कानपुर विश्वविद्यालय से वर्ष 2017 में पत्रकारिता की डिग्री हासिल करने के बाद मेरे अंदर भी किसी बड़े मीड़िया संस्थान में काम करने का कीड़ा बहुत ज़ोर से काट रहा था। डिपार्टमेंट के HOD की सिफ़ारिश के बाद अमर उजाला कानपुर में इंटर्नशिप करने का मौक़ा मिला। मैं बड़ा खुश था कि इंटर्नशिप के बाद यह लोग मुझे डिजिटल टीम का हिस्सा बना ही लेंगें। 10 से 12 घंटे प्रति-दिन, तीन महीने तक काम किया। तीन महीने की इंटर्नशिप पूरी हो चुकी थी। मुझे लगा कि अब मुझे रख लिया जाएगा।
अगली सुबह हिम्मत बांधकर संपादक जी से बड़ी विनम्रता से अपनी नौकरी की बात जैसे ही कि तो, वह कड़क आवाज़ में जवाब देते हुए बोले- सभी सेलेक्शन नोएडा से होते हैं, हमारे हाथ में कुछ भी नहीं है। अगले दिन यह कह कर मेरी छुट्टी कर दी गई कि अब मुझे आने की ज़रूरत नहीं है। भला हो अमर उजाला के उन सीनियर पत्रकारों का जिन्होंने मुझे न्यूज़ लिखना सिखाया। भड़ास4मीडिया की वेबसाइट का पता मुझे मेरे एक मित्र ने दिया और बताया कि मीडिया में निकलने वाली सभी तरह की पोस्ट की जानकारी यहां से मिलती रहेगी।
अमर उजाला में कोल्हू के बैल की तरह काम करने के बाद 2 माह तक जॉब तलाश की, लेकिन कहीं नहीं मिल सकी। जैसे-तैसे कानपुर के एक लोकल हिंदी न्यूज़ चैनल में 4 हज़ार पर कंटेंट राईटर की जॉब मिल गई। एक वर्ष तक वहां काम किया। साथ ही साथ भाड़ास की वेबसाईट पर जॉब से जुड़ी जानकारियां और रिज़्यूम भेजने के लिए मेल मिल जाया करती थी। एक साल तक भड़ास पर आने वालीं जॉब की सूचनाओं पर अपना सीवी भेजता रहा. उम्मीद लगाए रहा कि कभी तो कहीं से बुलावा आएगा। लेकिन पूरा एक वर्ष बीत गया रिज्यूमे भेजते-भेजते. आज तक किसी ने जवाब नहीं दिया।
मैं यही सोचता रहा कि आख़िर कभी कोई जवाब क्यूं नही आता? कहीं ये सब फ़र्ज़ी पोस्ट तो नहीं आती है? मैं उदास था। एक दिन अमर उजाला के आफ़िस गया और वहां 20 वर्ष से पत्रकारिता जगत का अनुभव लिए हुए एक पत्रकार से मिला और भड़ास के माध्यम से जॉब की मिलने वाली सूचनाओं पर रिज़्यूमे भेजने की बात का ज़िक्र किया.
उन्होंने बताया कि भड़ास पर जॉब की आने वाली जानकारियां फ़र्ज़ी नहीं होती हैं, बल्कि इस क्षेत्र में आज-कल नौकरी सिर्फ़ जुगाड़ से ही मिल रही हैं। या फिर आपका उपनाम उस संस्थान को भाना चाहिए.तब ही आप किसी बड़े संस्थान में घुस पाएंगे.
ऐसे में भड़ास के यशवंत जी से गुज़ारिश करता हूं कि सर, मेरा भी कहीं जुगाड़ बनवा दीजिए। बहुत उदास हूं, परेशान हो गया हूँ. बड़ी उम्मीद से कह रहा हूँ..
Nehal Rizvi
Irfan Ahmed
December 23, 2018 at 5:07 am
Brother mere sath bhi same situation h 2016 m mjmjc complete kiya h or haribhoomi.com Delhi m two months ki internship krke job nhi Di thi jab ki mere sath kaam krne wale senior Journalist mere kaam ki bhut tareef krte the kyo ki MERI national or international news pr bhut acchi pakad h
Or one year bad m job Mili bhi to mere dost k purpose s Mili haribhoomi.com m hi to salary intni Kam dene ko bol rhe the ki kharh bhi ho pa rha tha to two months m hi job drop krni PADI. Or ab Kai months s job talas rha hu lekin CV pr khi s reply nhi ata h
Sohan singh
December 24, 2018 at 2:06 am
मैने तो इस वजह से मीडिया ही छोड़ दी।
नीरज
January 4, 2019 at 4:34 am
मैन पत्रकारिता में न सिर्फ पोस्ट ग्रेजुएशन डिप्लोमा किआ है बल्कि एमजे भी किया और 13 वर्षों तक उत्तर प्रदेश के सबसे बड़े चैनल ईटीवी में काम किया एहम बात ये है कि आजतक सिर्फ रिपोर्टिंग को अपना लक्ष्य माना लेकिन मार्च में मुझे बिना किसी कारण के निकल दिया गया और औऱ अब इसमें अपराधियों को प्राथमिकता दी जा रही है जिसका मैं अकेले पीड़ित नही हूँ बल्कि बाँदा,हमीरपुर, फतेहपुर ये सब सीनियर रिपोर्टर भुक्तभोगी है जो वसूली न कर पाने के दोषी है
सादर नमस्कार
Saurabh Singh
January 18, 2019 at 5:36 am
यशवंत जी आपके भड़ास भड़ास पर पड़ने वाले पोस्ट और जॉब रिलेटेड पोस्ट से बहुत जानकारी मिलती है। 89 साल से इस फील्ड में काम कर रहा हूं। अभी तक कोई जुगाड़ नहीं बन पाया नौकरियां जुगाड़ पर मिलती हैं आप क्या कर सकते हैं आप में कितनी क्षमता है उस पर नहीं।
mahendra singh
February 14, 2019 at 11:16 am
It’s Universally truth
But news media is another synnoname of so called Jugad in form of correspondent.
Litteraly needs something extra from others a mixture of expertness and creativity where your vision sharpens your professional passion.
In any circumstance this thing of Jugad is more painful to all like cast based reservation.
Thanks to all. . . . . . . .