दिल्ली के कानून मंत्री रहे जितेन्द्र तोमर को पुलिस ने फर्जी डिग्री के मामले में गिरफ्तार किया है और कोर्ट द्वारा दी गई रिमांड पर अब पुलिस तोमर को साथ ले जाकर फर्जी डिग्री कांड की जांच में जुटी है और प्रथम दृष्ट्या तो साबित भी हो रहा है कि तोमर के पास वैध नहीं, बल्कि अवैध डिग्रियां ही हैं। यह भी सोचने वाली बात है कि दिल्ली पुलिस इतनी भी मूर्ख नहीं है कि वह केजरीवाल सरकार के एक मंत्री को इस तरह गिरफ्तार करे, जब तक कि उसके पास पुख्ता सबूत ना हों, क्योंकि यह मामला दिल्ली पुलिस तक ही सीमित नहीं है, बल्कि केन्द्र की मोदी सरकार के साथ चल रहे केजरीवाल सरकार के पंगे का भी बड़ा मामला है।
जितेन्द्र तोमर की डिग्रियां फर्जी निकलने के मामले में उनको तो कानून के मुताबिक सजा मिलेगी ही, मगर दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल को भी जवाब तो देना ही पड़ेंगे। आखिर उनके सामने ऐसी क्या मजबूरी रही कि उन्होंने चुनाव के पहले ही इस तरह की शिकायत मिलने के बावजूद उसे हल्के में लिया? अरविंद केजरीवाल को नियम-कायदों की बेहतर समझ है और उनसे ये इतनी बड़ी चूक या गलती कैसे हो गई कि उन्होंने प्राप्त शिकायतों की अपने स्तर पर उपयुक्त जांच क्यों नहीं करवाई और तोमर द्वारा प्रस्तुत किए गए दस्तावेजों को ही कैसे मान्य कर लिया? यह बड़ा आसान था कि केजरीवाल तोमर द्वारा दिए गए दस्तावेज और उन पर लगे आरोपों की जांच करवा सकते थे, वे अपनी आप पार्टी के ही कार्यकर्ताओं को फैजाबाद के अवध विश्वविद्यालय के साथ-साथ उन कॉलेजों में भेज देते जहां से ये डिग्रियां लेना बताया गया तो उन्हें शिकायतों के प्रमाण हासिल हो जाते।
अब आप पार्टी के लोग बचाव में ये तर्क दे रहे हैं कि केजरीवाल के पास कोई खूफिया पुलिस नहीं है, जो वह इस तरह के आरोपों या शिकायतों की जांच करवा सके, लेकिन पार्टी के भीतर ही जितेन्द्र तोमर की फर्जी डिग्रियों का मामला सामने आया था और तब प्रशांत भूषण से लेकर योगेन्द्र यादव ने भी सवाल उठाए थे। मुझे यह बात हजम ही नहीं हो रही कि केजरीवाल जैसे सतर्क और जानकार व्यक्ति ने इतनी बड़ी गलती कैसे कर दी? पहले तो सीटें कम थीं मगर इस बार तो आप पार्टी को 70 में से 67 सीटें मिलीं। ऐसे में एक-दो दागी विधायकों को अगर घर बैठा दिया जाता तो सरकार पर कोई प्रभाव नहीं पड़ता। यहां तक कि तोमर को कानून मंत्री बनाना ही नहीं था, जब उन पर जांच चल रही थी। अगर वे जांच में क्लिन चिट पा लेते तब मंत्री बनाया जा सकता था। इस पूरे मामले में हो रही राजनीति भी कम दिलचस्प नहीं है।
ऐसे सैकड़ों-हजारों प्रकरण रहते हैं, जिनमें पुलिस इतनी तत्परता से कार्रवाई करती नजर नहीं आती, जितनी जितेन्द्र तोमर के मामले में फुर्ती दिखाई गई और दिल्ली बार काउंसलिंग भी 5 साल तक चुप क्यों बैठी रही? लेकिन सिर्फ इससे भी तोमर का बचाव हर्गिज नहीं किया जा सकता और केजरीवाल पर तो इतने कैमरे न्यूज चैनलों के 24 घंटे तने रहते हैं और कांग्रेस के साथ-साथ भाजपा के भी निशाने पर तो वे हैं ही। ऐसे में इतनी भारी-भरकम चूक वाकई हैरान करने वाली है। सोमनाथ भारती के मामले में भले ही आप पार्टी यह कहकर पल्ला झाड़ ले कि ये उनका घरेलू आपसी विवाद है, जिसमें पार्टी का कोई लेना-देना नहीं है मगर जितेन्द्र तोमर के मामले में तो सीधी-सीधी अरविंद केजरीवाल की लापरवाही सामने आ रही है कि उन्होंने तोमर पर कैसे और क्यों इतना भरोसा कर लिया? अब तैयार बैठी भाजपा तो हमले बोलेगी ही और मीडिया को भी मुद्दा मिल गया। फिलहाल तो आप पार्टी की फजीहत होना इस मुद्दे पर तय है। हालांकि मोदी सरकार की शिक्षा मंत्री स्मृति ईरानी पर भी फर्जी डिग्री के आरोप लगे हैं और अब यह मांग भी उठने लगी कि दिल्ली पुलिस स्मृति ईरानी के मामले में भी ऐसी तत्परता और सख्ती दिखाए। फिलहाल स्मृति ईरानी का मामला भी कोर्ट में है। अभी तो केजरीवाल को तोमर के मामले में जवाब देना भारी पड़ेगा।
राजेश ज्वेल संपर्क : 9827020830