अपनी शामों को मीडिया के खंडहर से निकाल लाइये : रवीश कुमार

Ravish Kumar : अपनी शामों को मीडिया के खंडहर से निकाल लाइये…. 21 नवंबर को कैरवान (carvan) पत्रिका ने जज बीएच लोया की मौत पर सवाल उठाने वाली रिपोर्ट छापी थी। उसके बाद से 14 जनवरी तक इस पत्रिका ने कुल दस रिपोर्ट छापे हैं। हर रिपोर्ट में संदर्भ है, दस्तावेज़ हैं और बयान हैं। जब पहली बार जज लोया की करीबी बहन ने सवाल उठाया था और वीडियो बयान जारी किया था तब सरकार की तरफ से बहादुर बनने वाले गोदी मीडिया चुप रह गया।

सच के बजाय झूठ परोसने लगे अखबार!

डॉ. सुभाष गुप्ता

कल शाम न्यूज 24 चैनल पर घूमर पर डांस करते बच्चों पर करणी सेना के लोगों के हमले की खबर देख रहा था। खबर पूरी होते- होते मन खिन्न हो उठा। कल कुछ अखबार पढ़कर भी ऐसा ही हुआ। न्यूज चैनल और अखबार दरअसल हमारी नया जानने की मानसिक जरूरत पूरी करने का एक अहम जरिया हैं। इन्हीं के जरिये हमें ताजातरीन सूचनाएं मिलती हैं, लेकिन अब अखबार से लेकर न्यूज चैनल तक बहुत से ऐसे लोग पहुंच गए हैं, जो या तो काम के इतने दबाव में हैं कि सही और गलत का फैसला करने की स्थिति में ही नहीं बचे हैं। या फिर सही और गलत को निर्णय करना उनकी क्षमता से बाहर है। खबर को सच माना जाता है, लेकिन अब कई बार पूरी खबर पढ़ने या देखने के बाद लगता है कि ये खबर तो सच हो ही नहीं सकती। ये आंशिक सच हो सकती है या फिर निरा झूठ।

रवीश कुमार को क्यों कहना पड़ा- ‘हिन्दी अख़बार सरकारों का पांव पोछना बन चुके हैं, आप सतर्क रहें’

Ravish Kumar : क्या जीएसटी ने नए नए चोर पैदा किए हैं? फाइनेंशियल एक्सप्रेस के सुमित झा ने लिखा है कि जुलाई से सितंबर के बीच कंपोज़िशन स्कीम के तहत रजिस्टर्ड कंपनियों का टैक्स रिटर्न बताता है कि छोटी कंपनियों ने बड़े पैमाने पर कर चोरी की है। कंपोज़िशन स्कीम क्या है, इसे ठीक से समझना होगा। अखबार लिखता है कि छोटी कंपनियों के लिए रिटर्न भरना आसान हो इसलिए यह व्यवस्था बनाई गई है। उनकी प्रक्रिया भी सरल है और तीन महीने में एक बार भरना होता है। आज की तारीख़ में कंपोज़िशन स्कीम के तहत दर्ज छोटी कंपनियों की संख्या करीब 15 लाख है। जबकि सितंबर में इनकी संख्या 10 से 11 लाख थी। इनमें से भी मात्र 6 लाख कंपनियों ने ही जुलाई से सितंबर का जीएसटी रिटर्न भरा है।

तीन बड़े अखबार लाखों-करोड़ों की स्कीम चलाकर पेपर बेचने की होड़ में जुटे

अखबारों से जनहित गायब, स्कीम से लुभा रहे पाठकों को… अखबारों की गिरती साख ने अखबारों तथा पत्रकारों को किस हद तक पहुंचा दिया है इसकी बानगी है अखबारों में पाठकों के लिए चलाई जा रही लाखों की स्कीम। खुद के नंबर वन होने का दावा करने वाले तीन प्रमुख अखबारों से जनहित के मुद्दे नदारद हैं। इससे प्रमुख बड़े अखबार लगातार जनता का विश्वास खोते जा रहे हैं। लोगों की दिलचस्पी बनाए रखने के लिए तीनों ही अखबारों में लाखों-करोड़ों की योजनाएं चलाकर अखबार बेचने की होड़ मची हुई है।

प्रिंट मीडिया के सर्कुलेशन में पिछले 10 वर्षों में 37 फीसदी की वृद्धि

पिछले 10 सालों में प्रिंट मीडिया के सर्कुलेशन में 37 प्रतिशत की वृद्धि दर्ज की गई है। डिजिटल मीडिया से मिल रही चुनौतियों के बीच प्रिंट लगातार वृद्धि की ओर अग्रसर है। ऑडिट ब्यूरो ऑफ सर्कुलेशन (एबीसी) द्वारा जारी आंकड़ों के अनुसार, 2006 में प्रिंट मीडिया का सर्कुलेशन 3.91 करोड़ का था, जो 2016 में बढ़कर 6.28 करोड़ हो गया। इस दौरान प्रकाशन केंद्रों की संख्या भी 659 से बढ़कर 910 हो गई है।

अपने कसबे फलोदी पहुंचे ओम थानवी ने अखबारों की बदलती तासीर पर की यह टिप्पणी

अपने क़सबे फलोदी (राजस्थान) आया हुआ हूँ। 47 डिग्री की रेगिस्तान की गरमी मुझे यहाँ उतना नहीं झुलसाती जितना अख़बारों की बदलती तासीर। अजीबोग़रीब हिंदूकरण हो रहा है। जैसे देश में बाक़ी समाज हों ही नहीं। एक बड़े इलाक़े की ख़बरों के लिए तय पन्ने पर (आजकल पन्ने इसी तरह बँटे होते हैं) आज एक अख़बार में हर एक “ख़बर” किसी-न-किसी हिंदू मंदिर की गतिविधि – मूर्तियों की प्राणप्रतिष्ठा, कलश की स्थापना, दान-पुण्य – या संतों के प्रवचनों से  लकदक है। वह पूरा का पूरा पन्ना (पृष्ठ नौ) एक ही धर्म की श्रद्धा में/से अँटा पड़ा है।

…जब हॉकर के हाथों नहीं, ई-मेल के जरिए आएगा अखबार…!

किशोर कुमार

संचार क्रांति के इस दौर में समाचार माध्यम भी तेजी से बदल रहे हैं। अभी तक घर पर छपा हुआ अखबार आता रहा है। जहां इंटरनेट की बेहतर सुविधा है, वहां ई-पेपर या न्यूज पोर्टल का जमाना आ गया है। युवा तो और भी एक कदम आगे हैं। वे सोशल मीडिया के इस दौर में न्यूज पोर्टलों पर भी जाना पसंद नहीं करतें, बल्कि ट्वीटर या फेसबुक पर लिंक के जरिए अनेक पोर्टलों या ई-पेपरों की पसंदीदा सामग्रियां पढ़ लेते हैं।

आज छपी इन तीन खबरों के जरिए जानिए भाजपा का चाल, चरित्र और चेहरा

Anil Singh : तीन खबरों में चाल-चरित्र और चेहरा! आज छपी तीन खबरें जो सरकार के चाल-चरित्र व चेहरे को समझने के लिए काफी हैं। एक, उत्तर प्रदेश के शामली कस्बे में एक मुस्लिम युवक का चेहरा कालिख से पोतकर सड़क पर जमकर पीटनेवाले बजरंग दल के जेल में बंद नेता विवेक प्रेमी पर लगा राष्ट्रीय सुरक्षा कानून केंद्रीय गृह मंत्रालय के आदेश पर हटा लिया गया।

मोबाइल टावर्स लगाने का लालच और विज्ञापन के भूखे लालची अखबार… पढ़िए एक युवा ने क्यों कर लिया सुसाइड

Vinod Sirohi : जरूर शेयर करें —मोबाइल टावर्स लगाने का लालच और विज्ञापन के भूखे लालची अखबार — आप पर कोई बंदिश नहीं है आप इस मैसेज को बिना पढ़े डिलीट कर सकते हैं। अगर आप पढ़ना चाहें तो पूरा पढ़ें और पढ़ने के बाद 5 लोगों को जरूर भेजें।

मेरा नाम राहुल है। मैं हरियाणा के सोनीपत जिले के गोहाना का रहने वाला हूँ। आप भी मेरी तरह इंसान हैं लेकिन आप में और मुझमें फर्क ये है कि आप जिन्दा हैं और मैंने 19 अगस्त, 2015 को रेल के नीचे कटकर आत्महत्या कर ली।

मजीठिया : छोटे अखबारों के कर्मी आरटीआई के माध्यम से ब्योरा जुटाएं और केस करें

मजीठिया वेतनमान के लिए भले ही 20 हजार पत्रकार संघर्षरत हों लेकिन एक बड़ा वर्ग इस लड़ाई से दूरी बनाए हुए है. कारण उनके पास कोई सबूत नहीं कि वे अमुक प्रेस में कार्यरत हैं. जब कर्मचारी ही नहीं तो किस मुंह से हक की बात करें. ये वर्ग ऐसा है, जो भविष्य में बड़े प्रेस में बड़ी जिम्मेदारी निभाता है और शोषण की नीतियां बनाता है, इस चलन का खात्मा जरूरी है.

‘नेशनल दुनिया’ के कर्मचारियों का पैसा खा गए शैलेंद्र भदौरिया

दोस्तों, इस सूचना के माध्यम से हम आपका ध्यान इस ओर दिलाना चाहते हैं कि अगर आप या आपका कोई मित्र, रिश्तेदार, जानकार ‘महाराणा प्रताप ग्रुप ऑफ इंस्टीट्यूट्स यानी ‘एमपीजीआई’ के किसी संस्थाीन में प्रवेश लेना चाहता है, नौकरी करने वाला है या किसी अन्य तरह से जुड़ने जा रहा है तो इस बात से सचेत रहे कि यह ग्रुप अपने यहां काम करने वालों के पैसे नहीं देता। 

मजीठिया : सुप्रीम कोर्ट के आदेश पर भ्रम फैला रहा मीडिया

नई दिल्ली : भारत के स्वतंत्र मीडिया की बेईमानी की हद हो गई है। खबरों को तोड़ना मरोड़ना तो इनका आए दिन का काम है। अब हालात ये है कि ये सुप्रीम कोर्ट के आदेश पर भी भ्रम फैलने से बाज नहीं आ रहे हैं। पिछले साल भर से सुप्रीम कोर्ट में मजीठिया वेज बोर्ड की सिफारिशों को न लागू करने के लिए लगभग सभी बड़े अखबारों के मालिकों के खिलाफ अवमानना का मामला चल रहा है लेकिन आज तक इस सुनवई की किसी मीडिया ने सुध लेने की जरूरत नहीं महसूस की क्योंकि माननीय सुप्रीम कोर्ट इनके दिग्गज वकीलों के तर्क नकारता रहा। 

Majithia : We want to assure the court order of july 6 thus clearly enquiry on the alleged non-implementation & the report from inspectors is awaited for action : NUJ

New Delhi : National union of Journalists (NUJ) said ; members are assured by the Hon’ble Supreme Court order of July 6, that the contempt proceedings in the court against newspaper managements are on and would be heard in due course and that the court’s order of July 6  rejects only the second batch of contempt petitions recd after due date.  

रणवीर सेना और बिहार के अखबार

रणवीर सेना के संस्थापक बरमेश्वर नाथ सिंह (ब्रह्मेश्वर सिंह) ऊर्फ मुखिया की तीसरी बरसी पर पटना में 1 जून, 2015 को आयोजित कार्यक्रम के संबंध में बिहार के मीडिया में प्रसारित समाचारों का विश्लेषण करने से पूर्व समाचार की रचना प्रक्रिया और समाचार बनाने वालों की सामाजिक पृष्ठभूमि से उसके अंतर्संबंध से संबंधित कुछ मूलभूत बातों को ध्यान में रख लेना चाहिए।

अखबार के विज्ञापन पर बांग्लादेश में मचा बवाल, खेद जताना पड़ा

बांग्लादेश के प्रमुख अखबार ‘प्रोथोम आलो’ में छपे विज्ञापन पर बांग्लादेश में बवाल मच गया। अखबार को खेद जताना पड़ा। विज्ञापन में दिखाया गया था कि मुस्तफिजुर ने कप्तान एमएस धोनी, विराट कोहली, रोहित शर्मा, अजिंक्य रहाणे, शिखर धवन, आर. अश्विन और रविंद्र जडेजा जैसे खिलाड़ियों को आधा गंजा कर दिया है। 

मजीठिया की राह के दुश्मनों को हर मोर्चे पर शिकस्त दो, अखबार मालिकों की करतूतें उजागर करो

साथियों, हमारी लड़ाई किसी व्यक्ति से नहीं है। हम सभी इस शक्तिशाली तंत्र से लड़ रहे हैं। हमारे मन में अन्याय के प्रति आक्रोश तो हो लेकिन ऐसे कोई विचार लिखित रूप में व्यक्त न करें जो उनके लिए हमारे खिलाफ सबूत बने। हम सब फ़िलहाल कानूनी जंग लड़ रहे हैं सशस्त्र लड़ाई नहीं। आप सभी से अनुरोध है कि मजीठिया की राह के दुश्मनों को हर उस मोर्चे पर शिकस्त दें जो उनकी ताकत है।

बोकारो में लुटेरों ने दो अखबार विक्रेताओं को पीटा

बोकारो : शहर में अखबार विक्रेता गणोश कुमार व इनके भाई भागीरथ गोराई को लुटेरों ने तमंचे के बट से पीटकर घायल कर दिया। बताया गया कि गणोश व उनके भाई भागीरथ चास मुफस्सिल थाना इलाके के नावाडीह स्थित अपने गांव से नया मोड़ सेंटर आ रहे थे। साइकिल से दोनों भाई जैसे ही गांधी गोलंबर पार कर एडीएम की ओर बढ़े, तभी झाड़ियों से दो बदमाश निकले। 

अखबार के प्रतिनिधि को अगवा करने की कोशिश

दहगवां क्षेत्र में एक अखबार के प्रतिनिधि को बदमाशों ने घेर लिया। उसको अगवा करने की कोशिश भी की, लेकिन वह किसी तरह बच निकला। उसने इस मामले में एसओ पर भी आरोप लगाए हैं। मामले की जांच के लिए एसएसपी को पत्र भी सौंपा है।

जनसंदेश के जीएम ने 15 कर्मचारियों को निकाला, अखबार बंद होने के कगार पर

मध्यप्रदेश जनसंदेश में मनमानी का आलम यह है कि बिना बताए 15 कर्मचारियों को नौकरी से निकाल दिया गया। अब अखबार बंदी की कगार पर है। सेलरी लेने के लिए लोगों को चक्कर काटने पड़ रहे हैं। जीएम की मनमानी चल रही है, जिसे चाहे सेलरी दे या नहीं। कई पूर्व कर्मचारियों को सेलरी नहीं दी गई। पीड़ित कर्मियों का कहना है कि जीएम अजय सिंह से जब सेलरी की बात की जाए तो उनका जवाब होता है, आप को तो नोटिस नहीं दिया। जिन 15 लोगों को नौकरी से निकाला गया है, क्या उन्हें नोटिस दिया गया है, नहीं, ये मनमानी ही है। 

अखबार मालिकों को सीएम और पीएम से बांस की आशंका थी तो जाकर लोट गए उनके चरणों में

जो हमें बांस करता है, हम उसी को नमस्‍कार करते हैं। इस समय सूर्य ने बांस कर रखा है तो सारी दुनिया उसे नमस्‍कार कर रही है। यही नहीं, जहां से हमें बांस होने की आशंका होती है, हम वहां भी नमस्‍कार करने से नहीं चूकते हैं। अखबार मालिकों को सीएम और पीएम से बांस की आशंका थी, तो लोट गए चरणों में। छाप दिया बड़ा-बड़ा इंटरव्‍यू। कर्मचारियों को जब अखबार मालिकों के बिचौलियों से बांस होने की आशंका थी तो घेर-घेर कर नमस्‍कार करते थे। …और जब दैनिक जागरण के कर्मचारियों ने बांस किया तो प्रबंधन ने सूर्य नमस्‍कार करना शुरू कर दिया और चार लोगों को वापस ले लिया। जिन लोगों ने बांस नहीं किया, उनको बाहर का रास्‍ता दिखा दिया। हमें बांस की आदत सी पड़ गई है।

राज बड़े गहरे हैं : राजनाथ सिंह के पुत्र पंकज सिंह के साथ ‘नेशनल दुनिया’ के मालिक की जोड़ीदारी

इस तस्वीर में आप पंकज सिंह को नेशनल दुनिया अखबार के मालिक शैलेंद्र भदौरिया के साथ देख सकते है। पंकज सिंह भाजपा के महासचिव हैं और गृह मंत्री राजनाथ सिंह के सुपुत्र हैं। पंकज सिंह के चलते राजनाथ सिंह सवालों के घेरे में भी आ चुके हैं।

सुबह अखबार बांटनेवाला सूरज लाया 9.2 सीजीपीए

रांची : अखबार बिक्री कर पढ़ाई करने वाले सूरज कुमार ने 10वीं  बोर्ड की परीक्षा में 9.2 सीजीपीए हासिल किया है. गोविंद सीनियर सेकेंड्री स्कूल, रामगढ़ के छात्र सूरज के पिता अनिल कुमार साहु सेल्समैन व मां शकुंतला देवी गृहिणी हैं. सूरज प्रति दिन सुबह चार बजे घर से निकल कर इलाके में अखबार बांटता है. 

इजरायल में चापलूस अखबारों का आतंक बढ़ा, मीडिया का गला घोंटने की तैयारी

इजरायल में मीडिया के बुरे दिन शुरू हो गए हैं . मौजूदा प्रधानमंत्री बिन्यामिन नेतान्याहू ने उन मीडिया संस्थानों को दुरुस्त करने का काम शुरू कर दिया है जो उनकी जयजयकार नहीं कर रहे हैं. सरकार और उनके चापलूस अखबारों का आतंक इतना बढ़ गया है कि आम तौर पर इजरायल के शासकों का पक्ष …

संपादकीय सामग्री अब दैनिक अखबारों तक सीमित नहीं

ब्रिटेन के प्रमुख अखबार द गार्डियन के मशहूर संपादक एलन रसब्रिजर ने दो दशक बाद इस 29 मई को पाठकों को जो विदाई चिट्ठी लिखी, उसकी शुरुआत थी : ‘यदि आप (आज का छपा हुआ) अखबार पढ़ रहे हैं, जो कि आप निश्चित ही नहीं पढ़ रहे होंगे, तो यह संपादक के रूप में मेरा अंतिम संस्करण है।’ ये पंक्तियां आज मीडिया बन चुके प्रेस में आए एक बड़े बदलाव की प्रतीक हैं। भारत और पूरे विश्व में समाचारपत्र अब भी उसी तत्परता और सत्यता से समाचार और विविध विचार-अभिमत देते हैं। पर हर पल संवर्धित होने वाली संपादकीय सामग्री दैनिक अखबार तक सीमित नहीं है। 

कानपुर में जिलाधिकारी के तंबाकू विरोधी अभियान का धुंआ निकाल रहे विज्ञापन के भूखे अखबार वाले

कानपुर : डीएम डा. रौशन जैकब का शहर को तम्बाकू मुक्त करने के लिये चलाया जा रहा अभियान पूरे जोरों पर है, दूसरी तरफ इस अभियान को यहां पैसे का भूखा प्रिंट मीडिया खूब पलीता लगा रहा है। शहर के आलाधिकारियो के प्रयासो पर अखबारों में छप रहे विज्ञापन पानी फेरने में लगे हुए हैं।

मजीठिया वेतनमान पर अखबारों के रवैये से नरेंद्र मोदी अनजान तो नहीं, फिर खामोश क्यों?

आप प्रधानमंत्री नरेंद्र भाई मोदी जी की विदेश यात्राओं के चुंबकत्‍व से बाहर आ गए होंगे। उनकी मीठी-मीठी, चिकनी-चुपड़ी और गोल-मोल बातों से अपना दु:ख-दर्द भूल गए होंगे। अब जरा तंद्रा तोड़ें और सोचें कि मोदी की वजह से हमने क्‍या खोया और क्‍या पाया। खोने की जहां तक बात है तो हम अपना अधिकार खोते जा रहे हैं। जीने का अधिकार, अपनी भूमि पर खेती करने का अधिकार और शोषण के खिलाफ लड़ने का अधिकार। पाने की जहां तक बात है तो हमें मिली है महंगाई, बेरोजगारी और शोषण की अंतहीन विरासत। 

मजीठिया मामले पर अखबार मालिकों ने हरकत से बाज न आने की ठानी, नोटिस लेने से इंकार

दिल्‍ली सरकार द्वारा मजीठिया वेज बोर्ड को लागू करने के प्रयास को अखबार मालिक असफल करने का हर संभव प्रयास कर रहे हैं। पहले ही दिन टाइम्‍स ऑफ इंडिया ने केजरीवाल सरकार के खिलाफ मोर्चा खोल दिया। आइएनएस के हवाले से इस निर्णय पर ही सवाल खड़ा कर दिया।

सेक्स रैकेट्स के पालनहार बने अखबार, वर्गीकृत विज्ञापनों से गंदी सूचनाओं की तिजारत

आज तकरीबन हर बड़ा अखबार जो वर्गीकृत विज्ञापन छापता है, उसमें मनोरंजन या फिर पार्ट टाइम जॉब को लेकर इस्तिहार दिए जाते हैं। उनमें अमूमन मसाज पार्लर या फिर फ्रेन्डशिप क्लब के बारे में भी बताया जाता है। असलियत में ये सभी जिस्म के सौदागरों के विज्ञापन होते हैं, जिसका मीडिया के माध्य से प्रचार कर सैक्स रैकट्स को खुलेआम चलाया जा रहा है।

Newspaper employees of Madhya Pradesh pledge to fight for Majithia Award

Prophets of doom have been proved wrong. They have been spreading rumours that there was no enthusiasm for the Wage Board Award among the newspaper employees. But on the contrary, hundreds of newspaper employees assembled to listen and interact with Advocates Parmanand Pandey and Colin Gonsalves on 16th May 2015 at Bhopal regarding the state of Majithia Wage Award.

 

अखबार मालिकों ने पत्रकारों का उत्पीड़न तेज किया, किसी का तबादला, किसी का पदनाम बदला

उत्तर प्रदेश, राजस्थान, बिहार, मध्यप्रदेश, हरियाणा, पंजाब, हिमाचल प्रदेश आदि लगभग उन सभी प्रदेशों में बड़े अखबारों ने मजीठिया मामलों को लेकर मीडिया कर्मियों का उत्पीड़न तेज कर दिया है। किसी के तबादले किए जा रहे हैं तो किसी डेप्युटेशन पर दूर दूर स्थानांतरित किया जा रहा है। 

अब बिना मजीठिया वेतनमान के नहीं छप पाएंगे अखबार

सरकारी विज्ञापनों में मुख्‍यमंत्री की फोटो नहीं तो प्रधानमंत्री की फोटो क्‍यों—-जरा विचार कीजिए कि सुप्रीम कोर्ट के आदेश का उल्‍लंघन करने के लिए अखबार मालिकों को कोई विशेषाधिकार मिला है क्‍या—- अखबार मालिक लगातार मजीठिया वेतनमान न देकर सुप्रीम कोर्ट के आदेश का उल्‍लंघन कर उसकी अवमानना कर रहे हैं और सुप्रीम कोर्ट की गरिमा को गिरा रहे हैं।- और हर ओर चुप्‍पी है—सन्‍नाटा है—-सिर्फ कर्मचारियों के जीवन में न ज्‍वार है न भाटा है।

‘दबंग दुनिया’ अखबार के खिलाफ अधूरी आरटीआई पर अपील की चेतावनी

इंदौर (म.प्र.) : मालवीयनगर निवासी राजेंद्र शर्मा ने आरटीआई के तहत ‘दबंग दुनिया’ अखबार के संबंध में अपीलीय अधिकारी एवं क्षेत्रीय भविष्य निधि आयुक्त से मिली अधूरी जानकारी के विरुद्ध कोर्ट में मामला दायर करने की चेतावनी दी है।

कमाई में अख़बारों की मदद करेगा गूगल

गूगल ने कई यूरोपीय अख़बारों के साथ समझौता किया है जिससे अख़बार अब अपने ऑनलाइन सामग्री से अधिक पैसा कमा सकेंगे. गूगल अगले तीन साल के भीतर न्यूज़ कंटेंट को एप्स से जोड़ने और यूज़र आधारित विज्ञापनों जैसे नए डिजीटल प्रोजेक्टों में 16 करोड़ डॉलर यानी एक हज़ार करोड़ रुपए निवेश करेगा. गूगल जर्नलिज़्म स्टार्ट अप्स को भी बढ़ावा देगा. इस निवेश से समाचार संस्थानों को अपने ऑनलाइन कंटेट से अधिक पैसा कमाने में मदद मिलेगी.

आज से मेरे पसंदीदा अखबार ‘दि इंडियन एक्सप्रेस’ ने अपनी डिजाइनिंग बदल ली..वाह !

आज से मेरे पसंदीदा अखबार ‘दि इंडियन एक्सप्रेस’ ने अपनी डिजाइनिंग बदल ली. इसकी सादगी वाली खूबसूरती अब जवां लगने लगी है. आत्मा जेएनयू वाली है और रंग रूप डीयू वाला. जाने क्यों ऐसा लग रहा है कि मैं भी अंदर से स्मार्ट हो गया हूं. सुबह-सुबह कॉन्फिडेंस लग रहा है. बार-बार आईना देखने का मन कर रहा है. दिल ‘गार्डियन-गार्डियन’ हो रहा है.

अखबार नकली दवाओं के गंदे विज्ञापन छापना बंद करें वरना सामाजिक बहिष्कार अभियान

लखनऊ : पत्रकार महेंद्र अग्रवाल ने प्रधानमंत्री, प्रेस काउंसिल, सूचना प्रसारण मंत्री, केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्री एवं निदेशक आईबी को बताया है कि मीडिया अपनी कमाई की भूख में तरह तरह की नकली यौनबर्द्धक दवाओं के भ्रामक विज्ञापन छापकर ठगों के कारोबार को बढ़ावा दे रहा है। यह सब करके वह पाठकों के विवेक और अभिरुचि के साथ भी खिलवाड़ कर रहा है। पिछले दिनो भड़ास4मीडिया पर प्रकाशित ‘धत्कर्मी विज्ञापनों से आज पटे अखबारों के पन्ने, बेशर्मों को चाहिए सिर्फ धंधा’ शीर्षक खबर का संज्ञान लेते हुए उन्होंने बताया है कि प्रिंट मीडिया की इस करतूत से जनजीवन में अपसंस्कृति को प्रोत्साहन फरेबियों को अवैध दवा के कारोबार बढ़ावा। 

अखबार मालिकों को क्‍यों नहीं घेरते टीवी न्‍यूज एंकर !

सुप्रीम कोर्ट के आदेश के बावजूद अखबार मालिक मजीठिया वेतनमान नहीं दे रहे हैं। पत्रकारों की हालत खराब है। वे भी किसान परिवार से आते हैं। केंद्र सरकार किसानों की भूमि भी हड़प लेना चाहती है। ऐसे में कल पत्रकार भी आत्‍महत्‍या करने लगेंगे। कारपोरेट मीडिया आसानी से कह देगा-इसके लिए आम आदमी पार्टी जिम्‍मेदार है।

आइए आप और हम मिलकर इस बेलगाम मीडिया पर नकेल कसें, आप मीडिया संबंधी अपनी जानकारी-सूचनाएं साझा करें

: अखबारों-टीवी की विज्ञापन नीति और नैतिक मापदंडों के लिए मदद करें : बड़े नाम के किसी भी अखबार और पत्रिका को उठा लीजिए, मजीठिया वेतन बोर्ड आयोग की सिफारिशों के अनुरूप पत्रकारों को वेतन देने में बहानेबाजी कर रहे अखबार मालिकों की माली हैसियत सामने आ जाएगी। लेकिन इनके अखबारों में विज्ञापनों की इतनी भरमार रहती है कि कभी तो उनमें खबरों को ढूंढना पड़ता है। लेखकों को दिए जा रहे पारिश्रमिकों की हालत यह है कि सिर्फ लेख लिखने के दम पर गुजारा करने की बात सोची नहीं जा सकती। हमारे देश में सिर्फ एक अखबार या पत्रिका में लेख या स्थायी स्तंभ लेखन के जरिए गुजारे की कल्पना करना, उसमें भी हिन्दी भाषा में, असंभव है।