संतोष राय-
खुद को बचा लीजिए… वरना गुलामी करते हुए ही एक दिन मर जाएंगे!
29 जुलाई यानी दो दिन पहले ही भड़ास फॉर मीडिया के संस्थापक-संपादक यशवंत सिंह जी से मिलकर उनके स्वास्थ्य लाभ हेतु कुछ बुनियादी मुद्दों पर एक पार्क में बैठकर चर्चा हुई। वे इतने सहृदय निकले कि बातचीत के एक हिस्से को प्रभावशाली ढंग से लिखकर अपने फेसबुक अकाउंट और भड़ास फॉर मीडिया पर पोस्ट कर दिए। इसका खामियाजा ये हुआ कि अभी तक 100 से अधिक फ्रेंड रिक्वेस्ट आ चुकी हैं फेसबुक पर और मोबाइल पर कई इस तरह के मेसेज कि – ‘मानसिक तनाव से गुजर रहा हूँ कोई रास्ता बताएँ।’, ‘अवसाद से बाहर कैसे निकलूँ कुछ समझ नहीं आ रहा है क्या करूँ?’
मैं स्वयं एक पत्रकार हूँ तो पत्रकार की पीड़ा को समझना मेरे लिए मुश्किल नहीं है। कितने पत्रकार बहुत कम उम्र में छोड़कर चले गए, भड़ास फॉर मीडिया पर इस बारे में खबरें छपती रहती हैं। छोड़कर चले जाने की चिंता से बड़ी चिंता यह है कि पत्नी और बच्चों सहित कई परिवार अनाथ हो गए। एक बात नोट कर लीजिए, आपके परिवार का पोषक – संरक्षक आपसे बेहतर और कोई नहीं हो सकता।
पिछले दिनों एक पत्रकार मित्र से मिला जो अपने परिवार के किसी सदस्य का अंतिम क्रिया करके गाँव से लौटे थे। मैंने उनसे पूछा – क्या आपको सीएल, मेडिकल मिलती है?
बोले -हाँ।
मैंने कहा- फिर ले लेते ? अब इस दु:ख की घड़ी में दो चार दिन की छुट्टी न मिल पाए तो क्या फायदा?
मैं उनके चेहरे का भाव आपके सामने प्रस्तुत कर पाता तो आप भी मेरी तरह सिहर उठते। लगभग काँपते हुए कहा – नहीं नहीं … छुट्टी नहीं ले सकता। छुट्टी ले ली तो नौकरी चली जाएगी।
यह सिर्फ उनकी बात नहीं है। यह मीडिया में काम करने वाले लगभग सभी पत्रकारों का हाल है – चाहे वह किसी भी पद पर हों – चाहे किसी भी चैनल में हों। नौकरी पाने से अधिक तनावपूर्ण स्थिति नौकरी को बचाए रखने की है। कई बार तो लगता है हमने खुद की जिंदगी कहाँ जी? ऐसा लगता है जैसे हम अपने लिए नहीं बल्कि मीडिया हाउसों, चैनलों, अखबारों आदि के लिए जी रहे हैं। कभी यहां तो कभी वहां।
खैर, उपरोक्त चर्चाओं के पश्चात् भड़ास फॉर मीडिया के माध्यम से एक दिली आश्वासन देना चाहूँगा – मैं सभी मीडिया भाइयों को मानसिक स्वास्थ्य प्रदान करने हेतु तैयार हूँ- वो भी बिल्कुल नि:शुल्क। हाँ दान स्वरूप जो भी देंगे वह सहज स्वीकार्य होगा। जगह आप तय करें बीस – तीस लोग जमा हों – मुझे पहुँचने में देर न लगेगी।
आपको शायद पता नहीं होगा महर्षि पतंजलि ने मानसिक स्वास्थ्य के लिए ही योग दर्शन की रचना की है । कहते हैं – योगश्चित्तवृत्तिनिरोध: अर्थात् चित्त की वृत्तियों का निरोध योग है – चित्त की वृत्तियों का निरोध मतलब मानसिक रूप से स्वस्थ हो जाना योग है। वर्तमान समय में चाहे खुद का स्वास्थ्य खराब हो, चाहे सम्बंध खराब हों, चाहे सामाजिक समस्याएं बढ़ी हों, चाहे पर्यावरण की हानि हो रही हो, चाहे देश में वैमन्स्य, लड़ाई-झगड़े-अपराध बढ़ रहे हों अथवा वैश्विक रूप से तनाव-अविश्वास और युद्ध का महौल बना हुआ हो इन सबकी जड़ में हमारा खराब मानसिक स्वास्थ्य ही है। हम मानसिक रूप से यानी मन से बीमार हैं इसलिए ये सब है। जिस दिन हम मानसिक रूप से स्वस्थ हो जाएंगे – सारा सुख – सारा आनंद यहीं हैं। इसी अवस्था को महर्षि पतंजलि समाधि कहते हैं।
अंत में मेरा परिचय यह है कि मैं पत्रकारिता से योगकारिता की ओर बढ़ता एक संवेदनशील योग साधक हूं, बस इतना ही।
संतोष से संपर्क उनके मोबाइल नंबर 8851169101 के जरिए किया जा सकता है.
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योग के जरिए मानसिक सुकून दिलाने के विशेषज्ञ हैं टीवी पत्रकार संतोष राय!
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