Connect with us

Hi, what are you looking for?

सियासत

मुसलमानों को और पागल बनाएगी यह जिहादी गोलबंदी

विष्णु गुप्त

‘बायकाट’ भी एक हिंसक प्रवृति है और इस हिंसक प्रवृति का सीधा दुष्प्रभाव शांति, सदभाव और सांमजस्य पर पड़ता है। अगर बायकाट की प्रवृति में गोलबंदी शामिल है, कोई हिंसक और नकारात्मक पहलू शामिल है तथा पर्दे के पीछे का उद्देश्य शामिल हो तो फिर यह गोलबंदी और भी खतरनाक हो जाती है। बायकाट के साथ ही साथ हिंसक प्रवृति भी देखी जाती है। अभी-अभी पूरी दुनिया में एक बायकाट न केवल कुचर्चित हो रहा है बल्कि उसके दुष्परिणामों को लेकर भी दुनिया की शांति, सदभाव और सहचरता में विश्वास रखने वाले लोग चिंतित हैं और उसके दुष्परिणामों का साक्षात दर्शन भी कर रहे हैं। पूरी अरब दुनिया ही नहीं बल्कि अरब दुनिया से बाहर के देशों जैसे पाकिस्तान, मलेशिया और अजरबैजान आदि मुस्लिम देशों के साथ ही साथ भारत और यूरोप की मुस्लिम आबादी भी इस बायकाट से जुड़ चुके हैं। यह बायकाट उस फ्रांस के खिलाफ है जिस फ्रांस ने अपनी संप्रभुत्ता और बहुलतावाद की संस्कृति के रक्षण के लिए कुछ अहर्ताएं तय करने की कोशिश की है और जिसने अपनी संप्रभुत्ता को प्रभावित करने वालों के खिलाफ तथा हिंसक ढंग से फ्रांस की संप्रभुत्ता के खिलाफ करने वालों के विरोध आवाज उठायी है। सिर्फ आवाज देने मात्र से ही अरब, यूरोप, अमेरिका और भारत की मुस्लिम दुनिया बायकाट की हिसंक और खतरनाक प्रवृति पर सवार हो गयी। खासकर मुस्लिम देशों में फ्रांस के उत्पादित वस्तुओं पर प्रतिबंध लगाने और बहिष्कार करने की गोलबंदी सुनिश्चित हो रही है। खतरनाक बात यह है कि बायकाट कोई लोकतांत्रिक ढंग से नहीं हो रहा है बल्कि बायकाट मजहबी आधार पर हो रहा है। कुबैत, जार्डन, कतर और तुर्की में फ्रांस के उत्पादित वस्तुुओं को माॅल और दुकानों से हटा दिये गये। जबकि तुर्की, ईरान और पाकिस्तान के शासकों ने सीधे तौर पर फ्रांस को धमकी पिलायी है उसके संप्रभुत्ता संपन्न कार्यक्रमों और अभिव्यक्ति से इस्लाम की तौहीन होती है, इसकी कीमत फ्रांस को चुकाना होगा।

Advertisement. Scroll to continue reading.

धीरे-धीरे यह बायकाट का हथकंडा खतरनाक हो रहा है और दुनिया की शांति व सदभाव के लिए एक खतरनाक चुनौती भी बन रहा है। धीरे-धीरे यह बायकाट का हथकंडा घृणा में भी तब्दील हो रहा है। खासकर इस्लाम और गैर इस्लामिक समुदाय के बीच में एक विभाजन रेखा बन रही है। गैर इस्लामिक समुदाय में वैसे ही इस्लाम को लेकर बहुत सारी चिंताएं और प्रवृतियां पहले से ही बैठी हुई हैं। खासकर यूरोपीय देशों में और अमेरिका में इस्लाम और गैर इस्लामिक आबादी के बीच विभाजन की तलवारें खिंची हुई हैं, आपस में अविश्वास, घृणा और वर्चस्व की प्रवृतियां टकरा रही हैं, युद्धोन्माद पैदा कर रही हैं। निश्चित तौर पर मुस्लिम दुनिया की इस बायकाट के हथकंडे ने इस्लाम को लेकर एक और डर-भय का वातावरण बनाया है।

बायकाट की जड़ क्या है? क्या सिर्फ तत्कालीन कारण से ही फ्रांस और मुस्लिम दुनिया आमने-सामने है? क्या मुस्लिम दुनिया की बायकाट की गोलबंदी खुद मुस्लिम दुनिया के संकट को बढायेगी? बायकाट की जड़ में कार्टून विवाद ही है। पैगम्बर का कार्टून विवाद के कारण फ्रांस की संप्रभुत्ता हिंसक तौर लहूलुहान है और फ्रांस के बहुलतावाद पर संकट के बादल छाये हुए हैं। फ्रंास की मशहूल पत्रिक शार्ली एब्दों ने कई साल पहले पैगम्बर का कार्टून प्रकाशित किया था। शार्ली एब्दों ने तब कहा था कि अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के लिए ऐसे कार्टून का प्रकाशन कर वह आतंकवादी मानसिकता का दमन करना चाहती है। उस कार्टून के प्रकाशन मात्र से मुस्लिम दुनिया तेजाबी तौर उफान पर थी, हिंसक अभियान पर थी, इस्लामिक संस्थाएं फतवे पर फतवें पढ रही थीं। फतवे का दुष्परिणाम कैसा होता है, यह भी उल्लेखनीय है। फतवे का दुष्परिणाम बहुत ही खतरनाक होता है, हिंसक होता है, घृणा और विखंडनपूर्ण होता है। शाब्दी एब्दों के खिलाफ फतवा भी हिंसक और विखंडनपूर्ण साबित हुआ। मजहबी तौर पर पागलपन का भूत सवार हुआ। शार्ली एब्दों पत्रिका के कार्यालय पर आतंकवादी हमला हुआ, कोई एक नहीं बल्कि पूरे एक दर्जन लोग मारे गये, शार्ली एब्दों पत्रिका के संपादक सहित पूरी संपादकीय टीम को मौत का घाट उतार दिया गया, शार्ली एब्दों पत्रिका के कार्यालय को जला कर राख कर दिया गया। इस हमले की जिम्मेदारी आईएस नामक खूंखार आंतकवादी संगठन ने ली थीं। सबसे चिन्हित करने वाली बाय यह है कि इस लोमहर्षक हत्या और हमले पर मुस्लिम दुनिया खुश थी, खासकर सोशल मीडिया पर खुशी मानने का एक तरह जिहादी अभियान देखा गया था।

Advertisement. Scroll to continue reading.

शार्ली एब्दों प्रकरण ने फ्रांस की सिविल सोसाइटी को झकझोर कर रख दिया था। सिविल सोसाइटी ने यह देखा समझा कि वे जिस बहुलतावाद की संस्कृति के सहचर है और जिसके लिए वर्षो से समर्पण सुनिश्चित किये हैं वह तो खतरे में हैं, बहुलतावाद की जगह खतरनाक और हिंसक एंकाकी संस्कृति ले रही है जिसके लिए बहुंलतावाद कोई महत्व नहीं रखता हैं, इसमें अन्य विचारों के लिए भी कोई जगह नहीं हैं, संस्कृतिगत विरोधी विचारों का समाधान का रास्ता तो इसी तरह की हिंसा और आतंकवाद है। धीरे-धीरे यह सोच राष्ट्रीय सोच बन गयी। इस सोच के समर्थन में मूल संस्कृति आ गयी। जब मूल संस्कृति की वीरता जगती है, जब मूल संस्कृति का पुनर्जागरण शुरू होता है तो आयातित संस्कृति के साथ उसका टकराव बढ़ता है, यह टकराव धीरे धीरे वैचारिक रास्ते बंद कर हिंसक रास्ते पर गमन कर जाता है। फ्रांस में ऐसा ही हुआ है।

अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता कभी एकाकी नहीं हो सकती है। अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता सपूर्णता में सुनिश्चित होती है। अगर आयातित संस्कृति के लिए अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता है तो फिर मूल संस्कृति की अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता क्यो नहीं हो सकती है? मूल संस्कृति की अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता पर आतंकवादी हमले का समर्थन कैसे हो सकता है? इसी प्रश्न को लेकर फ्रांस में चिंता पसरी, फ्रांस के लोग अभियानी बन गये। अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता को सुनिश्चित करने के लिए फ्रांस के मूल संस्कृति के सहचर लोग शार्ली एब्दों पत्रिका के समर्थन में आ गये। बहसें शुरू हो गयी। फ्रांस के एक शिक्षक ने अपनी कक्षा में पैगम्बर के कार्टून की व्याख्या कर दी। विवादित काटून के व्याख्या मात्र से ही पागल मानसिकता के शिकार लोग हिंसक हो गये। यह बात आग की तरह पूरे फ्रांस में फैल गयी। मुस्लिम संस्थाएं और मस्जिदों से फतवे शुरू हो गये। फांस सरकार का कहना है कि एक मस्जिद में नमाज के बाद कार्टून का विश्लेषण करने वाले शिक्षक और स्कूल का नाम उजागर किया गया और मस्जिद में एक सूचना लगायी गयी। इस सूचना से हिंसक घटनाएं घटने की आशंका थी। पर मस्जिद और मुस्लिम संस्थाओं ने जान बुझ कर शांति और सदभाव की अवहेलना करने के कार्य किये। जब मस्जिद और मुस्लिम संस्थाएं ही गैर जिम्मेदार होगी और अपने अनुयायी को हिंसा के लिए उकसायेगी तो फिर निशाने पर भी तो मस्जिद और मुस्ल्मि संस्थाएं ही आयेगी। इसका दुष्परिणाम यह हुआ कि एक पागलपन का शिकार मुस्लिम युवक ने कार्टून का विश्लेषण करने वाले शिक्षक की हत्या कर दी। बाद में पुलिस ने शिक्षक की हत्या करने वाले मुस्लिम युवक को गोलियों से उड़ा दिया था।

Advertisement. Scroll to continue reading.

शिक्षक की बर्बर हत्या से पूरा फ्रांस दहल गया। फ्रांस के राष्ट्रपति इमैनुएल मैंक्रो ने सीधे तौर पर इस्लाम को निशाना बनाया और कहा कि इस्लाम का यह चेहरा घिनौना है, हिंसक है और अमानवीय है, फंास की बहुलतावाद की संस्कृति की जगह इस्लामिक हिंसक संस्कृति को खूली छूट नहीं मिलेगी, उसकी हिंसक प्रवृतियां हर हाल में रोकी जायेगी, इस्लामिक लोगों का अपना व्यवहार अहिंसक बनाना होगा और मजहबी एजेंडे को छोडना ही होगा। इमैनुएल मैंक्रों का बयान कहीं से भी न तो खतरनाक है और न ही इस्लाम का अपमान करने वाला है। इमैनुएल मैंक्रों एक शासक हैं, शासक के तौर पर उन्हें अपने राष्ट्र की संप्रभुत्ता की चिंता स्वाभाविक है, उन्हें हिंसक प्रवृतियों को कुचलने का दायित्व भी है। इसी दायित्व का निर्वाहन इमैनुएल मैक्रों कर रहे हैं। पिछले दस सालों में फ्रांस ने कोई एक नहीं बल्कि दर्जनों भीषण आतंकवादी हमले झेले हैं, दर्जनों इस्लामिक हिंसक प्रवृतियों से फ्रांस दो-चार हुआ है, सैकड़ों निर्दोष जिंदगियां मारी गयी हैं। अभी तक फंास में कोई खतरनाक अभियान नहीं चला है, इस्लामिक आतंकवादी हमले के बाद भी फ्रांस सयंम के साथ सक्रिय है।

बायकाट के पागलपन से फांस में इस्लामिक हिंसक प्रवृतियों के खिलाफ अभियान रूक जायेगा, या फिर मुस्लिम आबादी के खिलाफ बैठ रही घृणा की प्रवृतियां कमजोर हो जायेंगी, ऐसा नहीं होगा। इस्लामिक दुनिया को स्वयं के आइने में अपना चेहरा देखना चाहिए। इस्लामिक दुनिया क्या वैसा ही सम्मान और अधिकार अपने यहां देती हैं जैसा सम्मान और अधिकार फंास सहित अन्य गैर इस्लामिक देशों में चाहती हैं। सच तो यह है कि इस्लामिक देशों में कोई लोकतांत्रिक कानून नहीं होते हैं, गैर इस्लामिक आबादी पर मजहबी कानूनों का बुलडोजर चलता है, गैर मजहबी आबादी को इस्लाम स्वीकार करने या फिर देश छोडने का ही विकल्प होता है। इस बायकाट की गोलबंदी से मजहबी पागलपन को ही खाद-पानी मिलेगा। फ्रांस अब 73 मस्जिदों पर ताला जडकर अपना इरादा जता चुका है। फंास में बुर्का पर प्रतिबंध पहले से ही है। इसलिए फांस डर कर अपना अभियान वापस ले लेगा या माफी मांग लेगा, यह खुशफहमी भी मुस्लिम दुनिया को छोड़ देनी चाहिए। इस तरह की मजहबी पागलपन के खिलाफ भी शेष दुनिया को सचेत होना होगा, इसके खतरे को समझना होगा।

Advertisement. Scroll to continue reading.

विष्णु गुप्त का विश्लेषण. मोबाइल नंबर- 9315206123

Advertisement. Scroll to continue reading.
Click to comment

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Advertisement

भड़ास को मेल करें : [email protected]

भड़ास के वाट्सअप ग्रुप से जुड़ें- Bhadasi_Group

Advertisement

Latest 100 भड़ास

व्हाट्सअप पर भड़ास चैनल से जुड़ें : Bhadas_Channel

वाट्सअप के भड़ासी ग्रुप के सदस्य बनें- Bhadasi_Group

भड़ास की ताकत बनें, ऐसे करें भला- Donate

Advertisement