पंकज सुबीर-
‘हंस’ का मार्च अंक आ गया है। स्त्री रचनाशीलता पर केंद्रित यह अंक आपको पसंद भी आ रहा है। कई सारी बधाइयाँ मिल रही हैं, किन्तु बधाइयों के असली हक़दार ये लेखक हैं, जिनके कारण यह अंक इतना समृद्ध बन पाया और समय से बन पाया।
आभार पारुल तोमर जी का जिन्होंने अंक की भावना के अनुरूप इतना सुंदर आवरण बना कर दिया। चूँकि संपादकीय पूर्व में लिख कर भेज चुका था, इसलिए संपादकीय में उनका आभार नहीं व्यक्त कर पाया था।
आभार आदरणीय ममता कालिया, मधु कांकरिया, गीताश्री, प्रज्ञा, सबाहत आफ़रीन, अणुशक्ति सिंह, सुमन केशरी, रश्मि भारद्वाज, नीलेश रघुवंशी, पल्लवी त्रिवेदी, ज्योति जैन, इस्मत ज़ैदी, नुसरत मेहदी, सरघी, सुभाष नीरव का इस अंक को कहानियों, कविताओं, ग़ज़लों, लघुकथाओं, अनुवाद से रचनात्मक सहयोग प्रदान करने के लिए। आभार अंजू शर्मा (फिल्म थ्री आफ अस पर आलेख), डॉ. सुनीता (स्त्री लेखन और आलोचना की राजनीति), डॉ. विजय बहादुर सिंह (मुनव्वर राना पर स्मृति लेख), अनुराग चतुर्वेदी (वेददान सुधीर पर स्मृति लेख), यूनुस ख़ान (उस्ताद राशिद ख़ान पर स्मृति लेख) तथा प्रकाश कांत (जीवन सिंह वर्मा पर स्मृति लेख) का रचनात्मक सहयोग के लिए।
आभार समीक्षाओं के लिए गंगा शरण सिंह (अगम बहै दरियाव- शिवमूर्ति), प्रभात रंजन (गुलज़ार साब- यतीन्द्र मिश्र) तथा साधना अग्रवाल (तुम्हारा नानू – नामवर सिंह) का, इन समीक्षाओं से परख के पन्ने समृद्ध हुए।
आभार हंस की पूरी टीम का जिनका पूरा सहयोग इस अंक को तैयार करने में प्राप्त हुआ- संजय सहाय जी, रचना यादव जी, शोभा अक्षर, वीना उनियाल तथा पत्रिका के डिज़ाइन के दौरान सतत संपर्क में रहने वाले हंस के डिज़ाइनर प्रेमचंद गौतम का। और हाँ यहाँ सीहोर में सामग्री तैयार करने में सहयोग करने के लिए प्रिय शहरयार का। जो कुछ इस अंक में अच्छा बन पड़ा है सब इनका है, इन सभी को बधाई और आभार।