-डॉ. वेदप्रताप वैदिक-
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने आरोप लगाया है कि ‘एक परिवार’ उनके काम में बाधा डाल रहा है। वह अपनी पराजय का बदला ले रहा है। वह राज्यसभा में कई महत्वपूर्ण विधेयकों को पारित नहीं होने दे रहा है। यदि वे विधेयक कानून बन जाते तो लाखों मजदूरों को बोनस मिलने लगता, सारे देश में एक रूप सेवा कर प्रणाली लागू हो जाती, जल यातायात कानून बनने पर दर्जनों नदियां सड़कों की तरह उपयोगी बन जातीं, किसानों के हितों की रक्षा होती।
मोदी ने जो आरोप लगाया हैं वे गहरी निराशा के परिणाम हैं। यदि वे बहुत झुंझलाए हुए नहीं होते तो वे ऐसे तीखे आरोप नहीं लगाते। उनके आरोप सही हैं लेकिन असली सवाल यह है कि कांगेस जो कुछ कर रही है, वैसा वह क्यों नहीं करें? कांग्रेस आखिरकार, विपक्ष में है। प्रमुख विपक्षी दल है। यदि वह हर बात में सरकार की टांग न खींचे तो वह कैसी विपक्षी पार्टी है?
कांग्रेस के पास आज है ही क्या? उसके पास न तो कोई नेता है, न कोई नीति है, न विचारधारा है, न सिद्धांत है, न दिशा है। वह करे तो करे क्या? यदि वह हर बात का विरोध न करे तो उसके पास काम ही क्या रह जाएगा? देश के लोग कांग्रेस की इस मजबूरी को अच्छी तरह समझते हैं। मोदी को खैर मनानी चाहिए कि कांग्रेस के पास डॉ. लोहिया जैसा नेता नहीं है। वरना 40 तो क्या, 4-5 सांसद ही काफी होते, इस सरकार की खाट खड़ी करने के लिए!
मोदी की झुंझलाहट का असली कारण कांग्रेस नहीं खुदी मोदी ही हैं। चुनाव-अभियान के दौरान उन्होंने जो सब्ज-बाग सजाया था, दो साल पूरे होने आए लेकिन उनके पेड़ों पर कोई फल दिखाई नहीं पड़ रहे। न काला धन लौटा, न भ्रष्टाचार घटा, न करोड़ों रोजगार पैदा हुए, न मंहगाई घटी, न अंग्रेजी का शिकंजा ढीला हुआ, न जातिवाद की आग ठंडी पड़ी, न सांप्रदायिकता घटी, न आतंकवाद से छुटकारा मिला, न गरीबों को राहत मिली। लोग नरेंद्र मोदी को नहीं कोस रहे हैं। वे खुद को कोस रहे हैं। वे खुद से पूछ रहे है कि वे इतना तगड़ा धोखा कैसे खा गए? उन्होंने इतना भरोसा क्यों कर लिया? वे आशाओं की इस हवाई कुतुब मीनार पर क्यों चढ़ गए?