नई दिल्ली : भारत के स्वतंत्र मीडिया की बेईमानी की हद हो गई है। खबरों को तोड़ना मरोड़ना तो इनका आए दिन का काम है। अब हालात ये है कि ये सुप्रीम कोर्ट के आदेश पर भी भ्रम फैलने से बाज नहीं आ रहे हैं। पिछले साल भर से सुप्रीम कोर्ट में मजीठिया वेज बोर्ड की सिफारिशों को न लागू करने के लिए लगभग सभी बड़े अखबारों के मालिकों के खिलाफ अवमानना का मामला चल रहा है लेकिन आज तक इस सुनवई की किसी मीडिया ने सुध लेने की जरूरत नहीं महसूस की क्योंकि माननीय सुप्रीम कोर्ट इनके दिग्गज वकीलों के तर्क नकारता रहा।
अब जब कोर्ट की एक बेंच ने 06 जुलाई को 14 मामलों की नए सिरे से सुनवाई करने से यह कहकर इंकार कर दिया कि इस मामले पर पहले ही कोर्ट ने याचिका संख्या 411/2014 और 50 मामलों की सुनवाई के दौरान सभी राज्य सरकारों को जांच कर रिपोर्ट देने को कहा है। साथ ही माननीय कोर्ट ने यह भी कहा इन नए मामलों की सुनवाई से मामले में विलंब होगा। माननीय अदालत ने अपने आदेश में इस कारण से इन याचिकाओं को खरिज कर दिया।
लेकिन देखिए मीडिया ने कैसे बिना इस खबर का बैकग्राउंड दिए कितनी भ्रामक खबरें प्रसारित की। इन खबरों से लगता है कि सुप्रीम कोर्ट ने मजीठिया से संबंधित सभी याचिकाओं को खारिज कर दिया, जबकि हकीकत यह है कि कोर्ट ने सिर्फ इन 14 याचिकाओं को इसलिए खारिज कर दिया कि इस तरह के मामले पर पहले ही आदेश दिया जा चुका है और कोर्ट इस जरूरी मामले में और विलंब नहीं करना चाहता।
गौरतलब है कि इन 14 याचिकाओं में 12 याचिकाएं टाइम्स ऑफ इंडिया की मालकिन इंदु जैन और दो याचिकाएं हिन्दुस्तान टाइम्स की मालकिन शोभना भरतिया के खिलाफ दायर की गईं थीं।
फैसले की कॉपी –
Date : 06/07/2015 These petitions were called on for hearing today.
CORAM :
HON’BLE MR. JUSTICE RANJAN GOGOI
HON’BLE MR. JUSTICE M.Y. EQBAL
For Parties Mr. K.V. Vishwanathan,Sr.Adv.
Mr. K. Datta,Adv.
Mr. Rahul Mahlotra,adv.
Mr. Ashish Verma,Adv.
Ms. Tatini Basu,Adv.
Ms. Niti Arora,Adv.
Mr. P. George Giri,Adv.
Mr. Shekhar Kumar,Adv.
Mr. Upma Shrivastava,Adv.
Mr. Surya Kant,Adv.
UPON hearing the counsel the Court made the following
O R D E R
Disobedience of Court’s order as alleged in these
contempt petitions is being looked into in connected
matters and an order has been passed by this Court dated
28.04.2015 appointing inspectors under Section 17(b) of
the Working Journalists and Other Newspaper Employees
(Conditions of Service) and Miscellaneous Provisions Act,
1955 to make enquiry and submit reports to this Court. In
the above circumstances and also having regard to the
delay that has occurred, we are not inclined to entertain
these contempt petitions as we consider the same be
redundant.
(MADHU BALA) (ASHA SONI)
COURT MASTER COURT MASTER
मजीठिया मंच एफबी वाल से साभार