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उत्तर प्रदेश

मुलायम की हालत सांप छछूंदर वाली!

कहा जा रहा है कि बाप-बेटे की भावुक राजनीति सपा को बचा लेगी। वैसे यह भी सच है कि इन दिनों नेता जी मुलायम सिंह यादव की हालत साँप छछूंदर वाली हो गयी है। भाई का साथ देते है तो बेटा नाराज और बेटे के साथ जाते है तो भाई के साथ धोखा।  नेता जी ऐसा चाहते भी नहीं।  वे तो सबको लेकर चलना चाहते है और पार्टी को आगे ले जाने के लिए ही सब कुछ कर रहे है। लेकिन हो कुछ भी नहीं रहा है। नेता जी के लिए सब अपने ही है लेकिन सबको मुलायम सिंह की फ़िक्र नहीं है।  सपा के लिए नेता जी वट  वृक्ष की तरह है लेकिन इस वृक्ष की सभी टहनियां अलग होने पर आमदा है। लेकिन एक बात तय है की बाप बेटे की भावुक राजनीति सपा को बचा ले जायेगी। यही वजह है की सपा में संग्राम जारी होने के बावजूद अभी तक टूट की कहानी से सब बच रहे है। 

<p>कहा जा रहा है कि बाप-बेटे की भावुक राजनीति सपा को बचा लेगी। वैसे यह भी सच है कि इन दिनों नेता जी मुलायम सिंह यादव की हालत साँप छछूंदर वाली हो गयी है। भाई का साथ देते है तो बेटा नाराज और बेटे के साथ जाते है तो भाई के साथ धोखा।  नेता जी ऐसा चाहते भी नहीं।  वे तो सबको लेकर चलना चाहते है और पार्टी को आगे ले जाने के लिए ही सब कुछ कर रहे है। लेकिन हो कुछ भी नहीं रहा है। नेता जी के लिए सब अपने ही है लेकिन सबको मुलायम सिंह की फ़िक्र नहीं है।  सपा के लिए नेता जी वट  वृक्ष की तरह है लेकिन इस वृक्ष की सभी टहनियां अलग होने पर आमदा है। लेकिन एक बात तय है की बाप बेटे की भावुक राजनीति सपा को बचा ले जायेगी। यही वजह है की सपा में संग्राम जारी होने के बावजूद अभी तक टूट की कहानी से सब बच रहे है। </p>

कहा जा रहा है कि बाप-बेटे की भावुक राजनीति सपा को बचा लेगी। वैसे यह भी सच है कि इन दिनों नेता जी मुलायम सिंह यादव की हालत साँप छछूंदर वाली हो गयी है। भाई का साथ देते है तो बेटा नाराज और बेटे के साथ जाते है तो भाई के साथ धोखा।  नेता जी ऐसा चाहते भी नहीं।  वे तो सबको लेकर चलना चाहते है और पार्टी को आगे ले जाने के लिए ही सब कुछ कर रहे है। लेकिन हो कुछ भी नहीं रहा है। नेता जी के लिए सब अपने ही है लेकिन सबको मुलायम सिंह की फ़िक्र नहीं है।  सपा के लिए नेता जी वट  वृक्ष की तरह है लेकिन इस वृक्ष की सभी टहनियां अलग होने पर आमदा है। लेकिन एक बात तय है की बाप बेटे की भावुक राजनीति सपा को बचा ले जायेगी। यही वजह है की सपा में संग्राम जारी होने के बावजूद अभी तक टूट की कहानी से सब बच रहे है। 

मुलायम सिंह यादव ने महाबैठक बुलाई तो संग्राम सड़क तक आ गया।  सपा कार्यालय के बाहर अखिलेश यादव और शिवपाल यादव के समर्थकों के बीच जमकर नारेबाजी और हाथापाई हुई।  पुलिस ने समर्थकों को तितर-बितर करने के लिए बल का प्रयोग किया। महाबैठक में मुलायम सिंह ने अखिलेश यादव पर जमकर हमला बोला और मुलायम के कहने से अखिलेश और शिवपाल यादव गले मिले।   हालांकि मुलायम के बोलने के दौरान दोनों के बीच बहस की भी खबर है। चचा भतीजा के बीच की राजनीति में मुलायम सिंह फस से गए है।

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मुलायम सिंह यादव ने कल महाबैठक में कहा कि शिवपाल यादव बड़े नेता हैं। पार्टी में टकराव से दुखी हूं। लोहिया जी के दिखाए मार्ग पर आगे चलें। उन्होंने आगे कहा कि जरूरत पड़ी तो हम जेल जाने से भी पीछे नहीं हटे। पार्टी बनाने के लिए बहुत संघर्ष किया। हम जेल भी गए कोई नहीं जानता। साथ ही उन्होंने पार्टी नेताओं को हिदायत दी की ज्यादा बढ़-चढ़कर बातें नहीं करें।  जो उछल रहे हैं, वे एक भी लाठी नहीं झेल सकते।  हमें अपनी कमजोरियां दूर करनी चाहिए। हम कमजोरी दूर करने के बजाय लड़ने लगे।

मुलायम सिंह यादव ने इशारों में साफ कहा कि पद मिलते ही दिमाग खराब हो गया। अगर आलोचना सही है तो सुधरने की जरूरत है। कुछ नेता केवल चापलूस हैं। नारेबाजी करने वाले बाहर होंगे।  उन्होंने कहा कि मैं पीएम बन सकता था, लेकिन समझौता नहीं किया। ऐसा नहीं है कि युवा मेरे साथ नहीं हैं, मैंने युवाओं को टिकट दिया है। मुलायम ने कहा, मेरे भाई हैं अमर सिंह। तुम्हारी हैसियत क्या है जो उन्हें गाली देते हो। अमर सिंह ने हमें कई बार बचाया है। शिवपाल और अमर सिंह के खिलाफ नहीं सुन सकता। शिवपाल और अमर सिंह का साथ कभी नहीं छोड़ूंगा।

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कार्यकर्ताओं को संबोधित करते हुए अखिलेश यादव ने भावुक होकर कहा कि मैं नई पार्टी क्यों बनाऊंगा? मैं भी किधर जाऊंगा, मैं बर्बाद हो जाऊंगा। नेताजी मेरे लिए गुरु हैं, वह चाहें तो मुझे पार्टी से बाहर निकाल सकते हैं। वह कहते तो मैं इस्तीफा दे देता। अखिलेश ने अमर सिंह पर निशाना साधा और कहा कि पार्टी के खिलाफ साजिश करने वालों के खिलाफ बोलूंगा। वहीं शिवपाल यादव ने समर्थकों को संबोधित करते हुए आरोप लगाया कि अखिलेश ने अलग पार्टी बनाकर दूसरे दल के साथ चुनाव लड़ने की बात कही है। मैं कसम खाकर कहता हूं कि अखिलेश ने यह बात कही थी। क्या मैंने सीएम अखिलेश से कम काम किया है। मेरे विभाग छीने गए पर मेरा कसूर क्या था। मैंने सीएम और नेताजी के हर आदेश को माना। पार्टी में कुछ लोग सत्ता की मलाई चाट रहे हैं। हमने पार्टी बनाने के लिए संघर्ष किया। क्या सरकार में मेरा योगदान नहीं है। अब नेताजी नेतृत्व संभालें।

दरअसल, समाजवादी पार्टी किस रास्ते की ओर बढ़ रही है, यह प्रश्न अभी भी अनुत्तरित है, क्योंकि इस दल में जारी सत्ता संघर्ष किसी ठोस नतीजे की शक्ल नहीं ले सका है। बीते लगभग एक माह से इस दल में करीब-करीब हर दिन कुछ न कुछ अप्रत्याशित हो रहा है। गत दिवस मुख्यमंत्री अखिलेश यादव ने चाचा शिवपाल सिंह और उनके कुछ साथियों को मंत्रिमंडल से बाहर का रास्ता दिखा दिया। इसके कुछ देर बाद उनके दूसरे चाचा रामगोपाल यादव पार्टी से बाहर कर दिए गए। उनके निष्कासन की सूचना देने के साथ ही शिवपाल सिंह ने उन पर कई तरह के आरोप भी मढ़े। शिवपाल और रामगोपाल के खिलाफ कार्रवाई से इसकी तो पुष्टि हो गई कि सपा में इस कलह का एक कारण इन दोनों के बीच तनातनी भी है, लेकिन अभी यह सार्वजनिक होना शेष है कि मुलायम सिंह और अखिलेश यादव के बीच किन बातों को लेकर मतभेद हैं और वे कितने गंभीर हैं। यह भी अस्पष्ट ही है कि मतभेद बाहरी लोगों की वजह से हैं, जैसा कि अखिलेश बता रहे हैं या फिर अंदर यानी परिवार के लोगों के कारण, जैसा पार्टी के कुछ विधायक रेखांकित कर रहे हैं।

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जैसे कल तक निगाहें मुख्यमंत्री अखिलेश यादव की ओर से बुलाई गई बैठक की ओर थीं वैसे ही अब मुलायम सिंह की ओर हैं। कहना कठिन है कि क्या कुछ होता है और ऐसे कोई फैसले लिए जाते हैं या नहीं, जिनसे पार्टी को चपेट में लेने वाली परिवार की लड़ाई का पटाक्षेप हो। मगर यह साफ है कि यदि उठापटक का सिलसिला इसी तरह कायम रहा तो सपा को नुकसान होना तय है। किसी दल में सत्ता और संगठन के लोगों के बीच कलह का यह पहला मामला नहीं। अतीत में कांग्रेस समेत अन्य अनेक सियासी दल ऐसी कलह से दो-चार हो चुके हैं और उनसे यही स्पष्ट हुआ है कि अंतत: संगठन के लोग ही पराजित नजर आए हैं। पता नहीं सपा में क्या होगा, लेकिन इसमें दोराय नहीं कि आज के दिन इस पार्टी की सबसे बड़ी ताकत मुख्यमंत्री अखिलेश ही हैं।

तमाम समस्याओं, बाधाओं और आरोप-प्रत्यारोप के बावजूद उन्होंने विनम्र एवं विवादों से दूर रहने वाले नेता की छवि अर्जित की है। उनकी इस छवि की अनदेखी करने की स्थिति में कोई भी नहीं। यह भी उल्लेखनीय है कि अब वैसी राजनीति के लिए स्थान और भी कम हो गया है, जिसका प्रतिनिधित्व मुलायम सिंह और शिवपाल करते चले आ रहे हैं। पिछले एक माह में यह दूसरी बार है जब अखिलेश ने यह साबित करने की कोशिश की है कि सत्ता की कमान उनके हाथ में है और वह पार्टी के हित में कठोर फैसले लेने में भी सक्षम हैं। आम जनता जिस तरह साफ-सुथरी छवि वाले नेताओं की मुरीद होती है, वैसे ही इसकी भी कि नेता कठोर फैसले ले सकने में सक्षम है या नहीं? भले ही दोनों पक्षों की ओर से जवाबी कार्रवाई के बाद भी सपा टूट की ओर बढ़ती नहीं दिख रही, लेकिन यह भी ठीक नहीं कि कलह सतह पर बनी हुई है।

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सपा की लड़ाई अपनी है लेकिन उस लड़ाई में कई सियासी पार्टी चुनावी गणित खोज रहे हैं। खोजना भी चाहिए। सभी खोजते हैं। सपा की लड़ाई भी जब सियासी खेल पर ही आधारित है तो फिर अन्य दल इस खेल में राजनितिक लाभ क्यों न देखे। बीजेपी की अपनी रणनीति है और बसपा की। अगर सपा के भीतर टूट की कहानी बनती है तो साफ़ है इसका सबसे ज्यादा लाभ बसपा और कांग्रेस को मिलेगा। मुस्लिम वोटर बीजेपी को हारने के लिए बसपा और जहां कांग्रेस मजबूत है उसके साथ चला जाएगा। 

लेखक अखिलेश अखिल वरिष्ठ पत्रकार और राजनीतिक विश्लेषक हैं.

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