प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को मिले उपहारों की नीलामी हो रही है। यह खबर पढ़कर मुझे अच्छा लगा। इस नीलामी से मिलनेवाला पैसा ‘नमामि गंगे’ परियोजना में खर्च होगा। आज हमारे देश में नेताओं का जो हाल है, वह किसी से छिपा नहीं है। वे अपने स्वार्थ के लिए किसी भी चीज़ को नीलाम कर सकते हें।
राष्ट्रपति और प्रधानमंत्री को मिलनेवाले उपहारों के बारे में कायदा यह है कि वे सरकारी तोशाखाने में जमा कर दिए जाते हैं लेकिन मुझे कुछ राष्ट्रपतियों और प्रधानमंत्रियों के बारे में व्यक्तिगत जानकारी है कि उनके घर के लोग इन उपहारों में से कई उपहार अपने पास छिपा लेते हैं लेकिन नरेंद्र मोदी अकेले ऐसे प्रधानमंत्री हैं, जिनके साथ उनके परिवार का कोई भी सदस्य नहीं रहता।
शायद वे ऐसे पहले प्रधानमंत्री हैं, जो अपने उपहारों की खुले-आम नीलामी करवा रहे हैं। यह कम खुशी की बात नहीं है कि इन उपहारों को खरीदने के लिए सैकड़ों लोग नेशनल गैलरी आॅफ माडर्न आर्ट में पहुंच रहे हैं। वे 100 रु. मूल्य की चीज के हजार रु. तक देने को सहर्ष तैयार हो रहे हैं, क्योंकि वे मानते हैं कि उनका यह पैसा जनता की सेवा के काम में लगेगा। मैं तो कहता हूं कि नरेंद्र भाई को अपनी बंडियां और कुर्ते-पाजामे भी नीलामी पर लगा देने चाहिए। उनके पास तो इनके सैकड़ों जोड़े होंगे। तीन-चार महिने बाद वे किसी काम के नहीं रहेंगे।
उनसे अभी तो करोड़ों रु. प्राप्त हो जाएंगे, जिनका सदुपयोग गरीबों के लिए हो जाएगा। उनकी इस पहल से करोड़ रुपए ही नहीं, करोड़ों लोगों की दुआएं और सराहना भी उन्हें मिलेगी। यह पहल देश के सभी नेताओं के लिए एक मिसाल बन जाएगी। राष्ट्रपतियों और प्रधानमंत्रियों के पास भेंट में आई असंख्य पुस्तकों का भी ढेर लग जाता है। उनमें न तो उनकी कोई रुचि होती है और न ही उनको फुर्सत होती है कि वे उन्हें पढ़े। क्या ही अच्छा हो कि वे सारी पुस्तकें भी वे किसी अच्छे ग्रंथालय को भेंट कर दें। मैंने पिछले 65 साल में देश-विदेश से लाकर जमा की गई अपनी हजारों पुस्तकें हाल ही में कुछ संस्थाओं को भेंट कर दीं। इससे मुझे बड़ा संतोष मिला। अनेक दुर्लभ और कीमती ग्रंथ आगे आनेवाली पीढ़ियों के काम आएंगे। दूसरों का तो इससे लाभ होगा ही, उससे भी बड़ा अपना खुद का लाभ होगा। अपरिग्रह का आनंद मिलेगा। संसार में रहकर संन्यास के सुख की अनुभूति होगी।
लेखक डॉ. वेदप्रताप वैदिक देश के वरिष्ठ पत्रकार और स्तंभकार हैं.
Dr. Ashok Kumar Sharma
January 30, 2019 at 3:59 am
बढ़िया आलेख। सिर्फ इस अंश से असहमत, “तीन-चार महीने बाद वे किसी काम के नहीं रहेंगे।” यह समय ही सिद्ध करेगा।