लखनऊ से अनूप गुप्ता के संपादकत्व में निकलने वाली चर्चित मैग्जीन दृष्टांत में जो कवर स्टोरी है, वह पठनीय तो है ही, आंख खोल देने वाली भी है. जिस अखिलेश यादव के ढेर सारे लोग प्रशंसक हैं और उनमें जाने कौन कौन से गुण देखते हैं, उसी के शासनकाल में जो लूटराज अबाध निर्बाध गति से चला है, वह हैरतअंगेज है. अब जबकि चुनाव में चार दिन शेष रह गए हैं तो सब के सब पवित्र और पुण्यात्मा बन सत्ता व संगठन के लिए मार कर रहे हैं ताकि जनता मूल मुद्दों से भटक कर इनमें उनमें नायकत्व तलाशे. नीचे पूरी कवर स्टोरी है ताकि आप सबकी समझदानी में लगा झाला खत्म हो सके.
-यशवंत, एडिटर, भड़ास4मीडिया
उत्तर प्रदेश का लूटकाल
अनूप गुप्ता
लगभग ढाई दशकों से तथाकथित अंगूठा छाप नेता परियोजनाओं की आड़ में यूपी का खजाना लूटते रहे। जिन नौकरशाहों के हाथ में लूट को रोकने की जिम्मेदारी थी, वे भी लूट की बहती गंगा में हाथ धोते रहे। परिणामस्वरूप जनता की गाढ़ी कमाई से भरा सरकारी खजाना खाली होता चला गया और नौकरशाहों से लेकर खादीधारियों के निजी खजाने लबालब होते चले गए। सूबे का विकास केन्द्रीय सरकारों की भीख पर निर्भर होने लगा तो दूसरी ओर नेताओं के पास अकूत धन-सम्पदा इकट्ठी होती चली गयी।
जिनकी हैसियत चार पहिया वाहन खरीदने तक की नहीं थी, अब उन्हीं के बेटे, नाती-पोते, बहू-बेटियों और पत्नी के पास लग्जरी कारों का काफिला है और वह भी चन्द वर्षों में। जो लखपति थे वे अरबपति हो गए और जो करोड़पति थे उनके पास इतनी दौलत इकट्ठा हो गयी कि उन्हें खुद ही नहीं मालूम कि वे कितनी दौलत के मालिक हैं। हैरत तो इस बात की है कि एक चुनाव से दूसरे चुनाव (अधिकतम पांच वर्ष) में चुनाव आयोग को सौंपे गए हलफनामे में उनकी सम्पत्ति आश्चर्यजनक तरीके से कई गुना बढ़ती रही और वह भी बिना किसी उद्योग धंधे के। जनता की गाढ़ी कमाई से भरे सरकारी खजाने लूटने वाले सफेदपोशों की लम्बी फेहरिस्त है। कुछ ऐसे हैं जिन्होंने अल्प समय में आश्चर्यजनक तरीके से दौलत इकट्ठा कर ली कि उनका कथित भ्रष्ट चेहरा आम जनता के सामने आ गया।
सरकार खजाने पर हाथ साफ कर अपना घर भरने वालों में एक चर्चित नाम मुलायम सिंह यादव और उनके परिवार का है। व्यवसाय के रूप में सिर्फ खेती दर्शाने वाला मुलायम परिवार मौजूदा समय में अरबों की धन-सम्पदा के मालिक हैं। आय से अधिक सम्पत्ति को लेकर उनके खिलाफ जनहित याचिका भी दायर की जा चुकी है। मामला सुप्रीम कोर्ट और सीबीआई तक भी पहुंचा। जांच के बाद सुप्रीम कोर्ट ने फैसला सुरक्षित करने का दावा किया तो दूसरी ओर सीबीआई ने भी जांच के उपरांत रिपोर्ट तैयार कर लेने का दावा किया। रिपोर्ट तैयार हुए वर्षों बीत गए लेकिन न तो सुप्रीम कोर्ट ने इस मामले में कोई रुचि दिखायी और न ही सीबीआई ने। हाल ही में दैनिक समाचार पत्रों में एक खबर प्रकाशित हुई कि, ’सुप्रीम कोर्ट ने मुलायम और उनके परिवार के खिलाफ आय से अधिक सम्पत्ति के मामले में सीबीआई जांच की अर्जी खारिज कर दी‘। हैरत इस बात की है कि सीबीआई तो काफी पहले ही अपनी जांच पूरी कर चार्जशीट तैयार करके बैठा है। उसे इंतजार है तो सिफ केन्द्र सरकार की तरफ से इशारे का। जिस दिन केन्द्र सरकार ने सीबीआई को इजाजत दे दी उसी दिन मुलायम एवं उनके परिवार का भविष्य तय हो जायेगा।
पिछले दिनों प्रिंट मीडिया और इलेक्ट्रानिक मीडिया में एक खबर प्रसारित-प्रकाशित हुई। अखबारों और खबरिया चैनलों ने दावा किया कि सुप्रीम कोर्ट ने मुलायम सिंह यादव एवं उनके परिवार के खिलाफ आय से अधिक सम्पत्ति के मामले में सीबीआई जांच की अर्जी खारिज कर दी। बाकायदा मुलायम की फोटो के साथ खबर को प्राथमिकता दी गयी। इस बात की जानकारी जब वर्ष 2005 से लेकर अब तक न्याय की लड़ाई लड़ रहे पीआईएल दाखिल करने वाले अधिवक्ता विश्वनाथ चतुर्वेदी को हुई तो उन्होंने आनन-फानन में सोशल साइट्स पर मीडिया के झूठ का खुलासा किया। बकायदा कोर्ट के नवीनतम आदेश की काॅपी भी सोशल साइट्स पर डाली ताकि तथाकथित समाजवादियों की छवि को फर्जी ढंग से सुधारने में लगे लोगों के चेहरों पर से नकाब उतारी जा सके। अधिवक्ता विश्वनाथ चतुर्वेदी ने सोशल साइट्स पर जो लिखा, कुछ इस तरह से है- ‘‘कुछ भांड़-भड़ुए, दलाल मीडिया वालों द्वारा झूठी अफवाह फैलायी जा रही है कि सीबीआई जाँच की अर्जी खारिज कर दी गयी। कोर्ट आर्डर सहित प्रेषित कर रहा हूँ! मुलायम, अखिलेश, प्रतीक के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट के निर्देश पर चल रही जाँच जारी है। साथ ही कोर्ट ने दसूरी याचिका फाइल करने की अनुमति दी है। जल्द ही दूसरी याचिका फाइल करूंगा।’’
सोशल साइट् पर दस्तावेजों के साथ डाली गयी पोस्ट भी सभी मीडिया कर्मियों ने पढ़ी और देखी होगी। चर्चा भी हुई होगी। हैरत इस बात की है कि पीआईएल दाखिल करने वाले ने दस्तावेजों के साथ अफवाहों का खण्डन किया लेकिन किसी मीडियाकर्मी ने मुलायम और उनके परिवार के खिलाफ सच्चाई लिखने की हिम्मत नहीं जुटायी। आखिर ऐसा क्या हुआ कि मीडिया की तीसरी आंख मुलायम की खिलाफत से सम्बन्धित दस्तावेजों को अनदेखा कर गयी? जानते सभी हैं लेकिन लिखने और दिखाने की हिम्मत शायद किसी में नहीं है। सभी चुनाव के दौरान लाखों-करोड़ों के विज्ञापन बटोरने की आस लगाकर बैठे हैं।
पिछले दिनों आय से अधिक सम्पत्ति के मामले में जनहित याचिका दायर करने वाले अधिवक्ता विश्वनाथ चतुर्वेदी से ‘दृष्टांत’ की दूरभाष पर वार्ता हुई। श्री चतुर्वेदी की मानें तो वे कोर्ट के उस फैसले को भी चुनौती देंगे जिसमें वर्ष 2012 में वर्तमान मुख्यमंत्री अखिलेश यादव की पत्नी डिम्पल यादव को सीबीआई जांच से यह कहकर बाहर कर दिया था कि डिम्पल यादव किसी लाभ के पद पर नहीं हैं लिहाजा वे जांच के दायरे में नहीं आतीं। विश्वनाथ चतुर्वेदी कहते हैं कि यह असंवैधानिक फैसला न्यायालय द्वारा दिया गया था। आय से अधिक सम्पत्ति मामले में यदि परिवार के सदस्यों (बहू) को बाहर कर दिया जाएगा तो शायद देश में आय से अधिक सम्पत्ति का मामला किसी पर बनेगा ही नही। जब श्री चतुर्वेदी के वकील ने कोर्ट से यह जानकारी हासिल की कि सीबीआइ की जाँच अब तक कहाँ पहुँची? इस सवाल पर न्यायालय ने दूसरी याचिका फाइल करने को कहा है। यदि देखा जाए तो कानूनी रूप से किसी मुकदमे को कोर्ट ही बंद कर सकती है।
गौरतलब है कि लगभग एक दशक बाद तक सीबीआई ने कोर्ट को कोई रिपोर्ट नहीं सौंपी है। जब रिपोर्ट की काॅपी ही कोर्ट को नहीं सौंपी गयी है तो कोर्ट इस अधूरे मामले को अपने स्तर से कैसे बंद कर सकती है? यहां तक कि सीबीआई ने जांच रिपोर्ट की काॅपी याचिकाकर्ता को भी उलपब्ध नहीं करवायी है। अभी हाल ही में 19 सितम्बर 2016 को इस मामले की सुनवाई हुई है। हैरत की बात यह है कि सारी सच्चाई और दस्तावेजों के बावजूद मीडिया कर्मियों को यह खबर कहां से मिल गयी कि सुप्रीम कोर्ट ने मुलायम एवं उनके परिवार के खिलाफ सीबीआई जांच की अर्जी खारिज कर दी। साफ जाहिर है कि पिछले ढाई दशकों से यूपी को बुरी तरह से लूट रहे सफेदपोशों को बचाने में मीडिया दलालों की भूमिका निभा रहा है। सर्वोच्च न्यायालय के सख्त आदेशों के बावजूद पेड न्यूज का धंधा अपने चरम पर है। उसका जीता-जागता उदाहरण सबके सामने है।
लगभग एक दशक पूर्व वर्ष 2005 में विश्वनाथ चतुर्वेदी ने तत्कालीन मुख्यमंत्री मुलायम सिंह यादव और उनके कुटुम्ब के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में एक याचिका दायर की थी। याचिका में मुलायम की लूट का कच्चा चिट्ठा खोला गया था। दस्तावेजों के साथ याचिका में स्पष्ट लिखा गया था कि 1977 में जब मुलायम सिंह यादव उत्तर प्रदेश में पहली बार मंत्री बने थे, तब से लेकर वर्ष 2005 तक तकरीबन 28 वर्षों में उनकी सम्पत्ति में 100 गुना वृद्धि हुई है। मुलायम और उनके परिजनों ने यह सम्पत्ति कहां से और कैसे इकट्ठा की है? इसकी जांच होनी चाहिए। उस वक्त समाजवादी पार्टी की तरफ से यह प्रचारित किया गया कि विश्वनाथ चतुर्वेदी कांग्रेस पार्टी के सदस्य हैं। राजनैतिक द्वेष के कारण ही ऐसा किया जा रहा है। इस पर विश्वनाथ चतुर्वेदी ने कोर्ट में अर्जी देकर स्पष्ट किया था कि वह किसी राजनीतिक दल से सम्बन्ध नहीं रखते बल्कि वह पेशे से पत्रकार हैं। समाज के प्रति उसकी जिम्मेदारी बनती है कि आम जनता के धन को लूटे जाने का वह हर तरह से विरोध करें। मुलायम एवं परिवार के समक्ष कोई विकल्प निकलता न देखकर वर्ष 2005 में डाली गयी याचिका के जवाब में मुलायम सिंह यादव और उनके परिवार की तरफ से सुप्रीम कोर्ट में 1 मार्च 2007 को आए सीबीआई जांच के फैसले के खिलाफ पुनर्विचार याचिका डाली गयी थी। लगभग पांच वर्ष तक सुनवाई के बाद वर्ष 2012 में सुप्रीम कोर्ट ने सीबीआई जांच पर रोक लगाने से तो इनकार कर दिया था लेकिन मुलायम सिंह यादव की बहू डिंपल यादव को जांच के दायरे से यह कहकर बाहर कर दिया था, ‘जिस वक्त का यह मामला है उस वक्त वे सार्वजनिक पद पर नहीं थीं लिहाजा उनके खिलाफ सीबीआई जांच नहीं की जा सकती।’
महत्वपूर्ण प्रश्न यह है कि जब डिंपल यादव किसी पद पर नहीं थीं तो उनके पास आय से अधिक धन कैसे जमा हो गया? आयकर विभाग ने इस मामले को संज्ञान में क्यों नहीं लिया? क्या इसकी जांच नहीं होनी चाहिए कि जब डिंपल के पास आय का कोई स्रोत नहीं था फिर उनके पास करोड़ों की सम्पत्ति कैसे इकट्ठा हो गयी? इस सम्बन्ध में पीआईएल दायर करने वाले विश्वनाथ चतुर्वेदी का कहना है कि यदि न्यायपालिका इसी तरह से तथाकथित भ्रष्ट लोगों की पत्नी को राहत देती रही तो ऐसे में किसी भी भ्रष्टाचारी को सजा नहीं मिल पायेगी। भविष्य में भी लोग अनाधिकृत रूप से कमाए गए धन को अपनी पत्नी के नाम ट्रांसफर कर चैन की सांस लेंगे।
गौरतलब है कि भारत के मुख्य न्यायाधीश रहे अल्तमश कबीर ने मुलायम और उनके कुनबे के खिलाफ आय से अधिक सम्पत्ति के मामले को वर्ष 2006 से 2012 तक सुना। विश्वनाथ चतुर्वेदी की याचिका पर सवा साल में ही सुनवाई पूरी कर सीबीआई जांच के आदेश भी दे दिए गए थे। लगने लगा था कि जल्द ही मुलायम और उनका कुनबा सलाखों के पीछे नजर आयेगा लेकिन मुलायम कुनबे ने बचने की गरज से पुनर्विचार याचिका दाखिल कर दी। उस याचिका की ओपन कोर्ट में जो सुनवाई शुरू हुई वह 5 वर्षों तक अनवरत चलती रही। लगभग पांच वर्ष पूर्व ही 17 फरवरी 2011 को पुनर्विचार याचिका पर फैसला भी रिजर्व हो गया था। बस फैसला सुनाना भर शेष था। सपा विरोधी दलों में बेचैनी से फैसले का इंतजार हो रहा था। सभी को उम्मीद थी कि याचिका के साथ जो पुख्ता दस्तावेज लगाए हैं वे मुलायम और उनके कुनबे को सलाखों के पीछे ले जाने के लिए काफी हैं। सूबे की आम जनता से लेकर सपा विरोधी दल इंतजार करते रह गए इसी दौरान मुलायम सिंह यादव के वकील व समाजवादी पार्टी के राज्यसभा सांसद रहे वीरेन्द्र स्वरूप भाटिया की बरसी में भारत के मुख्य न्यायाधीश रहे अल्तमश कबीर सपा प्रमुख मुलायम सिंह यादव और अखिलेश यादव के साथ मंच पर एक साथ विराजमान नजर आये। किसी को उम्मीद नहीं थी लेकिन घटना अप्रत्याशित थी।
वैसे तो न्यायाधीश अल्तमश कबीर को नैतिकता के आधार पर इस केस से अलग हो जाना चाहिये था लेकिन रिटायर होने से पहले ही उन्होंने 13 दिसम्बर 2012 को एक विरोधाभाषी व असंवैधानिक फैसला सुनाया। इस फैसले में मुख्यमंत्री अखिलेश यादव की सांसद पत्नी डिम्पल यादव को यह कहकर बाहर कर दिया कि वह किसी लाभ के पद पर नही थी इसलिए इनकी जांच नहीं होगी। उस वक्त सूबे में अखिलेश यादव की सरकार ने सांस लेनी शुरू ही की थी। इस विरोधाभाषी फैसले के बाद चर्चाएं तो बहुत हुईं लेकिन न्यायपालिका के खिलाफ खुलकर बोलने के लिए कोई तैयार नहीं हुआ। गौरतलब है कि उस दौरान अल्तमश कबीर ने अपने फैसले में मुलायम सिंह यादव, अखिलेश यादव और प्रतीक यादव के खिलाफ जांच जारी रखने का निर्देश दिया था, जबकि उस वक्त प्रतीक यादव भी किसी लाभ के पद पर नहीं थे। यदि पूर्व न्यायाधीश ने लाभ के पद पर न होने का हवाला देकर डिंपल यादव को सीबीआई जांच से बरी कर दिया था तो उस स्थिति में प्रतीक यादव को भी सीबीआई जांच से बरी हो जाना चाहिए था। शायद सुप्रीम कोर्ट के इतिहास में इस तरह का अदभुत फैसला आज तक नहीं हुआ होगा और वह भी एक जाने-माने न्यायाधीश की कलम से। सही मायने में कहा जाए तो सुप्रीम कोर्ट ने भ्रष्टाचार विरोधी कानून की धज्जियां उड़ाकर रख दी थीं। इस सम्बन्ध में अधिवक्ता विश्वनाथ चतुर्वेदी का कहना है कि वे इस असंवैधानिक फैसले को चुनौती देंगे। वह निर्णय पूरी तरह से गैरकानूनी था।
अब यह भी जान लीजिए कि आखिरकार तमाम असंभावनाओं के बावजूद मीडिया में सुप्रीम कोर्ट द्वारा क्लीनचिट दिए जाने की खबर कैसे प्रकाशित-प्रसारित हो गयी? इस दुर्लभ काम को अंजाम देने की भूमिका निभायी है अमर सिंह ने। सभी जानते हैं कि अमर सिंह में न्यायपालिका से लेकर औद्योगिक घरानों, सीबीआई और मीडिया तक को मैनेज करने की क्षमता कूट-कूट कर भरी है। पेड न्यूज के इस खेल ने अपना काम कर दिखाया। अखबारों में झूठी खबर छपते ही अमर सिंह समाजवादी पार्टी में नायक की भूमिका में नजर आने लगे। मुलायम ने भी इन्हें उपकृत करने में कोई कसर नहीं छोड़ी। अमर सिंह को एक बार फिर से सपा में महासचिव पद का दर्जा दे दिया गया।
गौरतलब है कि ये वही अमर सिंह हैं जो एक बार फिर से समाजवादी पार्टी में वापसी से पहले करीब छह साल तक सक्रिय राजनीति में हाशिए पर रहे। इस दौरान वे गंभीर बीमारी से भी जूझते रहे। इस दौरान उन्होंने अपने लिए दूसरे राजनैतिक दरवाजे भी देखे। जब कहीं से उन्हें सम्मान मिलता नजर नहीं आया तो उन्होंने खुद की राष्ट्रीय लोकमंच के नाम से राजनीतिक पार्टी भी बनाई। वर्ष 2012 विधानसभा चुनाव में उन्हांेने चुनाव प्रचार के दौरान मुलायम के खिलाफ अमर्यादित भाषा तक का प्रयोग किया। खुले मंच से मुलामय की सत्ता को यूपी में जड़ से मिटाने की सौगंध तक खायी। अमर सिंह को अपनी राजनैतिक हैसियत का अंदाजा उस वक्त हुआ जब वर्ष 2012 के विधानसभा चुनाव में उनकी पार्टी के प्रत्याशियों की जमानतें तक जब्त हो गईं।
अमर सिंह वर्ष 2014 में राष्ट्रीय लोक दल से लोकसभा का चुनाव लड़े। उम्मीद थी कि उन्हें सम्मानजनक वोट मिलेंगे लेकिन हुआ वही जिसकी उम्मीद थी। अमर सिंह को लोकसभा चुनाव में करारी शिकस्त मिली। जब कहीं दाल नहीं गली तो दोबारा उसी पार्टी में आने के रास्ते तलाशने लगे जहां उनके विरोधियों की संख्या अनगिनत थी। इसके बावजूद अमर सिंह ने अपनी कला का परिचय दिया और सपा में शामिल हो गए। पार्टी में तमाम विरोध के बावजूद उसी सम्मानजनक स्थिति को पाने के लिए अमर सिंह ने आय से अधिक सम्पत्ति के मामले में मुलायम और कुनबे को राहत दिलवाने का वायदा किया। कोर्ट ने भले ही मुलायम को ठीक तरह से राहत न दी हो लेकिन अमर सिंह ने मीडिया को सेट करके राहत देने सम्बन्धित ऐसी फर्जी खबर प्रकाशित-प्रसारित करवा दी जिससे प्रभावित मुलायम कुनबा अमर सिंह का मुरीद हो गया। मुलायम ने भी अहसान का बदला चुकाने में कोई कसर नहीं छोड़ी। अमर सिंह को एक बार फिर से पार्टी में महासचिव का पद दे दिया गया।
अब यह भी जान लेना जरूरी है कि आखिरकार कोर्ट ने क्या कहा था और मीडिया को क्या बताया गया? मुलायम सिंह यादव और उनके परिवार के खिलाफ आय से अधिक संपत्ति मामले में लंबित विश्वनाथ चतुर्वेदी की कुछ अर्जियों पर आदेश देने से सुप्रीम कोर्ट ने यह कहकर मना कर दिया है कि इन अर्जियों में उठे सवालों का जवाब 2013 में मुलायम परिवार की पुनर्विचार याचिका खारिज करते हुए सीबीआई जाँच के आदेश के समय ही दे दिया गया था। इस पर श्री चतुर्वेदी के सीनियर अधिवक्ता के टी एस तुलसी ने कहा, ‘आपके आदेश पर सीबीआई ने आज तक क्या जाँच की है? इसकी जानकारी याचिकाकर्ता को प्राप्त नहीं हुई है।’ जाँच रिपोर्ट मँगाये जाने के सवाल पर कोर्ट ने कहा, ‘यह माँग आपकी इस याचिका में नही है।’ परिणामस्वरूप कोर्ट ने उक्त माँग के लिए अलग से याचिका दाखिल करने की अनुमति देते हुए कहा कि इसके लिए दूसरी याचिका दाखिल कर सकते हैं। श्री चतुर्वेदी के सीनियर वकील केटीएस तुलसी ने कहा, ‘सीबीआई ने प्राथमिक जांच में मुकदमा दर्ज करने की इच्छा जताई थी लेकिन बाद में एफआईआर रजिस्टर की गयी अथवा नहीं, इसकी कोई जानकारी याचिकाकर्ता को नहीं दी गयी लिहाजा सीबीआई से स्टेटस रिपोर्ट मांगी जाए।’ इस पर कोर्ट ने कहा, ‘ये मांग मौजूदा अर्जी का हिस्सा नहीं है।’ इस पर कोर्ट याचिकाकर्ता के वकील को अनुमति दी है कि इस मांग के साथ अलग से याचिका दाखिल की जाए। याचिकाकर्ता विश्वनाथ चतुर्वेदी ने मीडिया कर्मियों से साफ कहा है कि कोर्ट के इस आदेश में कहीं पर यह नहीं कहा गया है कि मुलायम एवं उनके परिवार के खिलाफ सीबीआई जांच की अर्जी खारिज की जाती है। साफ जाहिर है कि यह सारा खेल मुलायम के अमर-प्रेम का जीता-जागता उदाहरण है और अमर सिंह का मीडिया को हैण्डिल करने का नायाब तरीका।
आय से अधिक सम्पत्ति के मामले में सपा प्रमुख मुलायम सिंह यादव एण्ड फैमिली को क्लीनचिट देने का गैरकानूनी तरीका पिछले लगभग चार वर्षों से जारी है। वर्ष 2012 में भी कुछ इसी तरह से मुलायम एण्ड फैमिली को क्लीनचिट देने की कोशिश हुई। उस वक्त केन्द्र में कांग्रेस के मनमोहन सिंह की सरकार थी। तत्कालीन केन्द्र सरकार को जब अपनी प्रतिष्ठा से जुडे़ ‘खाद्यान्न सुरक्षा विधेयक’ को पास करवाने के लिए सांसदों की जरूरत हुई तो उस वक्त मुलायम सिंह यादव के साथ एक समझौता हुआ। समझौता यह था कि केन्द्र सरकार सुप्रीम कोर्ट और सीबीआई से उनके आय से अधिक मामले पर क्लीनचिट दिलवा दे। कोशिश भी कुछ ऐसी ही हुई। गौरतलब है कि आय से अधिक सम्पत्ति के मामले में पूर्व मुख्यमंत्री मायावती को भी तत्कालीन मनमोहन सिंह की सरकार के कार्यकाल में सीधे सुप्रीम कोर्ट से राहत दिलवा दी गयी थी। जब तक केन्द्र में मनमोहन सिंह की सरकार (वर्ष 2009 से 2014 तक) रही, मुलायम सिंह यादव लगातार कांग्रेस की हर मुसीबत में उसका साथ देते रहे। मुलायम यह बात अच्छी तरह से जानते थे कि उनकी नकेल केन्द्र सरकार के ही हाथों में है। यदि जरा सी आनाकानी की तो केन्द्र के इशारे सीबीआई अपना खेल दिखा देगी। हालांकि इस तरह के दबाव को सपा प्रमुख मुलायम सिंह यादव शुरू से नकारते आए हैं लेकिन कांग्रेस को हर मुसीबत के दौर में आंख बंद करके समर्थन देना इस बात का प्रमाण है कि मुलायम किसी तरह से आय से अधिक सम्पत्ति के मामले से बाहर निकलने के लिए कुछ भी करने को तैयार हैं। जब केन्द्र की तरफ से अहसान के बदले ज्यादा दबाव पड़ा तो दिसंबर 2012 में सुप्रीम कोर्ट ने उस केस से यह कहते हुए अपना पीछा छुड़ा लिया कि जो करना है सीबीआई करे और जो दिखाना सुनाना है सरकार को दिखाए सुनाए। ये वही सुप्रीम कोर्ट था जिसने बाद में इस बात को लेकर बखेड़ा खड़ा कर दिया था कि सीबीआई ने अपनी जांच रिपोर्ट तत्कालीन कानून मंत्री को क्यों सौंपी। तरीका तो यही कहता है कि जब सुप्रीम कोर्ट ने उस केस से अपना पीछा छुड़ा लिया था तो उसे सीबीआई की कार्यप्रणाली पर उंगली नहीं उठानी चाहिए थी।
खैर दिसम्बर 2012 में विश्वनाथ चतुर्वेदी बनाम यूनियन आफ इंडिया जनहित याचिका (क्रमांक 633, 2005) के मामले में दो साल से सुरक्षित रखे फैसले का पिटारा खोला गया। उम्मीद थी कि पिटारा खुलते ही मुलायम सलाखों के पीछे नजर आयेंगे लेकिन ऐसा नहीं हो सका। उस दौरान भी अफवाह फैली थी कि मुलायम को आय से अधिक सम्पत्ति के मामले में जल्द ही सीबीआई क्लीनचिट दे देगी। कहा तो यही जा रहा है कि सीबीआई की तरफ से क्लीनचिट का चिट्ठा चार वर्ष पूर्व ही बनकर तैयार हो गया था। इसी दौरान लोकसभा चुनाव की तैयारियां शुरू हो गयीं। कांग्रेस की तरफ से आश्वासन दिया गया कि दोबारा सत्ता में आते ही उन्हें सीबीआई की तरफ से क्लीनचिट का चिट्ठा थमा दिया जायेगा। दुर्भाग्यवश केन्द्र से कांग्रेस का सफाया हो गया और मोदी सरकार सत्ता में आ गयी। मुलायम सिंह यादव, विश्वनाथ चतुर्वेदी और कांग्रेस के बीच चली त्रिकोणीय जंग में शामिल एक मध्यस्थ ने उस वक्त अपमानजनक शब्दों का इस्तेमाल करते हुए विश्वास के साथ कहा था, ‘सरकार सबसे बड़ी चीज होती है। वह जो चाहे कर सकती है। चतुर्वेदी जैसे लोगों को यह बात समझ नहीं आती है तो यह उनका प्राब्लम है।’ इस शख्स के दावों में दम था क्योंकि मैनेज करने का काम इसी शख्स ने किया था। यहां बात हो रही है अमर सिंह की। उस वक्त अमर सिंह का सपा में सिक्का बोलता था।
मुलायम को आय से अधिक सम्पत्ति में राहत देने की सभी तैयारियां हो चुकी थीं, अंततः हुआ वही जिसकी उम्मीद एक वर्ग विशेष को थी। सीबीआई का शिकंजा कानूनी पेंच में फंस गया। जब कहीं से बात नहीं बन सकी तो याचिकाकर्ता विश्वनाथ चतुर्वेदी पर चारों तरफ से दबाव बनाया गया। साम, दाम, दण्ड, भेद की तर्ज पर पूरी समाजवादी पार्टी विश्वनाथ चतुर्वेदी के पीछे पड़ गयी थी। तत्कालीन केन्द्र की कांग्रेस सरकार ने श्री चतुर्वेदी की सुरक्षा का पुख्ता इंतजाम कर रखा था। उस वक्त श्री चतुर्वेदी राजेन्द्र नगर, लखनऊ में रहते थे। उनके घर की तंग सीढ़ियों पर इतने पुलिसवाले भरे रहते थे कि एकबारगी लगता था कि इतना सुरक्षित आदमी इतनी असुरक्षित सी जगह पर आखिर क्यों रहता है? यहां पर विश्वनाथ चतुर्वेदी की मुश्किलों का जिक्र सिर्फ इसलिए किया गया ताकि इस मामले की गंभीरता को समझा जा सके। इतना सब कुछ होने के बावजूद मुलायम सिंह यादव और उनके परिजनों को आय से अधिक सम्पत्ति के मामले में राहत नहीं मिल सकी। अमर सिंह ने भी अपनी पूरी ताकत झोंक दी लेकिन मुलायम को क्लीनचिट नहीं मिल पायी। लगभग एक दशक बाद एक बार फिर से मुलायम को क्लीनचिट दिलवाने के लिए ऐड़ी-चोटी का जोर लगाया जा रहा है। अमर का तंत्र पूरी शिद्दत के साथ उन रास्तों को तलाश रहा है जिन रास्तों से मुलायम को क्लीनचिट मिलने की संभावना है। हाल ही में मीडिया के सहारे मुलायम को क्लीनचिट दिए जाने की झूठी खबर प्रकाशित करवाकर खेल को और रोचक बना दिया गया है। इस खबर को याचिकाकर्ता विश्वनाथ चतुर्वेदी ने चैलेंज किया है। साथ ही कोर्ट आर्डर की कुछ काॅपियां सुबूत के तौर पर सोशल मीडिया पर डाली हैं ताकि भ्रामक खबर का और दलाल की भूमिका निभाने वाले कुछ मीडिया घरानों के चेहरों से नकाब उतारा जा सके।
वर्तमान सपा प्रमुख मुलायम सिंह यादव को 1977 में जब पहली बार मंत्रीपद नसीब हुआ उस वक्त उन्होंने अपनी सम्पत्ति मात्र 77 हजार रुपए बतायी थी। 28 वर्षों के बाद 2005 में जब विश्वनाथ चतुर्वेदी ने कोर्ट में आय से अधिक सम्पत्ति से सम्बन्धित मुलायम के खिलाफ याचिका दायर की थी उस वक्त उनकी सम्पत्ति करोड़ों में पहुंच गयी थी। वर्ष 2004 में मुलायम सिंह यादव ने जब मैनपुरी से चुनाव लड़ा तो उस वक्त उन्होंने अपनी सम्पत्ति 1 करोड़ 15 लाख 41 हजार 224 बतायी थी। पांच वर्ष बाद 2009 में लोकसभा चुनाव के दौरान मुलायम ने जो हलफनामा दिया था उसमें उन्होंने अपनी सम्पत्ति 2 करोड़ 23 लाख 99 हजार 310 रुपए बतायी थी। वर्ष 2014 के लोकसभा चुनाव में मुलायम ने अपनी सम्पत्ति 15 करोड़ 96 लाख 71 हजार 544 दर्ज करवायी। बिना किसी उद्योग धंधे के 77 हजार से लगभग 16 करोड़ की सम्पत्ति मुलायम ने कैसे जमा कर ली? यह प्रश्न हैरान कर देने वाला है।
गौरतलब है कि यह सम्पत्ति तो मुलायम सिंह यादव ने स्वयं अपने हलफनामें में दिखायी है जबकि हकीकत यह है कि मौजूदा समय में मुलायम और उनके परिजनों के पास अरबों की अकूत सम्पत्ति मौजूद है। यदि सीबीआई इस अकूत सम्पत्ति के बाबत आय का स्रोत मुलायम से पूछे तो निश्चित तौर पर यूपी के सरकारी खजाने को लूटे जाने का खुलासा हो सकता है। यह भी जान लीजिए, ये वही मुलायम सिंह यादव हैं जो आज भी जब चुनाव प्रचार के लिए गांव-देहातों में जाते हैं तो स्वयं को किसान का बेटा बताते हैं। हैरत की बात है कि यूपी के एक किसान का बेटा इतनी जल्द 77 हजार की सम्पत्ति से करो़ड़ांे की सम्पत्ति का मालिक कैसे बन बैठा? यूपी का आम किसान कर्ज और भुखमरी से आत्महत्या कर रहा है। सूबे के आम किसानों का परिवार दो जून की रोटी के लिए शहरों में मजदूरी करने पर विवश है और मुलायम सिंह यादव एक ऐसे किसान हैं जिन्होंने कृषि से न सिर्फ अपने भरे-पूरे परिवार को ऐश की जिन्दगी दी बल्कि परिजनों के नाम इतनी सम्पत्ति जुटा ली जिससे उनकी आगे आने वाली कई पीढ़ियां घर बैठे-बैठे ऐश का जीवन जी सकती हैं। सूबे का किसान जानना चाहता है कि उनके हाथों में ऐसा कौन सा अलादीन का चिराग हाथ लग गया जिससे उन्होंने उस यूपी में अरबों की सम्पत्ति सिर्फ खेती-किसानी से जुटा ली जिस यूपी का शेष किसान आजादी के लगभग 70 वर्षों बाद भी अपने परिवार को दो जून की रोटी नहीं दे पाया।
सिर्फ मुलायम के नाम से सैफई सहित अन्य गावों में 7 करोड़ 88 लाख 88 हजार रुपए की कृषि योग्य भूमि उनके हलफनामे में दर्ज है। इलाकाई लोगों का दावा है कि हकीकत में उपरोक्त जमीनों की कीमत अरबों में है। इटावा की फ्रेण्ड्स कालोनी में एक 5000 वर्ग फीट का आवासीय प्लाॅट है। हलफनामे में इस प्लाॅट की कीमत एक करोड़ 44 लाख 60 हजार दर्शायी गयी है जबकि इस प्लाॅट की वास्तविक कीमत पांच करोड़ के आस-पास है। इटावा के सिविल लाइन में आवासीय भवन संख्या 218 का क्षेत्रफल 16 हजार 10 वर्ग फीट है। इसकी कीमत हलफनामे में 3 करोड़ 16 लाख 28 हजार 339 दर्शायी गयी है। सच तो यह है कि इस आलीशान कोठी की कीमत लगभग 15 करोड़ के आस-पास है। ये वह अधूरी सम्पत्तियां हैं जो मुलायम ने खेती के धंधे से कमायी हैं। ये वह सम्पत्तियां हैं जो आजमगढ़ से सांसद मुलायम सिंह यादव ने अपने हलफनामे मे कुबूल की हैं। वास्तविकता में उनके नाम पर कितनी सम्पत्तियां हैं? शायद उम्र के इस पड़ाव में उन्हंे भी ठीक तरह से याद नहीं होंगी। इसके अतिरिक्त बेटे, बहू के नाम से अरबों की सम्पत्ति का मालिक है मुलायम परिवार और यह सारी सम्पत्ति बिना किसी उद्योग धंधे के खेती करके कमायी गयी है। आम जनता का हैरत होना स्वाभाविक है। यही वजह है कि विश्वनाथ चतुर्वेदी ने मुलायम और उनके परिवार के खिलाफ आय से अधिक सम्पत्ति को लेकर एक जनहित याचिका दायर की थी।
क्या कहते हैं विश्वनाथ चतुर्वेदी
दिसम्बर 2012 में वर्तमान सांसद डिंपल यादव को केस से बाहर किए जाने के सम्बन्ध में याचिकाकर्ता विश्वनाथ चतुर्वेदी का कहना है कि उक्त फैसला मुख्य न्यायाधीश रहे अल्तमश कबीर ने भले ही दिया हो लेकिन यह फैसला मैं उनका व्यक्तिगत फैसला मानता हूं। ऐसा विरोधाभाषी फैसला सुप्रीम कोर्ट का कतई नहीं हो सकता। एक तरफ तो डिंपल यादव को यह कहकर केस से बाहर कर दिया जाता है कि जिस वक्त केस दर्ज किया गया उस वक्त डिंपल यादव किसी लाभ के पद पर नहीं थीं। गौरतलब है कि उस वक्त प्रतीक यादव भी किसी लाभ के पद पर नहीं थे। इन परिस्थितियों में प्रतीक यादव के खिलाफ भी केस खारिज हो जाना चाहिए था, लेकिन ऐसा नहीं हुआ। सिर्फ डिंपल यादव को ही इस केस से बाहर किया गया क्योंकि डिंपल यादव वर्तमान मुख्यमंत्री अखिलेश यादव की पत्नी हैं। मुलायम ने इसे अपने परिवार के सम्मान से जोड़ लिया था। डिंपल यादव को अनैतिक तरीके से केस से बाहर निकालने के लिए सपा प्रमुख ने कौन सा तरीका अख्तियार किया? इस पर भी जांच होनी चाहिए। बात खुलकर सामने आनी चाहिए ताकि आम लोगों का न्यायपालिका पर से भरोसा न उठे। ज्ञात हो आय से अधिक सम्पत्ति मामले की सुनवाई माननीय जज अल्तमश कबीर ही सुन रहे थे।
अल्तमश कबीर को वर्ष 2011 में राजधानी लखनऊ में मुलायम के वकील व समाजवादी पार्टी सांसद रहे स्व0 वीरेन्द्र भाटिया की बरसी में मुलायम और अखिलेश के साथ मंच पर एक साथ देखा गया था। यदि मुलायम परिवार के साथ उनके इतने नजदीकी सम्बंध थे तो उन्हें इस मुकदमे से अपने आप को नैतिकता के आधार पर अलग कर लेना चाहिए था। उन्होंने ऐसा नहीं किया। परिणामस्वरूप अखिलेश यादव की पत्नी सांसद डिम्पल यादव उन्होंने यह कहकर जांच के दायरे से बाहर कर किया दिया कि वे कोई पब्लिक पोस्ट होल्ड नहीं कर रही थीं जबकि उस वक्त पब्लिक पोस्ट होल्ड न करने वाले प्रतीक यादव भी थे।
संदेह के घेरे में ‘थिंक टैंक’
हालांकि मुलायम एवं उनके परिवार के खिलाफ आय से अधिक सम्पत्ति के मामले में समाजवादी पार्टी के थिंक टैंक माने जाने वाले रामगोपाल यादव की कोई भूमिका नहीं है, लेकिन उन्होंने जिस तरीके से पिछले 28 वर्षों के राजनैतिक कैरियर में धन सम्पदा इकट्ठा की है वह चर्चा करने लायक अवश्य है। राज्यसभा में निर्वाचन के लिए प्रो0 रामगोपाल यादव ने 3 नवम्बर 2014 को रिटर्निंग आफिसर के समक्ष शपथ पत्र प्रस्तुत किया था। शपथ पत्र के मुताबिक प्रो0 रामगोपाल ने चल-अचल सम्पत्ति की कुल कीमत लगभग 10 करोड़ के आस-पास बतायी थी। हालांकि शपथ-पत्र में सम्पत्ति जुटाने के साधन का उल्लेख नहीं किया जाता है अन्यथा उनकी अकूत सम्पत्ति का खुलासा शपथ पत्र दाखिल करते ही हो जाता। यह काम विशेष तौर पर आयकर विभाग का होता है या फिर प्रवर्तन विभाग का। हैरत की बात है कि दोनों ही जिम्मेदार विभागों में से किसी ने भी प्रो0 रामगोपाल यादव से उनकी आय से अधिक सम्पत्ति के बाबत पूछताछ तक नहीं की।
गौरतलब है कि प्रो. रामगोपाल यादव समाजवादी पार्टी अध्यक्ष मुलायम सिंह यादव के चचेरे छोटे भाई हैं। पेशे से अध्यापक रहे श्री यादव वर्तमान में उत्तर प्रदेश से राज्यसभा के सांसद हैं। वह मुलायम सिंह यादव के थिंक टैंक भी कहे जाते हैं। प्रो. रामगोपाल यादव समाजवादी पार्टी के राष्ट्रीय महासचिव भी हैं। पार्टी में हैसियत मुलायम के बाद दूसरे नम्बर की मानी जाती है। यह दीगर बात है कि उन्हें राजनीति में लाने का श्रेय मुलायम सिंह यादव को जाता है। रामगोपाल यादव ने अपने भाई शिवपाल यादव के साथ 1988 में राजनीति में कदम रखा। वह इटावा के बसरेहर से ब्लॉक प्रमुख भी रह चुके हैं। जीत के इसी स्वाद ने उन्हें अपना राजनैतिक सफर जारी रखने पर विवश कर दिया। कहा जाता है कि इसके बाद उन्होंने पीछे मुड़कर कभी नहीं देखा। मुलायम का पूरा परिवार भले ही कई बार मुसीबतों में रहा हो लेकिन रामगोपाल यादव को मुसीबत छू तक नहीं सकी।
प्रो. रामगोपाल वर्ष 1989 में जिला परिषद का चुनाव जीतकर अध्यक्ष बने। वर्ष 1992 में पहली बार राज्यसभा के सदस्ये बने। इसके बाद से प्रो0 रामगोपाल लगातार राज्यसभा पहुंचते रहे। वर्तमान समय में भी वे राज्यसभा के सदस्य हैं। ये मुलायम सिंह यादव के राजनैतिक सलाहकार भी रह चुके हैं। ये उस वक्त सुर्खियों में आए जब उन्होंने आईएएस अफसर दुर्गाशक्ति नागपाल के मामले में केंद्र सरकार द्वारा रिपोर्ट मांगने पर यहां तक कह दिया था कि यूपी को आईएएस अफसरों की जरूरत ही नहीं है। उनके बयान से साफ जाहिर था कि वे यूपी में आईएएस अफसरों को ही भ्रष्टाचार की जननी मानते हैं। इन्होंने डा0. लोहिया का सामाजिक और राजनीतिक दर्शन विषय पर शोध किया और पीएचडी उपाधि ली। समाजवादियों को लोहिया के विचारों से अवगत कराने का श्रेय भी इन्हीं को जाता है। बेहद गरीबी में पले-बढ़े प्रो. रामगोपाल यादव आज करोड़ों की हैसियत रखते हैं। शपथ पत्र में इन्होंने अपनी आर्थिक हैसियत 10 करोड़ से भी ऊपर बतायी है। ये वह सम्पत्ति है जिसका उन्होंने शपथ पत्र में खुलासा किया है। यानि ये तो सफेद धन है जबकि जानकारों का कहना है कि वर्तमान समय में प्रो0 रामगोपाल के पास अकूत संपत्ति है।
हैरत की बात है कि बेहद गरीबी से निकलकर आए प्रो0 रामगोपाल यादव वर्तमान में करोड़ों की हैसियत रखते हैं, वह भी बिना किसी उद्योग धंधे के! इसके बावजूद आयकर विभाग ओर प्रवर्तन विभाग इनकी जांच तक नहीं करता। हाल ही में इनका नाम महाभ्रष्ट यादव सिंह के साथ भी जोड़ा जाता रहा है। हालांकि प्रो0 रामगोपाल यादव ने यादव सिंह ने अपने सम्बन्धों को सिरे नकारा है लेकिन पार्टी के ही सदस्य यह बात दावे के साथ कहते हैं महाभ्रष्ट यादव सिंह को प्रो0 रामगोपाल यादव का संरक्षण था। चर्चा तो यहां तक है कि यादव सिंह की काली कमाई का एक बड़ा हिस्सा इन्हें भी मिलता था। इन आरोपों में कितनी सच्चाई है? यह जांच का विषय हो सकता है। दावा करने वाले यहां तक कहते हैं कि जिस दिन प्रो0 रामगोपाल यादव पर शिकंजा कसा गया उस दिन यूपी के गर्भ में दबे हजारों करोड़ के घोटालों पर से पर्दा उठ जायेगा। पार्टी के लोग तो यहां तक कहते हैं कि कोई बड़ा फैसला लेते समय मुलायम सिंह यादव प्रो. रामगोपाल यादव से सलाह लेना नहीं भूलते हैं।
मुलायम परिवार की पृष्ठभूमि
मुलायम सिंह यादव के किसान पिता सुधर सिंह मूल रूप से फिरोजाबाद की तहसील शिकोहाबाद के रहने वाले थे। बाद में वे इटावा के सैफई में जाकर बस गए। मुलायम पांच भाइयों में दूसरे नम्बर पर हैं। शिवपाल यादव को छोड़कर उनके सभी भाई खेतीबाड़ी करते रहे हैं। मुलायम के सबसे छोटे भाई राजपाल यादव लगभग एक दशक पूर्व यूपी वेयरहाउसिंग कापोर्रेशन में बाबू हुआ करते थे। मुलायम का राजनीति में कद बढ़ तो राजपाल यादव ने वर्ष 2006 में नौकरी से त्याग पत्र दे दिया। मुलायम सिंह यादव के पुत्र अखिलेश यादव वाया सांसद यूपी के मुख्यमंत्री पद पर विराजमान हैं। अखिलेश यादव का जन्म मुलायम की पहली पत्नी मालती देवी से हुआ था जिनकी 23 मई 2003 में मृत्यु हो गयी थी। उसके बाद मुलायम ने साधना गुप्ता से विवाह कर लिया। बताया जाता है कि साधना ने मुलायम के राजनैतिक कद का खूब फायदा उठाया। आज वह भी अरबों की सम्पत्ति की मालकिन बतायी जाती हैं। ये पैसा उनके पास कहां से आया? इस पर भी सवाल उठने शुरू हो गए हैं।
बताया जाता है कि अखिलेश सरकार में कैबिनेट मंत्री का दर्जा प्राप्त एक मंत्री उन्हें प्रत्येक माह करोड़ों की वसूली का धन पहुंचाता है। इसके कितनी सच्चाई है? यह जांच का विषय हो सकता है लेकिन इस सच्चाई से इनकार नहीं किया जा सकता कि साधना वर्तमान समय में करोड़ों की मालकिन हैं। मुलायम सिंह यादव पूर्व मुख्यमंत्री राम नरेश यादव और पूर्व मुख्यमंत्री बनारसी दास के कार्यकाल 1977 से लेकर 17 फरवरी 1980 तक मंत्री रहे। इसके बाद मुलायम सिंह यादव 1982 से 8 नवम्बर 1984 तक विधान परिषद में विपक्ष के नेता रहे। 17 मार्च 1985 से 10 फरवरी 1987 तक मुलायम सिंह यादव नेता विपक्ष विधानसभा रहे। 4 जुलाई 1995 में वे दोबारा नेता विपक्षी दल चुने गए लेकिन उन्होंने पद लेने से इंकार कर दिया। मुलायम सिंह यादव 5 दिसम्बर 1989 से 24 जून 1991, 4 दिसम्बर 1993 से 3 जून 1995 और 29 अगस्त 2003 से 13 मई 2007 तक यूपी में मुख्यमंत्री के पद पर रहे। वर्ष 2005 में ही मुलायम सिंह के खिलाफ आय से अधिक सम्पत्ति बटोरने से सम्बन्धित पीआईएल दायर की गयी थी। मुलायम सिंह यादव अब तक तीन बार सांसद बन चुके हैं। वर्तमान समय में वे आजमगढ़ से सांसद हैं।
क्या कहा था सुप्रीम कोर्ट ने
विगत माह 19 सितम्बर 2016 को सुप्रीम कोर्ट में आय से अधिक सम्पत्ति के मामले में सुनवायी के दौरान माननीय न्यायाधीश ने जो कहा और मीडिया को जो सुनाया गया वह कुछ इस तरह से है। मामला कोर्ट नम्बर 6 में केस नम्बर 7 पर सूचीबद्ध था। कोर्ट ने कहा, ’इस मामले में हम सीबीआई से स्टेटस रिपोर्ट दाखिल करने को नहीं कह सकते। इस केस में कोर्ट 13 दिसम्बर 2012 को ही आदेश जारी कर चुका है। अब सीबीआई स्वयं इस मामले की जांच करे।‘ इस पर सुप्रीम कोर्ट में याचिकाकर्ता ने कहा, ’वर्ष 2007 में उनके आरोपों के आधार पर सीबीआई ने प्राथमिक जांच में मामला बनने की बात कही थी, फिर भी अभी तक नियमित केस दर्ज नहीं किया गया। चार अलग-अलग अर्जियों पर 10 फरवरी 2009 को सुप्रीम कोर्ट में फैसला सुरक्षित रख लिया गया था लेकिन फैसला अब तक नहीं सुनाया गया है।‘
गौरतलब है कि याचिकाकर्ता विश्वनाथ चतुवेर्दी ने सपा सुप्रीमो मुलायम सिंह यादव, वर्तमान यूपी के मुख्यमंत्री अखिलेश यादव, कन्नौज से लोकसभा सांसद डिंपल यादव और मुलायम के दूसरे बेटे प्रतीक यादव के खिलाफ आय से अधिक सम्पत्ति का आरोप लगाया था, साथ ही एक जनहित याचिका भी दायर की थी। सुप्रीम कोर्ट ने बाद में डिंपल यादव को यह कहकर केस से अलग कर दिया था कि जिस वक्त जनहित याचिका दायर की गयी थी उस वक्त डिंपल यादव किसी लाभ के पद पर नहीं थीं लिहाजा उन पर केस नहीं बनता। इस पर याचिकाकर्ता ने अपना विरोध दर्ज करते हुए कहा है कि यदि इसी तरह से अन्य भ्रष्ट लोगों की पत्नियों की सम्पत्तियों पर भी यदि मामला ठुकराया जाता रहा तो भविष्य में किसी भ्रष्ट नेता अथवा अधिकारी पर शिकंजा कसा ही नहीं जा सकता। कोर्ट के इस आदेश पर मीडिया को क्या सुनाया गया? मीडिया ने क्या सुना और उसने क्या लिखा? मीडिया ने विधि संवाददाता अथवा विधि सलाहकार से सलाह-मशविरा किए बगैर अपने अखबार में सुर्खियां बना दी कि, मुलायम और उनके परिवार को आय से अधिक सम्पत्ति के मामले में राहत। साफ जाहिर है कि दागी मुलायम और उनके परिवार वालों की छवि सुधारने की गरज से ही पेड न्यूज का सहारा लिया गया और मीडिया को मैनेज करने की भूमिका निभायी सपा में दूसरी पारी खेलने वाले मैनेजमेंट गुरु अमर सिंह ने। मुलायम ने भी उन्हें तोहफे के रूप में दोबारा महासचिव का पद दे दिया।
याचिकाकर्ता विश्वनाथ चतुर्वेद ने याचिका दाखिल कर मामले में नियमित एफआईआर दर्ज करने की मांग की थी। कोर्ट में याचिकाकर्ता ने कहा कि 2007 में उनके आरोपों पर सीबीआई ने प्राथमिक जांच में मामला बनने की बात भी कही थी, फिर भी अभी तक नियमित केस दर्ज नहीं किया गया। चतुर्वेद ने कहा कि चार अलग-अलग अर्जियों पर 10 फरवरी 2009 को सुप्रीम कोर्ट ने फैसला सुरक्षित रख लिया था, जो आज तक सुरक्षित है।
मुलायम और उनके परिवार को क्लीनचिट देने सम्बन्धी खबर ने मुलायम के खिलाफ आय से अधिक सम्पत्ति मामले को एक बार फिर से ताजा कर दिया। सत्ता विरोधी दल एक बार फिर से इस मुद्दे को लेकर चर्चा कर रहे हैं जबकि आय से अधिक सम्पत्ति मामले का खुलासा करने वाला व्यक्ति मीडिया की भूमिका को लेकर खासा खफा है। उनकी नाराजगी का अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है कि उन्होंने सोशल साइट पर मीडिया को आपत्तिजनक शब्दों से भी नवाजा है। साथ ही कहा है, ‘विधानसभा चुनाव में सपा की छवि सुधारने की गरज से पार्टी के तथाकथित मैनेजर अमर सिंह ने ही मीडिया के सहारे दुष्प्रचार किया है जबकि मामला जस का तस है।’
साभार- ‘दृष्टांत’ मैग्जीन
इसे भी पढ़ सकते हैं….