मध्यप्रदेश जनसंदेश अंतिम सांसे ले रहा है। वजह महैर वाले बाबू साहब द्वारा अखबार से हाथ खींच लेना है। पैसा उनका था और मजे ले रहे थे छोटे कारोबारी। इस अखबार की उल्टी गिनती तो उसी दिन शुरू हो गयी थी जब बाबू साहब की आटा मिल को प्रशासन ने सील कर दिया था। अखबार के जीएम अजय सिंह बिसेन को सेटिंग-गेटिंग की जिम्मेदारी सौंपी गयी थी। लेकिन अनुभवहीन बिसेन कुछ कर पाने में नाकाम रहे। अंतत: महैर वाले बाबू साहब किसी तरह आटा मिल का ताला खुलवाने में कामयाब हो गए।
इसके बाद उनका मन अखबार से भंग होने लगा। फंडिंग कम कर दी। ऐसे में कर्मचारियों को लेट-लतीफ वेतन मिलने लगा। जीएम अपनी नौकरी बचाने के लिए कर्मचारियों को बाहर का रास्ता दिखाने लगे। वह भी बिना किसी पूर्व सूचना के। प्रबंधन के इस व्यवहार से अन्य कर्मचारियों में भय छा गया और धीरे-धीरे कर लोग नौकरी छोड़ने लगे। कुछ लोग नौकरी पर संकट आने के बाद जीएम की जी हजूरी कर बच गए थे लेकिन अब फिर ऐसा माहौल खड़ा किया गया कि उन्हें नौकरी ही छोड़नी पड़ी। उधर, संपादक राजेश श्रीनेत के विदाई के चर्चे होने लगे हैं। इनके लाए ज्यादातर लोग एक एक कर निपटाए जा चुके हैं या खुद जा चुके हैं।
राजेश श्रीनेत को हटाए जाने के संकेत प्रबंधन ने दे दिए हैं। प्रबंधन चाहता है कि वो खुद चले जाएं। पर राजेश श्रीनेत्र बड़ी ढिठाई से संपादक की कुर्सी पर जमे हुए हैं। उनका सारा ध्यान अखबार की तरफ न होकर गैर-अखबारी और आफिस के बाहर के क्रिया कलापों में ज्यादा रहता है। कुछ मिलाकर मध्यप्रदेश जनसंदेश की हालत खस्ता है। न अखबार का प्रसार बढ पा रहा है न ही विज्ञापन। इसके पीछे संपादक के साथ-साथ जीएम भी जिम्मेदार हैं, क्योंकि जिस कुर्सी पर उन्हें बैठाया गया है, उसके लायक हैं ही नहीं। उनका ध्यान प्रबंधन की तरफ न होकर संपादकीय पर ज्यादा रहता है। जब प्रबंधन यह तय करने लगे कि किसी पेज पर कौन सी खबर लगेगी, तो उस अखबार का भगवान ही मालिक है। इसी तरह जो संपादक महोदय हैं वो सिर्फ कुर्सी तोड़ेंगे तो अखबार का भट्ठा बैठना तय है क्योंकि अखबार का घाटा दिन प्रतिदिन बढ़ता जाएगा और अखबार एक दिन बंद होने को मजबूर हो जाएगा।
एक पत्रकार द्वारा भेजे गए पत्र पर आधारित.
anoop mishra
September 24, 2015 at 1:05 am
madhya pradesh jansandesh ka ravi prakesh maurya bhaut paisa daker gaya hai veses sutra say pata chala hai