कमलेश्वर जी के साथ काम करने का एक मौका हमें मिला था। वे हमारे पसंदीदा कहानीकार और संपादक दोनों थे। नई दिल्ली से जब दैनिक जागरण निकला था, तब हम मेरठ जागरण में हुआ करते थे। कमलेश्वर जी ने मुझे दिल्ली के लिए चुना था और उनके साथ लगने के लिए मुझे नरेंद्र मोहन या धीरेंद्र मोहन से परमिशन चाहिए था क्योंकि हम जागरण में ही थे।
कमलेश्वर जी और गायत्री जी
वह परमिशन नहीं मिला तो हमने जागरण छोड़कर बरेली अमर उजाला ज्वाइन किया। वहां भी टिक न सके तो जनसत्ता आकर थम गये। कमलेश्वर जी ने मेरी कोई कहानी सारिका में नहीं छापी क्योंकि हमारी कोई कहानी समांतर खांचे में फिट नहीं बैठती थी। दिनमान के संपादक रघुवीर सहाय थे, जहां हम लोग लिखते थे। छात्र जीवन से जो दुबारा दुबारा खूब लिखवाते थे।
कमलेश्वर जी से सारिका और दिनमान के संपादकीय में जो हमारे मित्र थे, उनकी वजह से बातचीत का रिश्ता था लेकिन उससे बड़ा रिश्ता था, बहुत कामयाब होने के बावजूद वे जनसरोकारों से जुड़े हुए थे।
यह पत्र कथा बिंब के संपादक माधवजी को लंदन से तेजेंद्र शर्मा ने लिखा है और इससे पता चलता है कि कमलेश्वर जी के बाद अब गायत्री भाभी भी चल बसीं। हो सकता है कि आपको पहले खबर हो गयी हो। फिर भी हिंदी दुनिया में फिल्म, टेलीविजन, पत्रकारिता और साहित्य में हमारे नेता के गुजरने के बाद उनकी पत्नी का चले जाना बड़ी खबर बनती है। इसलिए इस खबर को साझा कर रहा हूं।
”प्रिय भाई माधव
आदरणीय गायत्री भाभी के निधन का दुखद समाचार मुझे लन्दन में प्रदीप वर्मा के माध्यम से मिल गया था। आपका फ़ोन नम्बर नहीं मिल पा रहा था, इसलिये आपसे संवेदना प्रकट नहीं कर पाया।
कमलेश्वर जी और गायत्री भाभी की बहुत सी यादें मेरे हृदय में सुरक्षित हैं।
तेजेन्द्र शर्मा, लन्दन”
लेखक एवं वरिष्ठ पत्रकार पलाश विश्वास से संपर्क : [email protected]