7 स्टार हास्पिटल Medanta Medicity में बहुत ही घटिया एकदम third class खाना मिलता है!

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Ajit Singh :  अभी outlook पत्रिका के आखिरी पन्ने पे किन्ही भाईचंद पटेल साहब का संस्मरण पढ़ा जो उन्होंने Medanta Medicity में अपने knee replacement के बारे में लिखा है। देश का सबसे महंगा 7 star हॉस्पिटल है भाया। अच्छा होना ही चाहिए। पर उसके भोजन की बड़ी आलोचना की है उन्होंने। बहुत ही घटिया एकदम third class बताते हैं। लेख पढ़ते मुझे दिल्ली के सफदरजंग hospital का अपना अनुभव याद आ गया। मुझे लगा की उसे आपके साथ शेयर करना चाहिए। सफ़दर जंग हॉस्पिटल में ही है Sports injury centre, दिल्ली सरकार का उपक्रम जिसकी स्थापना दिल्ली के common wealth games के दौरान हुई।

मैंने Medanta भी देखा है और उसके अलावा fortis, Apollo और Escorts भी. मुझे ये कहते हुए ख़ुशी है की SIC, medanta से भी बेहतर है। न सिर्फ medical care में बल्कि साफ़ सफाई, रख रखाव, और care के मामले में भी। मेरे बेटे को जब घुटने में चोट लगी तो उसका ACL रिपेयर कराया हमने SIC में। जिस procedure के लिए मुम्बई के डॉ जोशी 1.25 लाख मांगते हैं वो SIC में सिर्फ 60,000 में हुआ जिसमे 55,000 का double bundle और screw आये और 5000 दवाओं के लगे। इसके अलावा dr की फीस, OT charges और room rent फ्री. जबकि अस्पताल की साफ़ सफाई और doctors और nurses की care तो मुझे इन 7 star hospitals से भी बेहतर लगी।

आपको जान के आश्चर्य होगा कि सरकारी अस्पताल में 7 स्टार सुविधा और सफाई और care? उसका एक कारण है। हॉस्पिटल के HOD डॉ दीपक चौधरी के अलावा सभी डॉक्टर्स, nurses समेत समस्त स्टाफ ठेके पे है. on contract. और Dr Deepak chaudhary का इतना आतंक है कि एक मिनट में लात मार के निकाल देंगे। इसलिए पूरा अस्पताल सुई की नोक पे चलता है। मुझे ये कहते हुए गर्व होता है की SIC हिन्दुस्तान के सबसे अच्छे और महंगे प्राइवेट अस्पताल से भी अच्छा है और मुफ़्त भी। मज़े की बात, यहाँ इलाज कराने के लिए खिलाड़ी होना ज़रूरी नहीं। कोई भी सामान्य नागरिक अपना orthopaedic इलाज करवा सकता है। और आखिरी बात। यहाँ का खाना भी बेहतरीन है। Medanta की तरह कूड़ा नहीं.

पर जैसा कि आप जानते हैं कि अपने Mr ईमानदार युगपुरुष ने कसम खा रखी है की देश का दिवाला निकाल कर ही रहेंगे इसलिए उन्होंने वादा कर दिया है कि दिल्ली में सभी कामगार जो ठेके पे काम कर रहे हैं उनको पक्का कर देंगे। और कर्मचारी अगर पक्का हो जाए तो गया काम से. अगर युगपुरुष की चली तो वो दिन दूर नहीं जब मेट्रो और SIC जैसे संस्थान भी रेलवे और किसी आम सरकारी मुर्दा घर बन जाएंगे।

सोशल एक्टिविस्ट अजीत सिंह के फेसबुक वॉल से.



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