Connect with us

Hi, what are you looking for?

टीवी

मीडिया से सरकार की जंग बरकरार

नई दिल्ली : आजकल मीडिया सवालों के घेरे में है। पिछले कुछ दिनों से मीडिया की कार्यप्रणाली और रुख पर सवाल उठने शुरू हो गए हैं। सवाल यह है कि क्या मीडिया बदल रहा है? क्या मीडिया के नैतिक पक्ष पर ऐसे सवाल जायज हैं?

नई दिल्ली : आजकल मीडिया सवालों के घेरे में है। पिछले कुछ दिनों से मीडिया की कार्यप्रणाली और रुख पर सवाल उठने शुरू हो गए हैं। सवाल यह है कि क्या मीडिया बदल रहा है? क्या मीडिया के नैतिक पक्ष पर ऐसे सवाल जायज हैं?

लोगों से ज्यादा राजनेता मीडिया से खफा नज़र आ रहे हैं। दिल्ली सरकार ने एक सर्कुलर भी जारी किया, जिसके जरिये सरकार ने अपने सभी अधिकारियों को निर्देश दिया था कि यदि वे कोई ऐसी खबर पाते हैं, जिससे मुख्यमंत्री या सरकार की प्रतिष्ठा को नुकसान पहुंचता है, तो उसके खिलाफ कार्रवाई की जाएगी।

Advertisement. Scroll to continue reading.

दिल्ली सरकार के इस सर्कुलर में वारेन हेस्टिंग्स का भूत नज़र आ रहा है। आज़ादी के पहले अंग्रेज़ों के खिलाफ जो भी लिखता था, उसे जेल जाना पड़ता था। ‘द बंगाल गजट’ के संपादक जेम्स ऑगस्टस को उस वक्त के गवर्नर जनरल वारेन हेस्टिंग्स की पत्नी की आलोचना करने के कारण चार महीने जेल की सजा काटने के साथ-साथ पांच सौ रुपये जुर्माना देना पड़ा था।

हालांकि सुप्रीम कोर्ट ने केजरीवाल सरकार के सर्कुलर पर रोक लगा दी है, लेकिन यह समझ नहीं आ रहा है कि दिल्ली सरकार मीडिया से इतनी खफा क्यों है? मीडिया की जिम्मेदारी है कि देश और लोगों की समस्याओं को सामने लाने के साथ-साथ सरकार के कामकाज पर भी नजर रखे। सरकार को आलोचना का सामना करना ही पड़ता है, आलोचना से सरकार के कामकाज में सुधार होता है।

Advertisement. Scroll to continue reading.

यह पहली बार नहीं कि केजरीवाल मीडिया को घेर रहे हैं। इससे पहले भी कई बार केजरीवाल मीडिया पर सवाल उठा चुके हैं। केजरीवाल सरकार द्वारा निकाला गया यह सर्कुलर कई सवाल खड़े करता है। क्या अरविंद केजरीवाल मीडिया को अपने तरीके से चलाना चाहते हैं? क्या केजरीवाल बदल गए हैं या केजरीवाल को कोई गलत सलाह दे रहा है? मन में सबसे अहम प्रश्न उठता है कि केजरीवाल जैसे नेता ऐसे फैसले कैसे ले सकते हैं? वह मीडिया को बेहतर तरीके से समझते हैं। उन्होंने मीडिया के जरिये अपनी आरटीआई मुहिम को आगे बढ़ाया था। शुरुआती दौर में केजरीवाल ने कई चैनलों और पत्रिकाओं के जरिये अपनी इस मुहिम को अंजाम तक पहुंचाया।

अगर मीडिया के जरिये सबसे ज्यादा फायदा किसी को हुआ, तो वह अरविंद केजरीवाल और उनकी पार्टी को हुआ है। पिछले कुछ साल से मीडिया ने आम आदमी पार्टी और इसके नेताओं के बारे में काफी कुछ दिखाया। देश के अंदर दूसरी समस्याओं को नज़रअंदाज़ करते हुए मीडिया ने जंतर-मंतर पर अण्णा हजारे के साथ केजरीवाल के धरने को लगातार कवरेज दिया। यहां पर केजरीवाल नहीं, मीडिया पर भी सवाल उठता है। टीआरपी के चक्कर में मीडिया अपनी सामाजिक ज़िम्मेदारियां भूल जाता है। ऐसा लगता है कि मीडिया व्यक्ति-केंद्रित हो गया है। उस वक्त केजरीवाल हर चैनल और अख़बार में एक नायक के रूप में छाए हुए थे। इस पूरे आंदोलन के दौरान मीडिया ने सरकार की काफी आलोचना भी की थी। उस दौरान अगर मीडिया ने अरविंद केजरीवाल को नायक और सरकार को खलनायक नहीं बनाया होता, तो आज दिल्ली में केजरीवाल की सरकार नहीं होती।

Advertisement. Scroll to continue reading.

अरविंद केजरीवाल यह भी कह चुके हैं कि मीडिया, मोदी और भारतीय जनता पार्टी का प्रचार करता रहता है। पिछले एक साल में केंद्र में नरेंद्र मोदी सरकार की भी काफी खिंचाई हुई है। अगर हम व्यक्ति के रूप में नरेंद्र मोदी की बात करें, तो वर्ष 2002 के गुजरात दंगों के बाद अगर मीडिया ने किसी पर सबसे ज्यादा सवाल उठाए और सबसे ज्यादा किसी की आलोचना की तो वह नरेंद्र मोदी ही हैं। कांग्रेस के भ्रष्टाचार और महंगाई को भी मीडिया ने काफी जगह दी।

मैं मीडिया का बचाव नहीं कर रहा हूं। इसमें कोई दो राय नहीं कि मीडिया के काम करने के तरीके और चरित्र में बहुत बदलाव आया है। मीडिया पर उठे सवालों में कहीं न कहीं सच्चाई भी है। कभी-कभी ऐसा लगता है कि मीडिया अपनी ताकत का गलत इस्तेमाल कर रहा है। ‘पेड न्यूज’ की बात भी उठाई जा रही है। यह भी सवाल उठ रहा है कि क्या मीडिया में भी भ्रष्टाचार है? मीडिया के कवरेज को लेकर भी सवाल उठ रहा है। सवाल यह भी उठता है कि क्या मीडिया अपनी सामाजिक जिम्मेदारी से भाग रहा है?

Advertisement. Scroll to continue reading.

मीडिया में आजकल सामाजिक खबरें कम दिखाई देती हैं। सांप, बिच्छू, भूत-प्रेत के जरिये दर्शकों को लुभाने की कोशिश की जा रही है। जो नेता मीडिया पर सवाल उठाते रहे हैं, आजकल उनकी खबर मीडिया द्वारा ज्यादा दिखाई जाती हैं। मीडिया की पहुंच का विस्तार ज़रूर हुआ है, लेकिन मीडिया गांवों के लोगों की समस्याओं से अछूता नजर आ रहा है।

जो हो, हर किसी को एक ही तराजू में तौलना शायद ठीक नहीं है। बहुत-से ऐसे समाचार चैनल और अखबार हैं, जो अपनी ईमानदार रिपोर्टिंग और विश्लेषणों से मीडिया की छवि अच्छी बनाए रखने की कोशिश करते हुए समाज के व्यापक हित के लिए काम करते हैं।

Advertisement. Scroll to continue reading.

ऐसा नहीं है कि मीडिया कोई अच्छा काम नहीं करता। देश में हुए बड़े-बड़े घोटालों को मीडिया ने ही उठाया है, कई ऐसे समाचार चैनल और अखबार समाज की समस्याओं के प्रति सचेत हैं और उन्होंने कुछ विशेष अभियान भी शुरू किए हैं। हो सकता है ज्यादा न हो, लेकिन पिछले कुछ दिनों में मीडिया ने किसानों की समस्याओं को भी दिखाया है। निर्भया कांड जैसे मामलों में हमने मीडिया को नए रूप में देखा। उसकी सक्रियता और मुखरता की वजह से ही निर्भया कांड पर उपजा नागरिक आक्रोश जन-आंदोलन का रूप ले सका और आखिरकार यौनहिंसा विरोधी कानूनों में संशोधन हुए।

सरकार और मीडिया के बीच नोकझोंक भी होती रहती है, लेकिन मीडिया की आज़ादी पर रोक लगाना अच्छी बात नहीं। खबर दिखाने के लिए मीडिया को पूरी आज़ादी मिलनी चाहिए। सरकार या राजनेताओं को हकीकत समझनी होगी। सिर्फ अपने फायदे के लिए मीडिया का इस्तेमाल करना और ज़रूरत पड़ने पर मीडिया के हक पर हथौड़ा मारना अपने पैरों पर ही कुल्हाड़ी मारने जैसा होगा।

Advertisement. Scroll to continue reading.

खबर एनडीटीवी से साभार

Advertisement. Scroll to continue reading.
Click to comment

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Advertisement

भड़ास को मेल करें : [email protected]

भड़ास के वाट्सअप ग्रुप से जुड़ें- Bhadasi_Group

Advertisement

Latest 100 भड़ास

व्हाट्सअप पर भड़ास चैनल से जुड़ें : Bhadas_Channel

वाट्सअप के भड़ासी ग्रुप के सदस्य बनें- Bhadasi_Group

भड़ास की ताकत बनें, ऐसे करें भला- Donate

Advertisement