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सियासत

लोकसभा की आज की कार्यवाही पर अजात अभिषेक की यह लाइव कमेंट्री पढ़ने लायक

Sanjaya Kumar Singh : लोकसभा की आज की कार्यवाही पर अजात अभिषेक की लाइव कमेंट्री पढ़ने लायक है। पूरा दिन लोकसभा की कार्यवाही देखा महंगाई पर चर्चा हो रही थी और सरकार के जितने भी नुमाइंदे थे सब मॉनसून के उपर सारी जिम्मेदारी डाल रहे थे, बता रहे थे कि दो साल पानी नहीं बरसा और इस साल बरसा है तो आगे सब ठीक हो जाएगा। शाम को ये लब्बोलुआब निकला की सरकार मुंह बाये बारिश के लिए आसमान की ओर ताक रही है और हम मुंह बाये सरकार की ओर ताक रहे हैं। चलो टीवी बंद करते हैं पहले भी हमारा कट रहा था आगे भी हमारा ही कटेगा।

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Sanjaya Kumar Singh : लोकसभा की आज की कार्यवाही पर अजात अभिषेक की लाइव कमेंट्री पढ़ने लायक है। पूरा दिन लोकसभा की कार्यवाही देखा महंगाई पर चर्चा हो रही थी और सरकार के जितने भी नुमाइंदे थे सब मॉनसून के उपर सारी जिम्मेदारी डाल रहे थे, बता रहे थे कि दो साल पानी नहीं बरसा और इस साल बरसा है तो आगे सब ठीक हो जाएगा। शाम को ये लब्बोलुआब निकला की सरकार मुंह बाये बारिश के लिए आसमान की ओर ताक रही है और हम मुंह बाये सरकार की ओर ताक रहे हैं। चलो टीवी बंद करते हैं पहले भी हमारा कट रहा था आगे भी हमारा ही कटेगा।

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5 बार लोकसभा सांसद, एक बार राज्यसभा सांसद और दो बार केंद्रीय मंत्री सदन में खड़े होकर डॉ लोहिया को कोट करके झूठ बोल रहे हैं कि दवाओं के दाम इस सरकार ने कम किये हैं जिसका लाभ गरीब आदमी को मिल रहा है । कैंसर की दवा 8000 से एक लाख आठ हजार करने का श्रेय इसी मोदी सरकार को है। 1 अप्रैल 2015 को सरकार ने नोटिफिकेशन जारी कर 509 दवाओं का दाम बढा दिया था। हुकुमदेव जी झूठ जितना मर्जी हो बोलिए लेकिन लोहिया का नाम मत लिजिए वरना लोहिया जी जहां भी होंगे शर्मिंदा हो रहे होंगे।

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जेटली जी ने लोकसभा में 15-20 मिनट दाल की महंगाई पर छौंक लगाया और तृणमूल कांग्रेस के सुगाता राय ने उस पर दो मिनट में रायता फेर दिये। वैश्विक दुनिया में तेल की कीमतों में गिरावट आयी तो सरकार ने उसका लाभ आम उपभोक्ताओं को हस्तांतरित करने के बजाय टैक्स बढा दिया और अपनी जेबें भर ली। जब दाल की कीमतें बढ़ रही हैं तो उपभोक्ता को पूरा पैसा देना है। मतलब लाभ नहीं बांटेगी सरकार लेकिन हानि का पूरा जनता से वसूलेगी। फिर वही बात आ गई कि इन लोगों ने ‘ल’ पढा है ‘द’ नहीं पढा है।

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लोकसभा में राहुल गांधी के महंगाई के आरोप पर मधुबनी के सांसद हुकुमदेव जी जैसा वरिष्ठ नेता जब जन-धन योजना में एकाउंट खोलने की बात करने लगता है तो लगता है कि वाकई में राजनीति अब चारण युग के चरमोत्कर्ष पर है। बाकी “भारत की राजधानी क्या है” पूछने पर “शिमला बहुत सुंदर है” बताना संघी राजनीति का पुराना कल्चर है।

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सरकार की रिपोर्ट के मुताबिक पब्लिक प्रोविडेंट फंड और ईपीएफ में करीब 27000 हजार करोड़ रुपए का कोई भी दावेदार नहीं है और अब वो इसे ट्रांसफर करके वरिष्ठ नागरिकों के लिए कल्याण कोष बनाना चाहते हैं। वरिष्ठ नागरिकों के लिए सरकार का सोचना बहुत ही प्रशंसनीय है लेकिन हुजूर आप नाम कमाना चाहते हैं तो कमाइये लेकिन मजदूरों के पैसे से क्यों? आप क्रेडिट कार्ड रखते हैं दो दिन लेट होइए पेमेंट करने में दिन में 50 बार फोन आ जायेगा, एक सामान्य व्यक्ति कैसा भी लोन ले और उसकी किश्त बाउंस होते ही बैंक आपको कहीं से भी खोजकर ले आयेगा और कैसे भी करके वो आपसे वसूल कर लेगा। आज मजदूरों का पैसा जो उनकी अज्ञानता और मुश्किल सरकारी तंत्र की वजह से सरकार के पास पडा है अगर सरकार बहादुर चाह ले तो पंद्रह दिन में हर खाताधारक का पैसा उसके पास होगा लेकिन सरकारों ने ‘ल’ पढा है ‘द’ पढा ही नहीं है। आप गाय, गोबर, गोमूत्र में उलझे रहिए सरकार आपकी जेब काटने में तत्पर है। (बात सोलह आने सही है, सरकार जब अपना पैसा नहीं छोड़ती तो गरीबों का रखने की कैसे सोच सकती है।)

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वरिष्ठ पत्रकार संजय कुमार सिंह की एफबी वॉल से.

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