अंतत: कैलाश विजयवर्गीय नई दिल्ली पहुंच ही गए और अब वे प्रदेश की बजाय राष्ट्रीय राजनीति में सक्रिय होंगे। कल शाम भाजपा आलाकमान ने उन्हें राष्ट्रीय महासचिव का महत्वपूर्ण जिम्मा सौंप दिया। पर्दे के पीछे का राजनीतिक सच यह भी है कि प्रदेश की राजनीति से कैलाश विजयवर्गीय को बाहर रखने के इच्छुक मुख्यमंत्री शिवराजसिंह चौहान भी थे। ताई और भाई का झगड़ा भी पुराना चलता रहा है, लिहाजा लोकसभा अध्यक्ष के रूप में ताकतवर हो चुकी श्रीमती सुमित्रा महाजन यानि ताई ने भी इस मामले में पर्दे के पीछे सक्रिय भूमिका निभाई। दिल्ली दरबार ने भी इस निर्णय से पहले मुख्यमंत्री से सलाह मशवरा करते हुए उन्हें पूरी तवज्जो भी दी। दिल्ली स्थित राजनीतिक सूत्रों का यह भी कहना है कि इंदौर और भोपाल से कैलाश विजयवर्गीय का बोरिया-बिस्तर बंधवाने में शिवराज की भूमिका भी महत्वपूर्ण रही है।
पिछले कई दिनों से मुख्यमंत्री शिवराजसिंह चौहान और उनके काबिना मंत्री कैलाश विजयवर्गीय के बीच जमकर टसल चल रही है। हालांकि पूर्व में भी इस तरह के गोरिल्ला युद्ध दोनों के बीच हो चुके हैं और फिर समझौते भी होते रहे, मगर पिछले दिनों जो दरार पड़ी वह बाद में सुधरने की बजाय बढ़ती ही गई और यही कारण है कि अभी तमाम तबादलों से लेकर अन्य निर्णयों में कैलाश विजयवर्गीय को कम ही तवज्जो मिली। यहां तक कि इंदौर में ही नगर निगम से लेकर प्राधिकरण में जो तबादले किए गए उनमें भी उनकी भूमिका शून्य कर दी गई, जबकि वे विभागीय मंत्री हैं। यहां तक कि सिंहस्थ के महा आयोजन से भी मुख्यमंत्री ने अभी तक श्री विजयवर्गीय को दूर ही रखा है। हालांकि उनके निकटस्त साथियों का कहना है कि अब श्री विजयवर्गीय को सिंहस्थ की जिम्मेदारी भी दिल्ली दरबार के निर्देश पर मिल सकती है।
इधर हरियाणा चुनाव के बाद से ही यह कयास लगाए जाते रहे कि श्री विजयवर्गीय को भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष अमित शाह अब मध्यप्रदेश की बजाय दिल्ली की राजनीति में सक्रिय करना चाहते हैं और उन्हें महासचिव का पद दिया जाएगा। हालांकि इस निर्णय में भी विलंब होता रहा और कल अंतत: शाम को पार्टी स्तर पर इसकी अधिकृत घोषणा की गई। श्री विजयवर्गीय के समर्थकों ने तो तुरंत ही आतिशबाजी करते हुए मिठाईयां भी बांट दीं और इसे श्री विजयवर्गीय के लिए बड़ी उपलब्धि भी बताया जा रहा है, लेकिन अंदर खानों की खबर यह है कि प्रदेश की राजनीति में चूंकि बार-बार मुख्यमंत्री की कुर्सी को डांवाडोल करने के प्रयास किए जाते रहे, क्योंकि श्री विजयवर्गीय को मुख्यमंत्री पद का प्रबल दावेदार माना जाता रहा है और अब समर्थकों का भी कहना है कि राष्ट्रीय महासचिव बनने के बाद अब भविष्य में श्री विजयवर्गीय के मुख्यमंत्री बनने की संभावना बढ़ जाएगी, क्योंकि नई दिल्ली में रहते हुए वे उच्च स्तरीय संबंध बना लेंगे और शिवराजसिंह चौहान भी पहले महासचिव ही हुआ करते थे।
इधर पार्टी आलाकमान से लेकर प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने भी इस फैसले से पहले मुख्यमंत्री शिवराजसिंह चौहान से पर्याप्त सलाह-मशविरा किया। यह एक संयोग है कि शाम को श्री विजयवर्गीय की महासचिव बनाए जाने की घोषणा होती है और उसके पहले मुख्यमंत्री नई दिल्ली जाकर प्रधानमंत्री श्री मोदी से भी चर्चा करते हैं। यानि दिल्ली दरबार ने मुख्यमंत्री को भरोसे में लेकर ही श्री विजयवर्गीय को महासचिव बनाने का निर्णय लिया। अब शिवराज भी निश्चिंतता से काम कर सकेंगे, क्योंकि उनके पीछे ताई का भी वरदहस्त है। अब देखना यह होगा कि आने वाले दिनों में श्री विजयवर्गीय अपने महासचिव पद का कितना लाभ भविष्य के लिए ले पाते हैं? फिलहाल तो उन्होंने भी एक रिस्क सत्ता छोडऩे की ली है।
निगम-प्राधिकरण में भी असर घटेगा
अभी तक कैलाश विजयवर्गीय का खेमा इंदौर के साथ-साथ प्रदेश की राजनीति में भी शक्तिशाली माना जाता रहा है, क्योंकि पिछले 12 सालों से श्री विजयवर्गीय विभिन्न विभागों के काबिना मंत्री रहे हैं। इंदौर की बात की जाए तो यहां भी उनका एकछत्र राज रहा है और नगर निगम से लेकर प्राधिकरण में तो तूती बोलती ही रही और अभी तो वे इन विभागों के मंत्री भी हैं, लेकिन अब मंत्री पद छोडऩे के बाद संभव है कि नगर निगम के साथ-साथ प्राधिकरण में भी उनका और उनके समर्थकों का असर घट जाए, क्योंकि अभी तो मंत्री होने के नाते अफसर और कर्मचारी अधिक तवज्जो देते रहे हैं।
अफसरों के साथ श्री विजयवर्गीय और उनके समर्थकों की पटरी कम ही बैठती आई है। यहां तक कि कलेक्टर से लेकर निगम आयुक्त और प्राधिकरण सीईओ के मामले में तो यह अक्सर होता रहा है और पुलिस विभाग के भी आला अफसरों से उनके कम पंगे नहीं हुए। मुख्यमंत्री शिवराजसिंह चौहान ने भी इंदौर में अफसरों की नियुक्ति को लेकर श्री विजयवर्गीय की पसंद को हाशिए पर ही रखा और जिनसे उनका पंगा रहा उन्हीं अफसरों को ज्यादातर इंदौर में पदस्थ किया जाता रहा। कल भी एक आला अधिकारी ने अनौपचारिक चर्चा में यही कहा कि अब श्री विजयवर्गीय खेमे का दबदबा कम रहेगा और कई अफसरों को तो उनके मंत्री पद त्यागने का भी इंतजार है ताकि वे उनसे संबंधित विभागों में कड़े फैसले ले सकें। अभी तो मंत्री होने के कारण समर्थकों की भी सुनना पड़ती है।
कैलाश विजयवर्गीय में सामथ्र्य तो जबरदस्त है। हालांकि विवादों से भी उनका पुराना नाता रहा है। यही कारण है कि वे मुख्यमंत्री पद की दौड़ में भी आगे रहते हुए भी पीछे हो गए। अलबत्ता इंदौर के महापौर के अलावा वे पिछले 12 सालों से काबिना मंत्री रहे हैं और तमाम विभागों का मंत्री पद उन्होंने संभाला। यह बात अलग है कि सत्ता में रहते हुए वे अपने सामथ्र्य के मुताबिक परिणाम नहीं दे पाए। यहां तक कि पिछले डेढ़ सालों से वे नगरीय प्रशासन और विकास मंत्री हैं, लेकिन इंदौर शहर का ही बिगड़ा ढर्रा नहीं सुधार पाए और नगर निगम के साथ-साथ प्राधिकरण भी चौपट होता रहा। अब देखना यह है कि सत्ता की बजाय वे संगठन में कितने सफल साबित होते हैं? वैसे उनमें नेतृत्व करने का गुण अधिक है और कार्यकर्ताओं की सबसे लम्बी-चौड़ी फौज भी उन्हीं के पास है। लिहाजा संभव है कि सत्ता की बजाय वे संगठन में अधिक सफल साबित हों।
इंदौर के सांध्य दैनिक अग्निबाण से संबद्ध लेखक राजेश ज्वेल से संपर्क : 9827020830, jwellrajesh@yahoo.co.in