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एक मंच पर आए जागरण व सहारा के मीडियाकर्मी, मिलकर लड़ेंगे लड़ाई

नई दिल्ली/ नोएडा। प्रिंट मीडिया समूहों में कार्यरत कर्मचारियों के शोषण और अत्याचारी अखबार प्रबंधनों के खिलाफ अब कर्मचारी एकजुट होकर लड़ाई लड़ेंगे। इस क्रम में दैनिक जागरण कर्मचारी यूनियन ने आंदोलित सहारा समूह के मीडियाकर्मियों के साथ कंधे से कन्धा मिलाकर लड़ाई लड़ने का निश्चय किया है।

<p>नई दिल्ली/ नोएडा। प्रिंट मीडिया समूहों में कार्यरत कर्मचारियों के शोषण और अत्याचारी अखबार प्रबंधनों के खिलाफ अब कर्मचारी एकजुट होकर लड़ाई लड़ेंगे। इस क्रम में दैनिक जागरण कर्मचारी यूनियन ने आंदोलित सहारा समूह के मीडियाकर्मियों के साथ कंधे से कन्धा मिलाकर लड़ाई लड़ने का निश्चय किया है।</p>

नई दिल्ली/ नोएडा। प्रिंट मीडिया समूहों में कार्यरत कर्मचारियों के शोषण और अत्याचारी अखबार प्रबंधनों के खिलाफ अब कर्मचारी एकजुट होकर लड़ाई लड़ेंगे। इस क्रम में दैनिक जागरण कर्मचारी यूनियन ने आंदोलित सहारा समूह के मीडियाकर्मियों के साथ कंधे से कन्धा मिलाकर लड़ाई लड़ने का निश्चय किया है।

बृहस्पतिवार को नोएडा में हुई एक महत्वपूर्ण बैठक में दैनिक जागरण कर्मचारी यूनियन के उपाध्यक्ष और वरिष्ठ पत्रकार श्री प्रदीप कुमार सिंह ने सहारा के मीडियाकर्मियों को विश्वास दिलाया कि अब दैनिक जागरण के कर्मचारी भी सहारा के कर्मचारियों की लड़ाई लड़ेंगे। दूसरी ओर सहारा के मीडियाकर्मियों ने भी जागरण कर्मचारियों के साथ पूरी ताकत से कर्मचारियों के अधिकारों के लिए संघर्ष करने की बात कही।

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श्री प्रदीप कुमार सिंह ने कहा कि अख़बारों के मालिकान कर्मचारियों को कतई उनका हक़ नहीं देना चाहते। ऐसे में जरुरत इस बात की है कि कर्मचारी एक मंच पर आएं और मिलकर लड़ाई लडें और अख़बारों के मालिकानों को मुंहतोड़ जवाब दें। बैठक में उपस्थित अन्य कर्मचारियों ने भी अखबारों में कर्मचारियों के बढ़ रहे शोषण के खिलाफ आंदोलन की मशाल को जलाये रखने का आह्वान किया। गौरतलब है कि दैनिक जागरण के कर्मचारी डेढ़ महीने से मजीठिया वेज बोर्ड की सिफारिशों को लागू करने की वाजिब मांग को लेकर दिल्ली, नोएडा, हिसार, धर्मशाला, लुधियाना और जालंधर में आंदोलन कर रहे हैं। लेकिन अत्याचारी और तानाशाह जागरण प्रबंधन ने 350 से अधिक कर्मचारियों को अपना हक़ मांगने पर निलंबित कर दिया है।

इसी तरह सहारा मीडिया समूह के पत्रकार, गैर-पत्रकार 9 महीने से बिना वेतन के अपनी सेवाएं दे रहे हैं, उन्हें मजीठिया मिलना तो दूर सहारा प्रबंधन उनका बकाया वेतन तक नहीं दे रहा है। सहारा के कर्मचारियों की कहानी दर्दनाक है। उनके बच्चों के स्कूल से नाम कट चुके हैं, भूख और बीमारी से सहारा के कुछ कर्मचारियों की मौत हो गयी लेकिन अत्याचारी सहारा का प्रबंधन कर्मचारियों को उनका हक़ देने को तैयार नहीं है। ऐसे में कर्मचारियों के पास आंदोलन को तेज करने के अलावा कोई विकल्प नहीं था। माना जा रहा है कि जागरण और सहारा के कर्मचारियों के एक मंच पर आकर लड़ाई लड़ने से कर्मचारियों का शोषण बंद होगा और अत्याचारी प्रबंधन और उनके चमचों को झुकना पड़ेगा।

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एक पत्रकार द्वारा भेजे गए पत्र पर आधारित.

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