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सियासत

महंगाई के मोर्चे पर मोदी का झूठ उन्हें दीमक की तरह खत्म कर देगा

Dayanand Pandey : एक बात तो है कि मोदी विरोधियों का विरोध अब पूरी तरह मिमियाहट में बदल गया है। ऐसे जैसे विरोधियों के पास मुंह ही नहीं रह गया हो। रस्मी रायता की भी आख़िर एक मियाद होती है । एक बात और मोदी यह कतई गलत नहीं कह रहे कि कुछ लोगों के लिए बुरे दिन आ गए हैं। घोटाले में आकंठ डूबी कांग्रेस से अब सेक्यूलरिज्म की लफ्फाज़ी वाली कागज़ी तलवार भी कहीं गुम हो गई है। बाक़ी तो सब ठीक है पर मंहगाई के मोर्चे पर मोदी का झूठ उन्हें दीमक की तरह खत्म कर देगा, यह मोदी को अपनी तमाम बाजीगिरी के बावजूद जान ही लेना चाहिए।

<p>Dayanand Pandey : एक बात तो है कि मोदी विरोधियों का विरोध अब पूरी तरह मिमियाहट में बदल गया है। ऐसे जैसे विरोधियों के पास मुंह ही नहीं रह गया हो। रस्मी रायता की भी आख़िर एक मियाद होती है । एक बात और मोदी यह कतई गलत नहीं कह रहे कि कुछ लोगों के लिए बुरे दिन आ गए हैं। घोटाले में आकंठ डूबी कांग्रेस से अब सेक्यूलरिज्म की लफ्फाज़ी वाली कागज़ी तलवार भी कहीं गुम हो गई है। बाक़ी तो सब ठीक है पर मंहगाई के मोर्चे पर मोदी का झूठ उन्हें दीमक की तरह खत्म कर देगा, यह मोदी को अपनी तमाम बाजीगिरी के बावजूद जान ही लेना चाहिए।</p>

Dayanand Pandey : एक बात तो है कि मोदी विरोधियों का विरोध अब पूरी तरह मिमियाहट में बदल गया है। ऐसे जैसे विरोधियों के पास मुंह ही नहीं रह गया हो। रस्मी रायता की भी आख़िर एक मियाद होती है । एक बात और मोदी यह कतई गलत नहीं कह रहे कि कुछ लोगों के लिए बुरे दिन आ गए हैं। घोटाले में आकंठ डूबी कांग्रेस से अब सेक्यूलरिज्म की लफ्फाज़ी वाली कागज़ी तलवार भी कहीं गुम हो गई है। बाक़ी तो सब ठीक है पर मंहगाई के मोर्चे पर मोदी का झूठ उन्हें दीमक की तरह खत्म कर देगा, यह मोदी को अपनी तमाम बाजीगिरी के बावजूद जान ही लेना चाहिए।

मंहगाई को ले कर जनता में बहुत गुस्सा है। सरकारी आंकड़ों में तो मनमोहन सरकार भी मंहगाई कम ही बताती थी, मोदी सरकार इस मामले में मनमोहन से भी बहुत आगे है। मंहगाई का कैंसर मोदी का काल बनने जा रहा है फ़िलहाल! मोदी की साल भर की कमाई और उपलब्धि यह महंगाई ही है। खाने-पीने की चीजों के दाम मनमोहन सरकार से भी ज़्यादा हो गया है मोदी सरकार में। दाल, सब्ज़ी, दूध, अनाज सब में। जनता पहले खाना मांगती है, जीवन बीमा और कफन बाद में उसके परिजन देखते हैं, ज़िंदा आदमी नहीं। ज़िंदा आदमी तो पेट भर भोजन न मिलने पर वोट दे कर सरकार बदल देता है। शौचालय भी उसे रोटी दाल खाने के बाद ही सूझता है, पहले नहीं। तो रोटी, चावल, दाल, सब्ज़ी के दाम पहले ठीक करो मिस्टर नरेंद्र मोदी। शौचालय, कफन, बीमा आदि की लफ्फाज़ी बाद में देख सुन लेंगे! या लोकसभा में इस नपुंसक विपक्ष को कभी सुना देना, हम भी सुन लेंगे!

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Ravindra Ranjan : “12 रुपये में कफन भी नहीं मिलता, मैं बीमा दे रहा हूं” इस कथन पर गंभीरता पूर्वक विचार कीजिए आपको इस शख्स की मनोस्थिति और स‌ोच का अंदाजा हो जाएगा. बीमा की तुलना कफ़न स‌े करने वाले व्यक्ति की नज़र में आम जनता की क्या अहमियत है, अब बताने की जरूरत नहीं है.

Sheetal P Singh : दो पार्टियाँ दो व्यक्ति दो आचरण… एक साल बनाम सौ दिन…  पहले ने एक लाख लोगों को पकड़ मँगाया और दूर बहुत ऊँचे मंच से भाषण पिलाया और उड़ लिया। घोषणापत्र के वादे / भविष्य के कार्यक्रम, चुनावी सभाओं में विरोधियों को कोसने वाले मोनोलॉग के हवाले रहे। साल भर बाद! दूसरे ने बीच शहर खुले मैदान में मजमा बुलाया। सारे मंत्री और ख़ुद अवाम के सवालों और किये गये कामों के हिसाब किताब के साथ “लोक आकलन ” के लिये प्रस्तुत। घंटों डायलाग चला सौवें दिन! तय करें मोनोलॉग V/S डायलाग.

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पत्रकार त्रयी दयानंद पांडेय, रवींद्र रंजन और शीतल पी सिंह के फेसबुक वॉल से.

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