें मासूम लगेंगे भगत सिंह कोश्यारी… 1997-98 की बात है, उत्तर प्रदेश में कल्याण सिंह के पास बहुमत होने के बावजूद रोमेश भंडारी कल्याण सिंह को बर्खास्त कर दिया था, और रात के ग्यारह बजे जगदंबिका पाल को मुख्यमंत्री बना दिया। पुरे देश में सनसनी फैल गई, इस फ़ैसले के ख़िलाफ़ अटल बिहारी बाजपेई आमरण अनशन पर बैठे, कोर्ट का दरवाजा खटखटाया गया था। कोर्ट ने राज्यपाल के आदेश को ग़लत बताया लेकिन जगदंबिका पाल फिर भी मानने तैयार नहीं थे, कल्याण सिंह मुख्यमंत्री बहाल हुए लेकिन मुख्यमंत्री दफ़्तर पर जगदंबिका पाल क़ब्ज़ा कर लिए। फिर हाई कोर्ट के लिखित आदेश से उन्हें हटाया गया। जगदंबिका पाल का कुल कार्यकाल 1 दिन का रहा, वो भी राज्यपाल रोमेश भंडारी की बदौलत, जबकि कल्याण सिंह के पास बहुमत था। रोमेश भंडारी भी कांग्रेस के आदमी थे, और आज जो भाजपा कर रही है, वो आपसे ही सीखी है, हमारे कांग्रेस के प्यारों…

सौजन्य : फेसबुक

Advertisement. Scroll to continue reading.

इसे भी पढ़ें-

राज्यपाल रहे रोमेश भंडारी और केशरीनाथ त्रिपाठी की काली कथा

Advertisement. Scroll to continue reading.
Click to comment

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Advertisement

भड़ास को मेल करें : [email protected]

भड़ास के वाट्सअप ग्रुप से जुड़ें- Bhadasi_Group

Advertisement

Latest 100 भड़ास

व्हाट्सअप पर भड़ास चैनल से जुड़ें : Bhadas_Channel

वाट्सअप के भड़ासी ग्रुप के सदस्य बनें- Bhadasi_Group

भड़ास की ताकत बनें, ऐसे करें भला- Donate

Advertisement