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उत्तर प्रदेश

…और इस तरह चली गई भाजपा मीडिया सेल से मनीष शुक्‍ला की कुर्सी!

यूपी भाजपा से बहुत जली-भुनी खबर आ रही है कि प्रदेश मीडिया प्रभारी मनीष शुक्‍ला को पार्टी के मीडिया सेक्‍शन से उजाड़ने में उनके अपने खास लोगों का ही हाथ है. उन्‍हीं अपनों का, जिन्‍होंने लंबे समय से इस पार्टी के इस कमाऊ पद पर अपनी नजरें गड़ाए रखी थी और पॉलिटिकल डिमोशन झेलने को भी तैयार बैठे थे. उन्‍होंने प्रदेश संगठन महामंत्री से महीनों से मनीष शुक्‍ला की चुगली करते आ रहे थे. दीपावली पर उन्‍हें मौका भी मिल गया और इसका पूरा लाभ उठाते हुए उन्‍होंने मनीष शुक्‍ला से गद्दी छीनकर खुद मुख्‍य मीडिया प्रभारी बन बैठे. इसके साथ ही विधानसभा चुनाव में मनीष शुक्‍ला के कमाई करने के सारे अरमान धूल-धूसरित हो गए.

<p>यूपी भाजपा से बहुत जली-भुनी खबर आ रही है कि प्रदेश मीडिया प्रभारी मनीष शुक्‍ला को पार्टी के मीडिया सेक्‍शन से उजाड़ने में उनके अपने खास लोगों का ही हाथ है. उन्‍हीं अपनों का, जिन्‍होंने लंबे समय से इस पार्टी के इस कमाऊ पद पर अपनी नजरें गड़ाए रखी थी और पॉलिटिकल डिमोशन झेलने को भी तैयार बैठे थे. उन्‍होंने प्रदेश संगठन महामंत्री से महीनों से मनीष शुक्‍ला की चुगली करते आ रहे थे. दीपावली पर उन्‍हें मौका भी मिल गया और इसका पूरा लाभ उठाते हुए उन्‍होंने मनीष शुक्‍ला से गद्दी छीनकर खुद मुख्‍य मीडिया प्रभारी बन बैठे. इसके साथ ही विधानसभा चुनाव में मनीष शुक्‍ला के कमाई करने के सारे अरमान धूल-धूसरित हो गए.</p>

यूपी भाजपा से बहुत जली-भुनी खबर आ रही है कि प्रदेश मीडिया प्रभारी मनीष शुक्‍ला को पार्टी के मीडिया सेक्‍शन से उजाड़ने में उनके अपने खास लोगों का ही हाथ है. उन्‍हीं अपनों का, जिन्‍होंने लंबे समय से इस पार्टी के इस कमाऊ पद पर अपनी नजरें गड़ाए रखी थी और पॉलिटिकल डिमोशन झेलने को भी तैयार बैठे थे. उन्‍होंने प्रदेश संगठन महामंत्री से महीनों से मनीष शुक्‍ला की चुगली करते आ रहे थे. दीपावली पर उन्‍हें मौका भी मिल गया और इसका पूरा लाभ उठाते हुए उन्‍होंने मनीष शुक्‍ला से गद्दी छीनकर खुद मुख्‍य मीडिया प्रभारी बन बैठे. इसके साथ ही विधानसभा चुनाव में मनीष शुक्‍ला के कमाई करने के सारे अरमान धूल-धूसरित हो गए.

दरअसल, खाली-ठाले बैठे सूत्र बताते हैं कि पूर्व प्रदेश अध्‍यक्ष डा. लक्ष्‍मीकांत बाजपेयी के खासमखास रहे और लोकसभा चुनाव में जमकर कमाने वाले मनीष शुक्‍ला इन दिनों संगठन महामंत्री सुनील बंसल के खेमे में फिट होने की कोशिश कर रहे थे. लंबे समय से कई दरबारों पर मत्‍था टेक रहे थे. उनकी यह कोशिश प्रदेश प्रवक्‍ता हरिश्‍चंद्र श्रीवास्‍तव को लंबे समय से रास नहीं आ रही थी, क्‍योंकि श्रीवास्‍तव जी लंबे समय से इस कमाऊ कुर्सी पर अपनी नजरें गड़ाए हुए थे. मीडिया सेल की एक-एक बात बंसलजी और अध्‍यक्ष केशवजी मौर्या तक बजरिए दिलीप श्रीवास्‍तव पहुंचा रहे थे. दिलीपजी, मौर्याजी के खास सहयोगी हैं. इधर, शुक्‍लाजी भाजपा के राष्‍ट्रीय नेता श्रीकांत शर्मा के जरिए अपने खंडहराते अरमानों के ईंट-पलस्‍टर को ठीक करने में जुटे हुए थे कि इसी बीच दीपावली आ गई. इसी दीपावली पर मेरे अपने-तेरे अपने के खेल ने शुक्‍लाजी का खेल खराब कर दिया और श्रीवास्‍तवजी का बना दिया. यानी इस दीपावली के चलते एक के अरमान जल गए दूसरे के मन में दीए.

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अब हुआ यूं कि चुनावी साल को देखते हुए भाजपा ने इस बार पत्रकारों को महंगे तोहफे देने का निर्णय लिया था ताकि ओबलाइज-सोबलाइज किया जा सके. अब कुछ विघ्‍नसंतोषी बताते हैं कि इसके लिए तीन सौ के आसपास पत्रकारों की लिस्‍ट बनाई गई थी, लेकिन कई स्‍क्रीनिंग टेबुल से घूमने-फिरने तथा मेरे-तेरे के बाद इनकी संख्‍या 200 तक सिमट गई. इसमें भाइयों ने अपने-अपने गुड लिस्‍ट और जातियों के पत्रकारों को पूरी वरीयता दी. अब कुछ चुगलखोरों का कहना है कि मनीष शुक्‍ला ने गिफ्ट कुछ ऐसे लोगों को भी पकड़ा दिया, जिनका लिस्‍ट में पहले से नाम नहीं था. जिन चैनलों में उनका आना जाना था, वहां के चपरासी तक को उपकृत करने की असफल कोशिश कर डाली. श्रीवास्‍तवजी को यह बात नागवार लगी. आनन-फानन में उन्‍होंने अपने खास पत्रकार मित्र योगेश श्रीवास्‍तव समेत कुछ अन्‍य वास्‍तवों का लिस्‍ट में नाम श्रीगणेश करवाया, साथ ही दो-चार बोरी शिकायत सुनील बंसल तक पहुंचा दी.

इधर, लंबे समय से इसी ताक में लगे बंसलजी ने उचित मौका देखकर चौका लगा दिया. मनीष शुक्‍ला को बहरिया कर प्रदेश प्रवक्‍ता रहे हरिश्‍चंद्र श्रीवास्‍तव को मुख्‍य मीडिया प्रभारी बना डाला. श्रीवास्‍तवजी लंबे समय से इस पद पर नजरें गड़ाए बैठे हुए थे. प्रवक्‍ता की बिना पैसे की ठेकेदारी में मजा नहीं आ रहा था. श्रीवास्‍तवजी इसके पहले भी मीडिया सेल में रह चुके थे. इसकी हरियाली देख चुके थे, लिहाजा विधानसभा चुनाव से पहले किसी भी कीमत पर सेट होने की तैयारी कर रहे थे. अब बोरी-बोरी शिकायतें कई जगह पहुंचाने का उनको ईनाम भी मिल गया. खैर, फोन करने पर श्रीवास्‍तवजी तो बकाएदे बाहर होने की बात कह डाली, जबकि शुक्‍ला जी का फोन नहीं लगा. जब मनीषजी और हरिश्‍चंद्रजी से बजरिए मैसेज उनका पक्ष जानने की कोशिश की गई तो उन्‍होंने कोई जवाब नहीं दिया.

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