पीएमओ को लेटर लिखने पर ‘जनसंदेश टाइम्स’ पत्रकार विनायक राजहंस को पीएफ राशि देने को मजबूर हुआ

Vinayak Rajhans : पिछले करीब दो साल से अपने पीएफ की राशि को पाने के लिए मेरा संघर्ष रंग लाया. मेरे पूर्व नियोक्ता ‘जनसंदेश टाइम्स’ और पीएफ ऑफिस लखनऊ की उदासीनता के चलते इनके खूब चक्कर लगाने पड़े. मेरे पीएफ खाते में पैसे ही नहीं जमा किए गए थे जबकि वेतन से काटा गया था.

जागरण कर्मचारियों से सीखो हक़ के लिए लड़ना

नई दिल्ली : मजीठिया वेज बोर्ड को लेकर दिल्ली-एनसीआर और देश के अन्य राज्यों में विभिन्न प्रिंट मीडिया समूहों में कार्यरत कर्मचारियों के बीच चर्चाओं का बाजार गर्म है। देश भर के मीडियाकर्मियों की नजर माननीय अदालत में होने वाली अगली सुनवाई पर है। लेकिन अत्याचारी अखबार मालिकानों से भिड़कर आंदोलन को इस मुकाम तक पहुँचाने वाले दैनिक जागरण के कर्मचारियों की हिम्मत की जितनी प्रशंसा की जाये, कम है।

क्या प्रसार भारती और आकाशवाणी महानिदेशालय माननीय सर्वोच्च न्यायालय व संसद से भी बड़ी हो गई है!

आकाशवाणी के दोहरे मापदंड एवं हठधर्मिता के चलते लंबे समय से काम रहे आकस्मिक उद्घोषकों का नियमितिकरण नहीं किया जा रहा है। गौरतलब है कि सुप्रीम कोर्ट भी संविधान पीठ भी दस वर्षों या अधिक समय से कार्यरत संविदा कर्मियों की सेवाओं का नियमितिकरण एक मुश्त उपाय के तहत करने के निर्देश दे चुकी है। आकाशवाणी में आकस्मिक कलाकार/ कर्मचारी सन 1980 से अर्थात प्रसार भारती के लागू होने के वर्षों पहले से स्वीकृत एवं रिक्त पड़े पदों के स्थान पर आकस्मिक उद्घोषक/ कम्पीयर के रूप में काम कर रहे हैं।

बकाया वेतन के लिये यूएनआई के पूर्व मीडियाकर्मियों की कानूनी लड़ाई तेज हुई, मदद की अपील

सरकार ने अखबारों एवं संवाद समितियों के कर्मचारियों एवं पत्रकारों के लिये मजीठिया वेतन बोर्ड की अनुशंसाओं को लागू कर दिया है। उच्चतम न्यायालय ने भी इन अनुशंसाओं को अक्षरश लागू करने का निर्देश दिया है लेकिन इसके बावजूद दैनिक जागरण, हिन्दुस्तान टाइम्स, स्टेसमैन, यूएनआई जैसे मीडिया संगठनों ने सरकार एवं उच्चतम न्यायालय के आदेशों को धत्ता बताकर या तो मजीठिया वेतन बोर्ड की अनुशंसाओं को लागू ही नहीं किया है या मनमाने तरीके से लागू किया है। यही नहीं जिन पत्रकारों ने मजीठिया वेतन बोर्ड की सिफारिशों के अनुसार वेतन वृद्धि लागू किये जाने की मांग की उनके प्रबंधकों ने उनका तबादला करने और उन्हें नौकरी से निकालने के हथकंडे अपनाये।

एक मंच पर आए जागरण व सहारा के मीडियाकर्मी, मिलकर लड़ेंगे लड़ाई

नई दिल्ली/ नोएडा। प्रिंट मीडिया समूहों में कार्यरत कर्मचारियों के शोषण और अत्याचारी अखबार प्रबंधनों के खिलाफ अब कर्मचारी एकजुट होकर लड़ाई लड़ेंगे। इस क्रम में दैनिक जागरण कर्मचारी यूनियन ने आंदोलित सहारा समूह के मीडियाकर्मियों के साथ कंधे से कन्धा मिलाकर लड़ाई लड़ने का निश्चय किया है।

सहारा के कर्मचारियों ने मुंबई में गठित की यूनियन, नाम- ‘सहारा इंडिया कामगार संगठना’

हम सहारा इंडिया परिवार के पीड़ित कर्मचारी हैं जो मुंबई के गोरेगांव कार्यालय में कार्यरत हैं. सहारा के पीड़ित हम इसलिये हैं कि पिछले लंबे समय से हम आधी अधूरी तनख्वाह में निर्वहन कर रहे हैं और उसमें ६ महिनों का तनख्वाह बकाया है. सहारा इंडिया में पहली कर्मचारी यूनियन का गठन मुंबई में हो चुका है जिसका नाम सहारा इंडिया कामगार संगठना है. प्रबंधन के लाख दावों और झूठे आश्वासनों के बाद भूखे परिवार के दर्द ने हमें मजबूर कर दिया कि हम संगठन के तहत झूठ के पुलिंदों की खिलाफत करें. हमारे दर्द को दबाने के लिए मुंबई में प्रबंधन ने तथाकथित अधिकारियों की टीम खड़ी रखी है जो झूठे आश्वासन, धमकी देना और स्थानांतरण करने की बातें कहते हैं. लेकिन इस तानाशाही से पीड़ित करीब दो सौ लोगों का सब्र आखिरकार टूट गया और लोग गोरेंगाव पुलिस थाने में पहुंचे, चुंकि बातें तनख्वाह की थी इसलिए पुलिस ने हमारी शिकायत को श्रम आयुक्त के पास भेज दिया.

मजीठिया वेतनमानः अभी निर्णायक संघर्ष का समय, इसके बाद शुरू होगा मालिकों का नंगनाच

पत्रकारों के लिए अब निर्णायक समय आ गया है क्योंकि हर राज्य सरकार ने सुप्रीम कोर्ट के आदेशानुसार श्रम अधिकारियों की विशेष टीमें गठित कर दी हैं और ये टीम 31 जुलाई तक सक्रिय रहेंगी. 

मेरठ के ‘प्रभात’ अखबार के मीडियाकर्मी सिटी इंचार्ज केपी त्रिपाठी से परेशान

मेरठ के सुभारती समूह द्वारा हिंदी दैनिक अखबार ‘प्रभात’ का प्रकाशन किया जाता है. आरोप है कि अखबार के सिटी इंचार्ज के रवैये से कई पत्रकार अखबार छोड़कर चले गए. इन दिनों छायाकार समीर सिटी इंचार्ज केपी त्रिपाठी के रवैये से सकते में हैं. 31 मार्च को दैनिक प्रभात समाचार पत्र में सुबह के समय सिटी इंचार्ज केपी त्रिपाठी कई पत्रकार एवं छायाकारों के साथ बैठक कर रहे थे. इस बीच छायाकार समीर की कार्यप्रणाली को लेकर सिटी इंचार्ज ने गलत शब्द बोले. सिटी इंचार्ज ने फोटोग्राफर समीर को सभी लोगों के सामने ही बैठक से बाहर निकाल दिया. इससे फोटोग्राफर के सम्मान को काफी ठेस पहुंची.

अब मीडिया की अदालत में अंशु : सुहाग लुटा फिर पूरी वसीयत, ‘मेरे मासूम की मदद करिए’ !

आगरा : ससुराल में पांव रखते ही किसी नवविवाहिता को पता चले कि उसके पति को तो कैंसर है….कुछ दिन बाद पति उसे हमेशा के लिए इस दुनिया में अकेला छोड़ जाए ! और उस पर लगातार वक्त कुछ ऐसी मार पड़ती जाए कि सुहाग लुट जाने से कुछ माह पूर्व वह संतान को जन्म दे, और फिर, उसे नवजात के साथ ससुराल से मायके खदेड़ दिया जाए !..उसके बच्चे के नाम बैंक में जमा सारे रुपये निकालने के साथ ही जालसाजी कर उसकी पूरी वसीयत उसके ही ननद-देवर एक कॉलेज के नाम पर हड़प लें तो ? और वह लाचार नवविवाहिता दस साल से न्याय की गुहार लगाते हुए हाईकोर्ट की चौखट तक पहुंच जाए….!! 

एक न्यूज चैनल जहां महिला पत्रकारों को प्रमोशन के लिए मालिक के साथ अकेले में ‘गोल्डन काफी’ पीनी पड़ती है!

चौथा स्तंभ आज खुद को अपने बल पर खड़ा रख पाने में नाक़ाम साबित हो रहा है…. आज ये स्तंभ अपना अस्तित्व बचाने के लिए सिसक रहा है… खासकर छोटे न्यूज चैनलों ने जो दलाली, उगाही, धंधे को ही असली पत्रकारिता मानते हैं, गंध मचा रखा है. ये चैनल राजनेताओं का सहारा लेने पर, ख़बरों को ब्रांड घोषित कर उसके जरिये पत्रकारिता की खुले बाज़ार में नीलामी करने को रोजाना का काम मानते हैं… इन चैनलों में हर चीज का दाम तय है… किस खबर को कितना समय देना है… किस अंदाज और किस एंगल से ख़बर उठानी है… सब कुछ तय है… मैंने अपने एक साल के पत्रकारिता के अनुभव में जो देखा, जो सुना और जो सीखा वो किताबी बातों से कही ज्यादा अलग था…. दिक्कत होती थी अंतर आंकने में…. जो पढ़ा वो सही था या जो इन आँखों से देखा वो सही है…

द सी एक्सप्रेस : सेलरी मिलती नहीं, रिपोर्टरों और फोटोग्राफरों पर विज्ञापन लाने के लिए भारी दबाव

कभी आगरा में धमाकेदार लॉन्चिंग के कारण प्रसिद्ध हुआ हिन्दी डेली ‘द सी एक्सप्रेस’ कई महीनों से अपने कर्मचारियों को वेतन नहीं दे पा रहा है। पत्रकारों को पिछले चार माह से तनख्वाह नहीं मिली है। जो तनख्वाह की मांग करता है, उसका हिसाब करने की धमकी देते हुए इस्तीफा मांगा जाता है। जब इस्तीफा दे देता है, तो उससे कहा जाता है कि दस दिन में पूरा भुगतान हो जाएगा। वे दस दिन कभी नहीं आते हैं।

कोटा के बाद दैनिक भास्कर भीलवाड़ा में भी बगावत, प्रबंधन पीछे हटा

मजीठिया वेज बोर्ड के लिए सुप्रीम कोर्ट जाने वाले कर्मियों को लगातार परेशान करने के कारण भास्कर ग्रुप में जगह-जगह विद्रोह शुरू हो गया है. अब तक प्रबंधन की मनमानी और शोषण चुपचाप सहने वाले कर्मियों ने आंखे दिखाना और प्रबंधन को औकात पर लाना शुरू कर दिया है. दैनिक भास्कर कोटा में कई कर्मियों को काम से रोके जाने के बाद लगभग चार दर्जन भास्कर कर्मियों ने एकजुटता दिखाते हुए हड़ताल कर दिया और आफिस से बाहर निकल गए.

बाएं से दाएं : आंदोलनकारी मीडियाकर्मियों के साथ बात करते भड़ास के एडिटर यशवंत सिंह, अजमेर के वरिष्ठ पत्रकार रजनीश रोहिल्ला और जर्नलिस्ट एसोसिएशन आफ राजस्थान (जार) के जिलाध्यक्ष हरि बल्लभ मेघवाल.

बगावत की आग दैनिक भास्कर तक पहुंची, कोटा में हड़ताल

मजीठिया वेज बोर्ड पाने के लिए सुप्रीम कोर्ट जाने वाले मीडियाकर्मियों के प्रताड़ना का सिलसिला तेज हो गया है. दैनिक जागरण नोएडा के कर्मियों ने पिछले दिनों इसी तरह के प्रताड़ना के खिलाफ एकजुट होकर हड़ताल कर दिया था और मैनेजमेंट को झुकाने में सफलता हासिल की थी. ताजी खबर दैनिक भास्कर से है. यहां भी मीडियाकर्मियों को सुप्रीम कोर्ट जाने पर परेशान किया जाना जारी है. इसके जवाब में दैनिक भास्कर के कोटा के दर्जनों कर्मियों ने एकजुट होकर हड़ताल शुरू कर दिया है.

राजस्थान पत्रिका में मजीठिया वेज बोर्ड के साइड इफेक्ट : डीए सालाना कर दिया, सेलरी स्लिप देना बंद

कोठारी साहब जी, मन तो करता है पूरे परिवार को लेकर केसरगढ़ के सामने आकर आत्‍महत्‍या कर लूं

जब से मजीठिया वेज बोर्ड ने कर्मचारियों की तनख्‍वाह बढ़ाने का कहा व सुप्रीम कोर्ट ने उस पर मोहर लगा दी तब से मीडिया में कार्य रहे कर्मचा‍रियों की मुश्किलें बढ रही हैं. इसी कड़ी में राजस्‍थान पत्रिका की बात बताता हूं। पहले हर तीन माह में डीए के प्‍वाइंट जोड़ता था लेकिन लगभग दो तीन वर्षों से इसे सालाना कर दिया गया। इसके बाद सुप्रीम कोर्ट के आदेश को ठेंगा दिखाते हुए तनख्‍वा बढ़ी तो जहां 100 प्रतिशत की बढ़ोतरी होनी थी तो मजीठिया लगने के बाद कर्मचारियों की तनख्‍वाह में मात्र 1000 रुपए का ही फर्क आया। किसी किसी के 200 से 300 रुपये की बढ़ोतरी।

संजय गुप्ता को रात भर नींद नहीं आई, जागरण कर्मियों में खुशी की लहर

बहुत दिनों बाद ऐसा हुआ. इसे पहले ही हो जाना चाहिए था. डिपार्टमेंट का कोई भेद नहीं था. सब एक थे. सब मीडियाकर्मी थे. सब सड़क पर थे. सबकी एक मांग थी. मजीठिया वेज बोर्ड खुलकर मांगने और सुप्रीम कोर्ट जाने वाले जिन-जिन साथियों को दैनिक जागरण प्रबंधन ने परेशान किया, ट्रांसफर किया, धमकाया, इस्तीफा देने के लिए दबाव बनाया, उन-उन साथियों के खिलाफ हुई दंडात्मक कार्रवाई तुरंत वापस लो और आगे ऐसा न करने का लिखित आश्वासन दो.

दैनिक जागरण, नोएडा के हड़ताल की आंच हिसार तक पहुंची

दैनिक जागरण, नोएडा में कर्मचारी सड़कों पर उतर गए हैं. प्रबंधन की दमनकारी और शोषणकारी नीतियों के खिलाफ कर्मचारियों का सालों से दबा गुस्‍सा अब छलक कर बाहर आ गया है. मजीठिया वेज बोर्ड को लेकर एक संपादकीय कर्मचारी का तबादला किए जाने के बाद सारे विभागों के कर्मचारी एकजुट होकर हड़ताल पर चले गए हैं. मौके पर प्रबंधन के लोग भी पहुंच गए हैं, लेकिन कर्मचारी कोई बात सुनने को तैयार नहीं हैं. प्रबंधन ने सुरक्षा के मद्देनजर पुलिस बल को बुला लिया है, लेकिन प्रबंधन के शह पर सही गलत करने वाली नोएडा पुलिस की हिम्‍मत भी कर्मचारियों से उलझने की नहीं हो रही है. 

मजीठिया वेज बोर्ड के लिए भड़ास की जंग : लीगल नोटिस भेजने के बाद अब याचिका दायर

Yashwant Singh : पिछले कुछ हफ्तों से सांस लेने की फुर्सत नहीं. वजह. प्रिंट मीडिया के कर्मियों को मजीठिया वेज बोर्ड के हिसाब से उनका हक दिलाने के लिए भड़ास की पहल पर सुप्रीम कोर्ट में मुकदमा दायर करने की प्रक्रिया में इनवाल्व होना. सैकड़ों साथियों ने गोपनीय और दर्जनों साथियों ने खुलकर मजीठिया वेज बोर्ड के लिए भड़ास के साथ सुप्रीम कोर्ट में जाने का फैसला लिया है. सभी ने छह छह हजार रुपये जमा किए हैं. 31 जनवरी को दर्जनों पत्रकार साथी दिल्ली आए और एडवोकेट उमेश शर्मा के बाराखंभा रोड स्थित न्यू दिल्ली हाउस के चेंबर में उपस्थित होकर अपनी अपनी याचिकाओं पर हस्ताक्षर करने के बाद लौट गए. इन साथियों के बीच आपस में परिचय हुआ और मजबूती से लड़ने का संकल्प लिया गया.

(भड़ास की पहल पर मजीठिया वेज बोर्ड को लेकर शुरू हुई लड़ाई के तहत मीडिया हाउसों के मालिकों को लीगल नोटिस भेज दिया गया. दैनिक भास्कर के मालिकों को भेजे गए लीगल नोटिस का एक अंश यहां देख पढ़ सकते हैं)

चैनल वन से बकाया सेलरी के लिए लड़ रहे एक मीडियाकर्मी का खुला पत्र

संपादक, भड़ास4मीडिया, सादर प्रणाम, मैं भड़ास4 मीडिया का एक नियमित पाठक हूं. आप लोगों ने ना जाने कितनी बार हम पत्रकार लोगों के साथ जो अन्याय कभी हुआ है उसके खिलाफ कदम से कदम मिला कर साथ दिया है, उसके लिए तहे दिल से शुक्रिया अदा करना चाहूंगा. मैं आपको अपने साथ जो अन्याय हुआ है उसके बारे में अवगत कराना चाहूंगा. आशा करता हूं कि आप इसे प्रमुखता से छापकर मेरे जैसे ना जाने कितने लोगों को फर्जी स्टिंग, ब्लैकमेलिंग और कर्मचारियों का शोषण करने वाले इस बदनाम प्रवृति के न्यूज चैनल ‘चैनल वन’ से सावधान कर उनका सही दिशा में मार्ग दर्शन कर सकते हैं. 

संदर्भ- आईपीएस अफसर अमिताभ ठाकुर की सरकारी घेराबंदी : …नहीं तो शेर खा जाएगा!

बचपन में एक कहानी सुनी थी। हांलाकि कहानी तो कहानी ही यानि मनघड़ंत होती है…मगर उससे कुछ सीख मिल जाए तो क्या बुराई है! कहानी कुछ यूं थी कि एक जंगल में चार भैंसे रहते थे। आपस में बेहद प्यार और मिलजुल कर रहते थे। वहीं एक शेर भी रहता था। जिसका मन उनका शिकार करने को हमेशा बना रहता था। लेकिन उनकी एकता के आगे उसकी कभी न चली। जब भी शेर हमला करता चारों मिलकर उसको खदड़े देते। तभी एक लोमड़ी से शेर की वार्तालाप हुई। लोमड़ी को भी शेर के शिकार में अपने पेट भरने के आसार नज़र आए और उसने शेर से कुछ वादा किया।

कोयलांचल के पत्रकार वेद प्रकाश जिंदगी-मौत से जूझ रहे, मदद की जरूरत

कोयलांचल के जुझारू पत्रकार वेद प्रकाश आज जिंदगी और मौत से जब जूझ रहे हैं तो कोयलांचल के बहुत कम साथी हैं जिन्हें वह याद आते हैं. करीब दो दशक पहले भारतीय खनि विद्यापीठ की निबंध प्रतियोगिता में उत्कृष्ट स्थान प्राप्त करने के बाद धनबाद के एक स्थानीय दैनिक ने अपने यहां काम करने का अवसर दिया. और यहीं से शुरू हुई उसकी पत्रकारिता. दस साल पहले ‘प्रभात खबर’ के धनबाद संस्करण में काम करते हुए गिरिडीह राइफल लूट कांड, महेंद्र सिंह हत्याकांड और भेलवाघाटी उग्रवादी घटना की रिपोर्टिग के लिए काम निबटाकर रात तीन बजे धनबाद से गिरिडीह जाना हम साथी भूल नहीं सकते.

मजीठिया वेज बोर्ड : यशवंत के साथ ना सही, पीछे तो खड़े होने की हिम्मत कीजिए

Rajendra Hada


मंगलवार, 20 जनवरी 2015 की शाम भड़ास देखा तो बड़ी निराशा हुई। सिर्फ 250 पत्रकार मजीठिया की लड़ाई लड़ने के लिए आगे आए? दुर्भाग्य से, जी हां दुर्भाग्य से, मैंने ऐसे दो प्रोफेशन चुने जो बुद्धिजीवियों के प्रतीक-स्तंभ के रूप में पहचाने माने जाने जाते हैं। वकालत और पत्रकारिता। दुर्भाग्य इसलिए कि दुनिया को अन्याय नहीं सहने की सलाह वकील और पत्रकार देते हैं और अन्याय के खिलाफ मुकदमे कर, नोटिस देकर, खबरें छापकर मुहिम चलाते हैं लेकिन अपने मामले में पूरी तरह ‘चिराग तले अंधेरा’ वाली कहावत को चरितार्थ करते हैं। अपनी निजी भलाई से जुडे़ कानूनों, व्यवस्थाओं के मामले में बुद्धिजीवियों के ये दो वर्ग लापरवाही और अपने ही साथियों पर अविश्वास जताते हैं। यह इनकी निम्नतम सोच का परिचय देने को काफी है।

भड़ास की मुहिम पर भरोसा करें या नहीं करें?

जिन्हें हो खौफ रास्तों का, वो अपने घर से चले ही क्यों?
करें तूफानों का सामना, जिन्हें मंजिलों की तलाश है।

प्रिय साथियों,

समय कम बचा है। अब किसी सुखद अहसास का इंतजार मत करो। अपने कदम बढ़ाओ। वक्त निकलने के बाद आप के हाथ में कुछ भी नहीं रहेगा। मेरे पास देश के हर प्रदेश के पत्रकार साथियों के फोन आ रहे हैं। मैं सबसे हाथ जोड़कर निवेदन करना चाहता हूं कि मुझे फोन करना बंद कर दीजिए। कुछ पत्रकार भड़ास के संपादक यशवंतजी को लेकर आशंकाओं से भरे हैं। पत्रकार मुझसे पूछ रहे हैं कि भड़ास की मुहिम पर भरोसा करें या नहीं करें। मुझे ऐसे सवालों से दुख हो रहा है।

बंद हो चुके ‘भास्कर न्यूज’ चैनल के मालिकों-संपादकों में घमासान, लेबर डिपार्टमेंट ने आरसी जारी की

‘भास्कर न्यूज’ चैनल के शीर्षस्थ लोगों में घमासान शुरू हो चुका है. खबर है कि राहुल मित्तल ने हेमलता अग्रवाल व समीर अब्बास के खिलाफ नोएडा के किसी थाने में मुकदमा दर्ज करा दिया है. उधर, हेमलता अग्रवाल और समीर अब्बास ने भी राहुल मित्तल के खिलाफ एफआईआर दर्ज करने हेतु थाने में तहरीर पहले से दे रखा है. सूत्रों के मुताबिक चैनल के फेल होने के बाद इसका ठीकरा एक दूसरे पर फोड़े जाने की कवायद शुरू हो गई है.

भड़ास के एडिटर यशवंत सिंह का एक पुराना इंटरव्यू

मीडियासाथी डॉट कॉम नामक एक पोर्टल के कर्ताधर्ता महेन्द्र प्रताप सिंह ने 10 मार्च 2011 को भड़ास के संपादक यशवंत सिंह का एक इंटरव्यू अपने पोर्टल पर प्रकाशित किया था. अब यह पोर्टल पाकिस्तानी हैकरों द्वारा हैक किया जा चुका है. पोर्टल पर प्रकाशित इंटरव्यू को हू-ब-हू नीचे दिया जा रहा है ताकि यह ज्यादा से ज्यादा लोगों तक पहुंचे और यशवंत के भले-बुरे विचारों से सभी अवगत-परिचित हो सकें.

यशवंत सिंह

 

”P7 में आपका दुबारा स्वागत है…” लेकिन ध्यान से, कहीं फंस मत जइहो भइये

पी7 यानि पीएसीएल उर्फ पर्ल्स ग्रुप का न्यूज चैनल.  लगातार फ्रॉड करते रहने वाले इस ग्रुप के चैनल का अंत भी फ्रॉडगिरी करके हुआ, सैकड़ों मीडियाकर्मियों की तनख्वाह मार के. लेकिन मीडियाकर्मी लड़े और जीते. लेकिन पर्ल्स ग्रुप ने पैंतरा मारते हुए फिर नया खेल किया है. सूत्रों के मुताबिक चैनल को कांग्रेस के नेता जगदीश शर्मा ने खरीद लिया है. इसे देखते हुए पर्ल्स ग्रुप का नया पैतरा ये है कि कर्मचारियों के फुल एंड फाईनल सेटेलमेंट से ठीक पहले पी7 मैनेजमेंट ने अपने आफिस के गेट पर लुभावने आफर वाला एक नोटिस चस्पा कर दिया है.

मजीठिया की लड़ाई : श्रम विभाग अवैध कमाई का सबसे बड़ा जरिया, सीधे कोर्ट जाएं

सुप्रीम कोर्ट के आदेश के बाद भी मजीठिया न देना दैनिक भास्कर, जागरण के मालिकों के लिए गले का फंस बन सकता है। इन दोनों अखबारों के मालिक अपने अपने अखबारों के कारण ही खुद को देश का मसीहा समझते हैं। देश का कानून ये तोड़ मरोड़ देते हैं। प्रदेश व देश की सरकारें इनके आगे जी हजूरी करती हैं। लेकिन अब देखना होगा कि अखबार का दम इनका कब तक रक्षा कवच बना रहता है क्योंकि जनवरी में मानहानि के मामले में सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई है। कारपोरेट को मानहानि के मामले में सिर्फ जेल होती है। अब देखना होगा कि सहाराश्री के समान क्या अग्रवाल व गुप्ता श्री का भी हाल होता है या फिर मोदी सरकार अखबार वालों को कानून से खेलने की छूट देकर चुप्पी साध लेती है। मोदी सरकार पत्रकारों को मजीठिया दिलवाने के मामले में बेहद कमजोर सरकार साबित हुई है। मालिकों को सिर्फ नोटिस दिलवाने से आगे कुछ नहीं कर पाई।

जनसंदेश टाइम्‍स कर्मियों के उत्‍पीड़न मामले में मानवाधिकार आयोग ने दिया कार्रवाई का निर्देश

बनारस में जनसंदेश टाइम्‍स कर्मियों को वेतन नहीं दिये जाने और उत्‍पीड़न के मामले में राष्‍ट्रीय मानवाधिकार आयोग ने एक महत्‍वपूर्ण निर्देश देते हुए संबंधित अथार्टी (प्रशासन) को कड़ी कार्रवाई कर रिपोर्ट देने को कहा है। प्रशासन को कृत कार्रवाई की सूचना शिकायतकर्ता को भी देने का निर्देश जारी किया गया है। महीनों से वेतन नहीं देने और उसके लिए आवाज उठाने पर प्रबंधन द्वारा प्रताडि़त किये जाने के संबंध में मिली शिकायत (172302/सीआर/2014) को गंभीरता से लेते हुए एक दिसंबर को राष्‍टृीय मानवाधिकार आयोग द्वारा जारी आदेश में प्रशासन को इस संबंध में आठ सप्‍ताह के अंदर कार्रवाई कर रिपोर्ट देनी है।

‘पी7न्यूज’ में रमन पांडेय समेत कई वरिष्ठों की नो इंट्री, चैनल की कमान उदय सिन्हा को

जब लुटिया डूबती है तो हर कोई इसके आगोश में आ जाता है।  कुछ ऐसा हाल इन दिनों पर्ल्स ग्रुप के चैनल “पी7” का है। खिसयानी बिल्ली खम्बा नोचे वाली कहावत के तहत पी7 चैनल का मैनेजमेंट अपने कर्मचारियों के साथ बदतमीजी पर उतारू है। आउटपुट हेड रमन पांडेय समेत कई लोगों की चैनल में नो एंट्री कर दी गयी है। पीएसीएल ग्रुप सेबी के शिकंजे में जबसे फंसा है तबसे इसके मीडिया वेंचर का बुरा हाल है। चैनल की आर्थिक स्थिति कई महीनों से खराब है और लगातार बिगड़ती जा रही है।  वक्त से सैलरी न मिल पाने के कारण चैनल के साथ जी जान से काम करने वाले कर्मचारी परेशान हैं।

भास्कर चेयरमैन रमेश चंद्र अग्रवाल पर शादी का झांसा देकर देश-विदेश में रेप करने का आरोप (देखें पीड़िता की याचिका)

डीबी कार्प यानि भास्कर समूह के चेयरमैन रमेश चंद्र अग्रवाल के खिलाफ एक महिला ने शादी का झांसा देकर दुष्कर्म करने का आरोप लगाया है. इस बाबत उसने पहले पुलिस केस करने के लिए आवेदन दिया पर जब पुलिस वालों ने इतने बड़े व्यावसायिक शख्स रमेश चंद्र अग्रवाल के खिलाफ मुकदमा लिखने से मना कर दिया तो पीड़िता को कोर्ट का दरवाजा खटखटाना पड़ा. कोर्ट में पीड़िता ने रमेश चंद्र अग्रवाल पर कई गंभीर आरोप लगाए हैं. पीड़िता का कहना है कि रमेश चंद्र अग्रवाल ने उसे पहले शादी का झांसा दिया. कई जगहों पर शादी रचाने का स्वांग किया. इसके बाद वह लगातार संभोग, सहवास, बलात्कार करता रहा.

हेमलता अग्रवाल को मीडियाकर्मी दे रहे बददुवाएं, पैसा है नहीं तो चैनल काहें को ले आए?

कई लाला लोग ऐसे होते हैं जो केवल उगाही और साजिश के दम पर पैसा बटारने की ख्वाहिश रखते हैं और इसी मकड़जाल के सहारे अपना वेंचर आगे ला देते हैं. कुछ इन्हीं हालात में ‘भास्कर न्यूज‘ नामक चैनल आ रहा है जो आने को तो कई साल से आ रहा है लेकिन अभी तक टेस्ट सिगनल पर ही है. इस चैनल से खबर है कि यहां सेलरी संकट लगातार जारी है. इस चैनल में कार्यरत करीब सत्तर फीसदी लोगों को सेलरी नहीं मिली है.

मोदी को लेटर भेजने का असर : एमिटी के मालिक अशोक चौहान ने ग्रेच्युटी की रकम तो दी ही, माफी भी मांगी

Kavita Surbhi : नरेंद्र मोदी जी के प्रति नमन, जिन्होंने जनवाद के मार्ग को सबसे श्रेष्ठ माना। मैं एमिटी यूनिवर्सिटी से अपनी ग्रेच्युटी प्राप्त करने के लिए निरंतर संघर्ष कर रही थी। परिस्थितियां कुछ ऐसी थीं कि आर्थिक सहयोग की आवश्यकता थी और ग्रेच्युटी मेरा अधिकार भी था। विश्वविद्यालय को काफी मेल कीं। एमिटी के एकाउंट्स विभाग से लेकर फाउंडर श्री अशोक चौहान तक को। एकाउंट्स को फ़ोन करती, तो दादा कहा जाने वाला व्यक्ति कहता, मैडम, यहाँ साल-दो साल तक लोगों को अपनी रकम नहीं मिलती, अभी तो आपको सात महीने ही हुए हैं और चालीस हजार के लिए आप इतनी परेशान हैं?

एसजीपीजीआई लखनऊ के लापरवाह डॉक्टरों के खिलाफ न्यायिक युद्ध

Amitabh Thakur : शायद आपराधिक लापरवाही करने वाले डॉक्टरों से कानूनी लड़ाई आसान नहीं है. यह बात अपनी पत्नी ममता शुक्ला की मौत के मामले में न्याय पाने को संघर्षरत अलीगंज निवासी सुरेश चन्द्र शुक्ला हर कदम पर महसूस कर रहे हैं. हेपेटाइटिस-सी से पीड़ित सुश्री ममता की मौत एसजीपीजीआई, लखनऊ में हो रहे इलाज के दौरान हो गयी. श्री शुक्ला ने इसके लिए गैस्ट्रोइंटेरोलोजी विभाग के डॉ विवेक आनंद सारस्वत और डॉ श्रीजीथ वेणुगोपाल को दोषी बताया कि उन्होंने प्रयोग के तौर पर जानबूझ कर ट्रायल ड्रग थाइमोसीन अल्फा-1 इंजेक्शन दिया जिससे हड्डी का कैंसर होने की काफी सम्भावना रहती है और जो मात्र हेपेटाइटिस बी रोगियों के लिए अनुमन्य है.