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सियासत

राज्यपाल रहे रोमेश भंडारी और केशरीनाथ त्रिपाठी की काली कथा

दयानंद पांडेय

जानने वाले जानते हैं कि अगर विधानसभा अध्यक्ष सत्ता पक्ष का हो , क़ानून जानता हो , जूनून का धनी हो तो खुदा भी कोई सरकार नहीं गिरा सकता। लोकसभा के कभी अध्यक्ष रहे सोमनाथ चटर्जी को भूल जाइए। जिन्हों ने संसदीय परंपरा के आगे पार्टी को भी पूरी सख्ती से नो कह दिया था। और बेरहम पार्टी ने उन्हें बाहर का रास्ता दिखा दिया। लेकिन यह एक अपवाद है।

लोकसभा और और तमाम प्रदेशों की विधान सभा के अध्यक्ष संसदीय परंपरा और नियम क़ानून से नहीं , अब हाईकमान के निर्देश पर चलते हैं। उत्तर प्रदेश में तब मुलायम सिंह यादव ने मुख्य मंत्री पद से इस्तीफा दे दिया था। मायावती की सरकार आ गई। लेकिन धनीराम वर्मा परंपरा के मुताबिक इस्तीफा देने के बजाय अड़े रहे तो अड़े रहे। सब लोग समझा कर हार गए। धनीराम वर्मा लेकिन अंगद के पांव की तरह जमे रहे। फुल बेशर्मी से जमे रहे। मुलायम सिंह भी किनारे बैठ कर मजा लेते रहे। लंबा नाटक चला था तब। विधानसभा अध्यक्ष की ऐसी कहानियां और बेईमानियां कई हैं। लेकिन केशरीनाथ त्रिपाठी जब विधानसभा अध्यक्ष थे तब की उन की बेईमानियां और कारगुजारियां तो न भूतो , न भविष्यति!

ऐसे ही कमीने राज्यपालों की जब कथा लिखी जाएगी तो पहला नाम हरियाणा के कांग्रेसी तत्कालीन दलित राज्यपाल जी डी तपासे का नाम पहला होगा । जिसे आयाराम , गयाराम के चक्कर में देवीलाल ने यह कहते हुए कि इंदिरा गांधी के चमचे तुम्हें पता नहीं है कि तुम ने लोकतंत्र की हत्या कर दी है , ज़ोरदार थप्पड़ मारा था । सुरक्षा कर्मी तपासे को बचा कर न ले गए होते तो देवीलाल लात-जूते भी मार सकते थे राज्यपाल तपासे को । लेकिन दूसरा कमीना नाम निश्चित रूप से उत्तर प्रदेश के तत्कालीन राज्यपाल रोमेश भंडारी का है । बूटा सिंह , सिब्ते रजी , हंसराज भारद्वाज , रामलाल , जगन्नाथ पहाड़िया आदि तमाम और नाम भी हैं।

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खैर , तब लार्जेस्ट पार्टी भाजपा थी तब और कल्याण सिंह नाक रगड़ कर रह गए लेकिन रोमेश भंडारी ने उन्हें मुख्य मंत्री पद की शपथ के लिए नहीं बुलाया । तब जब कि कोई और दल सरकार बनाने के लिए आगे नहीं आया था । कहना न होगा कि यह सब समाजवादी पार्टी के रामगोपाल यादव के इशारे पर हो रहा था । उत्तर प्रदेश में राष्ट्रपति शासन जारी रहा । लेकिन एक दिन अचानक भाजपा और बसपा में समझौता हो गया । समझौता हुआ कि बारी-बारी मायावती और कल्याण सिंह मुख्य मंत्री बनेंगे । पहले मायावती बनीं । फिर कल्याण सिंह का नंबर आया । लेकिन कुछ दिन बाद ही कल्याण सिंह से मायावती ने समर्थन वापस ले लिया।

अब रोमेश भंडारी ने कल्याण से छत्तीस घंटे में बहुमत साबित करने को कहा । मायावती ने अपने सभी विधायकों को नज़रबंद कर लिया । कांग्रेस दो फाड़ हो चुकी थी । विधानसभा में बहुमत साबित करने के दिन बस में भर कर विधायकों को ले कर मायावती पहुंची । जब कि उन के पार्टी आफिस और विधानसभा की दूरी बमुश्किल दो सौ मीटर की थी । उत्तर प्रदेश विधान सभा परिसर में पहली बार किसी बस में भर कर विधायक पहुंचे थे । बस से उतार कर मायावती ने विधायकों की लाईन लगवा कर दो तीन बार गिनती करवाई । यह सब देख कर एक वरिष्ठ पुलिस अफसर बोले , ऐसी गिनती तो हम लोग पुलिस ट्रेनिंग सेंटर में भी नहीं करते।

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खैर मायावती आगे-आगे चलीं । बिलकुल किसी मानिटर की तरह । पीछे-पीछे लाईन से विधायक । नसीमुद्दीन सिद्दीकी , मुख़्तार अंसारी जैसे लोगों की निगरानी में । विधान सभा में पहुंच कर मायावती पहले ही से बैठे कांग्रेस के प्रमोद तिवारी के पास बैठ गईं और विह्वल हो कर बोलीं , कि आप की कांग्रेस तो टूट गई पर हमारा एक भी विधायक नहीं टूटा । मायावती अभी यह बात प्रमोद तिवारी से कह ही रही थीं कि मायावती के विधायक जो उन के पीछे-पीछे आए थे , लगभग परेड करते हुए भाजपा के विधायकों की तरफ बढ़ गए । मैं विधान सभा की प्रेस गैलरी में बैठा यह सब देख रहा था । एक गया , दो गया , कई सारे । प्रमोद तिवारी मायावती से कुछ बोले नहीं , जवाब क्या देते खो गए सवालों में की स्थिति आ गई थी । उन्हों ने सिर्फ इशारों से मायावती को इंगित किया।

मायावती के पैरों के नीचे से ज़मीन खिसक गई । चेहरा उड़ गया । सारी शेखी उतर गई थी । मायावती ने अपने विधायकों को नाम ले-ले कर पुकारा । पर उन की किसी ने नहीं सुनी । विधायक और तेज़ी से भाजपा पाले में बढ़ते चले गए । एक-एक कर चौदह विधायक मायावती के भाजपा की तरफ जा कर बैठ गए । प्रमोद तिवारी औचित्य का प्रश्न ले कर खड़े हो गए । पूरी विधानसभा में अफरा तफरी मच गई । आरोप-प्रत्यारोप के साथ ही हाथापाई शुरू हो गई । मायावती बहुत होशियार महिला हैं । उन्हों ने इशारे से मुख़्तार अंसारी को अपने पास बुलाया । फिर इशारा किया कि मुझे कवर करो । और खुद बकैया-बकैया चल कर ताकि उन्हें कोई देख न सके , फौरन विधानसभा से बाहर निकल गईं।

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फिर तो उत्तर प्रदेश विधानसभा में जो बेमिसाल खून खराबा हुआ वह अब एक इतिहास है । सब को मालूम है । कितनों के सिर फूटे , कितनों के हाथ पैर । मेज पर लगी तमाम माईक तोड़ कर विधायकों ने मार पीट की । कुर्सियां चलीं । तब की मार पीट के एक से एक लाजवाब प्रसंग अभी भी मेरी आंखों और यादों में कैद हैं ।विधानसभा अध्यक्ष केशरीनाथ त्रिपाठी ने खुद मेज के नीचे छुप कर कार्रवाई चलाई । उन के चारो तरफ मार्शल अलग खड़े थे । अंततः केशरीनाथ त्रिपाठी ने सदन में जब पुलिस के कमांडो बुलाए तब जा कर शांति बनी । लेकिन सारी मार पीट में भी केशरीनाथ त्रिपाठी ने एक क्षण के लिए भी बोलना बंद नहीं किया।

बहुमत साबित होने की हर्षध्वनि के बाद केशरीनाथ त्रिपाठी ने बाकायदा इंगित किया कि माननीय राज्यपाल महोदय के निर्देशानुसार विधानसभा की कार्रवाई बिना एक क्षण भी रुके बहुमत साबित हो चूका है कृपया प्रेक्षक गण यह नोट कर लें । स्थितियां ऐसी थीं तब कि विधायकों की तोड़-फोड़ के बाद बवाल होना ही था , यह बात रोमेश भंडारी ठीक से जानते थे । इस लिए ही यह शर्त रखी थी कि बिना एक क्षण कार्रवाई रुके विश्वास मत प्राप्त करें कल्याण सिंह । लेकिन रोमेश भंडारी तब विधानसभा अध्यक्ष केशरीनाथ त्रिपाठी की क्षमता को नहीं जानते थे । नहीं जानते थे कि वह कितने घाघ वकील हैं । रोमेश भंडारी को तब कल्याण सिंह ने नहीं , केशरीनाथ त्रिपाठी ने पानी पिलाया था । और विधायकों के बीच जो भी तोड़-फोड़ हुई थी तब वह की थी राजनाथ सिंह ने । कल्याण सिंह तो बस दूल्हा बने बैठे रहे थे।

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अब यह भी अलग बात है कि उत्तर प्रदेश विधानसभा में यह सारी मार-पीट समाजवादी पार्टी के मुखिया मुलायम सिंह यादव द्वारा प्रायोजित थी। और उन का निशाना एक साथ दो था । एक तो कल्याण सिंह की सरकार गिर जाए लेकिन यह दूसरा निशाना था । पहला निशाना मायावती की तबीयत भर पिटाई की थी । लेकिन मायावती ऐन वक्त भर भाग गईं । सो सब योजना धूल-धुसरित हो गई।

हां , बाद के दिनों में केशरीनाथ त्रिपाठी ने जो किया वह संसदीय परंपरा पर एक गहरा दाग है । बसपा से टूटे लोगों ने जनतांत्रिक बसपा भले बना ली थी , सभी चौदह के चौदह मंत्री बन गए थे लेकिन दल बदल कानून के तहत वह लोग अयोग्य हो चुके थे । बसपा ने विधानसभा अध्यक्ष के पास यह शिकायत भी की । लेकिन विधानसभा का टर्म खत्म हो गया , केशरीनाथ त्रिपाठी ने यह सुनवाई नहीं खत्म की । तारीख पर तारीख देते रहे । केशरीनाथ त्रिपाठी की यह कार्रवाई एक गहरा धब्बा है , संसदीय परंपरा पर । लेकिन वह कहते हैं न कि जैसे को तैसा मिला । मायावती ने समझौते के तहत अपना मुख्यमंत्री का कार्यकाल तो पूरा किया भाजपा के समर्थन से पर भाजपा को पूरे समय समर्थन देने के बजाय समर्थन वापस ले लिया था । भाजपा ने तब उन्हें सबक सिखा दिया था । अब रियाज में पक्की हो चुकी भाजपा इन दिनों निरंतर कांग्रेस को उस के ही छल-कपट से सबक सिखा रही है तो लोग त्राहिमाम-त्राहिमाम करने लगे हैं । यह गुड बात नहीं है।

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लेखक दयानंद पांडेय लखनऊ के वरिष्ठ पत्रकार और साहित्यकार हैं.

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1 Comment

1 Comment

  1. Sudhendu Ojha

    November 27, 2019 at 5:02 pm

    दयानंद जी, हाथ में कलम है इसीलिए किसी को “कमीना” लिखना, कुंठा और स्वांत-सुखाय के अतिरिक्त क्या हो सकता है?

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