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मोदी जी! इसके लिए ऑस्ट्रेलिया मत जाइए, महाराष्ट्र के डॉ. श्रीपाद दाभोलकर से मिलिए

Anil Singh : ऑस्ट्रेलिया के वैज्ञानिक क्यों, डॉ. दाभोलकर क्यों नहीं? प्रधानमंत्री मोदी कहते हैं, “मैं ऑस्ट्रेलिया गया। वहां की यूनिवर्सिटी के वैज्ञानिकों से मिला। किस काम के लिए मिला। मैंने कहा कि हमारे किसान खेती करते हैं, मूंग, अरहर और चने की खेती करते हैं, लेकिन एक एकड़ भूमि में जितनी पैदावार होनी चाहिए, उतनी नहीं होती।”

<p>Anil Singh : ऑस्ट्रेलिया के वैज्ञानिक क्यों, डॉ. दाभोलकर क्यों नहीं? प्रधानमंत्री मोदी कहते हैं, “मैं ऑस्ट्रेलिया गया। वहां की यूनिवर्सिटी के वैज्ञानिकों से मिला। किस काम के लिए मिला। मैंने कहा कि हमारे किसान खेती करते हैं, मूंग, अरहर और चने की खेती करते हैं, लेकिन एक एकड़ भूमि में जितनी पैदावार होनी चाहिए, उतनी नहीं होती।”</p>

Anil Singh : ऑस्ट्रेलिया के वैज्ञानिक क्यों, डॉ. दाभोलकर क्यों नहीं? प्रधानमंत्री मोदी कहते हैं, “मैं ऑस्ट्रेलिया गया। वहां की यूनिवर्सिटी के वैज्ञानिकों से मिला। किस काम के लिए मिला। मैंने कहा कि हमारे किसान खेती करते हैं, मूंग, अरहर और चने की खेती करते हैं, लेकिन एक एकड़ भूमि में जितनी पैदावार होनी चाहिए, उतनी नहीं होती।”

मोदी जी! इसके लिए ऑस्ट्रेलिया के किसी वैज्ञानिक के पास जाने की क्या ज़रूरत थी? महाराष्ट्र में कोल्हापुर के डॉ. श्रीपाद दाभोलकर दशकों पहले ‘दस गुंठा कृषि’ की ऐसी पद्धति विकसित कर चुके हैं जिसमें एक एकड़ से भी कम ज़मीन पर किसान का चार लोगों का परिवार बड़े मजे से गुजारा कर सकता है। इस प्राकृतिक कृषि की पद्धति पर नाबार्ड ने अलग से किताब भी छापी है।

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मोदी जी! अगर आप की नीयत में खोट और स्वभाव में नौटंकीबाज़ी नहीं होगी तो आप डॉ. दाभोलकर की पद्धति को पूरे देश के लघु व सीमांत किसानों तक पहुंचाकर उनका ही नहीं, सारे देश का भला करेंगे। वरना, इतिहास आपको अडानी, अम्बानी और विदेशी पूंजी के घनघोर दलाल के रूप में ही याद करेगा।

वरिष्ठ पत्रकार और अर्थकाम डाट काम के संपादक अनिल सिंह के फेसबुक वॉल से.

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